प्रश्न: ओशो, आपकी बातें सुनता हूं, तो प्रभु-खोज के विचार उठते हैं। लेकिन समझ नहीं पड़ता कि कहां से शुरू करूं?
ओशोः कहीं से भी शुरू करो, बस शुरू कर दो। परमात्मा सब तरफ है। जहां से भी शुरू करोगे, उसी में शुरू होगा। कहां से शुरू करूं… इस प्रश्न में मत उलझो। क्योंकि परमात्मा तो एक तरह का वर्तुल है। इसीलिए तो दुनिया में इतने धर्म हैं, क्योंकि इतनी शुरुआतें हो सकती हैं। दुनिया में तीन सौ धर्म हैं। दुनिया में तीन हजार भी धर्म हो सकते हैं, तीन लाख भी हो सकते हैं, तीन करोड़ भी हो सकते हैं। दुनिया में असल में उतने ही धर्म हो सकते हैं, जितने लोग हैं। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की शुरुआत दूसरे से थोड़ी भिन्न होगी। प्रत्येक व्यक्ति दूसरे से थोड़ा भिन्न है।
कहीं से भी शुरू करो। इस प्रश्न को बहुत मूल्य मत दो। मूल्य दो शुरू करने को। शुरू करो। और ध्यान रखो कि जब भी कोई शुरू करता है, तो भूल-चूक होती है। कहां से शुरू करूं-यह बहुत गणित का सवाल है। इसमें भय यही है कि कहीं गलत शुरुआत न हो जाये; कि कहीं कोई भूल-चूक न हो जाये! कहां से शुरू करूं।
अगर बच्चा चलने के पहले यही पूछे कि कहां से शुरू करूं, कैसे शुरू करूं, कहीं गिर न जाऊं, घुटने में चोट न आ जाये, तो फिर बच्चा कभी चल नहीं पायेगा। उसे तो शुरू करना पड़ता है। सब खतरे मोल ले लेने पड़ते हैं। सब भय के बावजूद शुरू करना पड़ता है। एक दिन बच्चा उठ कर खड़ा होता है पहले दिन, तो असंभव लगता है कि चल पायेगा। अभी तक घिसटता रहा था, आज अचानक खड़ा हो गया।
मां कितनी खुश हो जाती है, जब बच्चा खड़ा होता है! हालांकि खतरे का दिन आया। अब गिरेगा। अब घुटने तोड़ेगा। अब लहू-लुहान होगा। सीढि़यों से गिरेगा। अब खतरे की शुरुआत होती है। जब तक घिसटता था, खतरा कम था, सुरक्षा थी। मगर सुरक्षा में ही कब तक कैद रहोगे! बच्चे को चलना पड़ेगा। खतरा मोल लेना पड़ेगा; अन्यथा लंगड़ा ही रह जायेगा और कई बार गिरेगा…
जब बच्चा पहली दफा बोलना शुरू करता है, तो तुतलाता है; कोई एकदम से सारी भाषा का मालिक तो नहीं हो जायेगा! कौन कब हुआ है! तुतलाएगा। भूलें होंगी। कुछ का कुछ कहेगा; कुछ कहना चाहेगा, कुछ निकल जायेगा। लेकिन बच्चे हिम्मत करते हैं-तुतलाने की। इसलिए एक दिन बोल पाते हैं। तुतलाने की हिम्मत करते हैं, इसलिए एक दिन कालिदास और शेक्सपीयर भी पैदा हो पाते हैं। तुतलाने की कोशिश करते हैं, इसलिये एक दिन बुद्ध और क्राइस्ट भी पैदा हो पाते हैं।