स्त्री को बाधा समझने वाले भगोड़े होते हैं: ओशो

तुम मुझसे पूछ रहे हो कि संतों ने कहा है कि स्त्री बाधा है। जिस किसी ने भी ऐसा कहा है…उसके लिए स्त्री बाधा रही होगी, यह बात तो सुनिश्चित है। इतना तो गारंटी से कहा जा सकता है; कि वह यौन दमन से पीड़ित रहा होगा। अब वह इसको एक सामान्य सिद्धांत बनाने का प्रयत्न कर रहा है। उसका अपना दमन एक रोग है और वह समस्त मनुष्य-जाति के लिए एक सिद्धांत निर्मित कर रहा है कि स्त्रियां बाधा हैं। वे बाधा नहीं हैं।
मैं एक संत को जानता था जो हमेशा स्त्रियों के विरुद्ध बोलते थे। मैंने उनसे पूछा: ‘यदि स्त्रियां पुरुषों के लिए बाधा हैं, तब तो स्वर्ग जाने के लिए स्त्रियों की स्थिति कहीं बेहतर है, क्योंकि उन्हें तो कोई बाधा नहीं पहुंचा रहा। पुरुष तो स्त्रियों के लिए बाधा नहीं हैं; किसी संत ने ऐसा नहीं कहा है, कोई भी धर्मग्रंथ ऐसा नहीं कहते।’
इसलिए ऐसा लगता है कि स्त्रियां तो सभी स्वर्ग पहुंच गई हैं और पुरुष नरक में कष्ट भोग रहे हैं-स्वाभाविक ही है, क्योंकि यदि कोई बाधा है ही नहीं तो स्त्रियां जाएगी कहां? उनके लिए भी तो कोई स्थान बनाना ही होगा। और सब पुरुषों ने कष्ट झेले हैं, बुरी तरह से कष्ट झेले हैं-लेकिन अपने कष्टों के लिए वे ही उत्तरदायी थे, क्योंकि वे ही तो भाग गए थे। और जब कभी भी तुम किसी से भागते हो, वह तुम्हारा पीछा करती है। वह तुम्हारी कल्पना बन जाती है, वह तुम्हारे स्वप्नों में आती है। उन्होंने अपनी समस्या का तो समाधान किया नहीं, वे कायर लोग थे। मेरे लोग किसी से भाग नहीं रहे हैं।
जीवन समस्याओं को हल करने के लिए सुंदर प्रयोग है। जितनी अधिक समस्याओं का समाधान तुम जीवन में करते हो, उतने ही अधिक बुद्धिमान तुम होते जाते हो। जीवन से भागना, जीवन से पलायान कोई उपाय नहीं है। यदि स्त्री तुम्हारी समस्या है तो कारण पता करो कि क्यों? शायद तुम ही कारण हो। शायद तुम स्त्री पर शासन करना चाहते हो। और स्वभावतः यदि पति स्त्री पर शासन करना चाहे, स्त्री अपने ही ढंगों से उसकी प्रतिक्रिया करती है: वह पति पर शासन करने का प्रयास करने लग जाती है। उसकी विधियां भिन्न हैं।
पुरुष उत्तरदायी हैं स्त्रियों को अज्ञानी, अशिक्षित, असंस्कृत बनाए रखने के लिए। वे स्त्रियों को घर में लगभग कैदी जैसे बनाए रखने के लिए उत्तरदायी हैं। फिर अगर वे प्रतिक्रिया करती हैं तो कौन इसका जिम्मेवार है? तुमने उनकी सारी स्वतंत्रता, सारी आत्मनिर्भरता ले ली है। आर्थिक रूप से वे अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकतीं। शैक्षणिक तौर पर तुमने उन्हें पूरी तरह से वंचित कर रखा है। प्रतिस्पर्धा के संसार में पुरुष के साथ वे लड़ नहीं सकतीं। पुरुष को समस्त विशेषाधिकार हैं, स्त्री को कोई विशेषाधिकार नहीं है। यह पुरुष का संसार है जिसमें सदियों से, हर संस्कृति और हर देश में स्त्री को बस एक गुलाम की भांति स्वीकार किया गया है।
अब यदि वह प्रतिक्रिया करती है, झगड़ा करती है, तुम्हारे जीवन को दुखी बनाती है, मैं सोचता हूं यह बिलकुल ठीक है। और उससे भाग कर…भाग कर तुम जाओगे कहां? तुम स्त्री से तो भाग सकते हो लेकिन तुम्हारे भीतर एक अंतःप्रवृत्ति है जो स्त्री को चाहती है-वह प्रवृत्ति तुम्हारे साथ जाएगी। तुम अपनी पत्नी से भाग कर दूर जा सकते हो, लेकिन तब तुम्हारी वह अंतःप्रवृत्ति कहीं और समस्याएं खड़ी करेगी।
लेकिन तुम बच नहीं सकते। पुरुष भी आधा है, स्त्री भी आधी है। उन्हें अलग-अलग करने का सारा विचार व्यर्थ ही दुख निर्मित करता है, और दुखी हालत में चेतना का कोई विकास नहीं हो सकता। चेतना केवल प्रसन्नचित्त, आनंदित दशा में ही-जब तुम नृत्य करने की, गीत गाने की मनोस्थिति में होते हो, विकसित होती है।
जिस संत ने यह कहा है कि स्त्रियां बाधा हैं, वह पलायनवादी रहा होगा। भगोड़ों, पलायनवादियों की बात कभी मत सुनो। संसार उनके लिए है जो संसार में रहें, पर संसार को अपने भीतर प्रवेश न करने दें; जो संसार में तो हों पर संसार को अपने भीतर न होने दें। और यही तो संन्यास का संपूर्ण रहस्य है।

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