सुख पाना है तो पहले दुःख को जानोः ओशो

सुख पाना है तो पहले दुःख को जानो
यदि दुख को मिटाना हो, तो सुख की कल्पना छोड़ देनी पड़ेगी और दु:ख को ही जानना पड़ेगा। जो दुख को जानता है, उसका दु:ख मिट जाता है। जो सुख को मानता है, उसका दुख छिप जाता है; मिटता नहीं, भीतरचला जाता है। अगर अज्ञान को मिटाना है, तो ज्ञान की कल्पना नहीं करनी है-अज्ञान को ही जानना है। अज्ञान को जो जानता है, वह ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है। लेकिन जो ज्ञान को, झूठे ज्ञान को, कल्पित ज्ञान को पकड़ लेता है, उसका अज्ञान छिप जाता है, अज्ञान मिटता नहीं, और ज्ञान उसे मिलता नहीं, क्योंकि कल्पित ज्ञान का कोई भी अर्थ नहीं है।
इसे दो-तीन कोणों से समझना अच्छा होगा। जैसे, मैंपूछना चाहता हूं, क्या हम सुखी हैं? क्या हमने कभी भी सुख जाना है? अगर कोई बहुत निष्पक्ष अपने जीवन पर लौट कर देखेगा, तो पाएगा, सुख-सुख तो कभी नहीं जाना, दुख ही जाना है। लेकिन दुख को हम भुलाते हैं। और जिस सुख को नहीं जाना, उसको कल्पित करते हैं, उसको थोपते हैं। हां, एक आशा है मन में कि कभी जानेंगे। और आशा उसी की होती है, जिसे न जाना हो। सुख को जाना नहीं है, इसलिए निरंतर सोचते हैं-कल, आने वाले कल, भविष्य में सुख मिलेगा। जो और भी ज्यादा काल्पनिक हैं, वे सोचते हैं, अगले जन्म में। जो और भी ज्यादा काल्पनिक हैं, वे सोचते हैं, किसी स्वर्ग में, किसी मोक्ष में सुख मिलेगा।अगर आदमी ने सुख जाना होता, तो स्वर्ग की कल्पना कभी न की गई होती। स्वर्ग की कल्पना उन लोगों ने की है, जिन्होंने सुख कभी भी नहीं जाना है। जो नहीं जाना है, उसको स्वर्ग में निर्मित करने की आशा बांधे बैठे हुए हैं! सुख हमने जाना है कभी? कोई ऐसा क्षण है जीवन का जब हम कह सकें कि मैंने जाना सुख? और ध्यान रहे, बहुत जल्दी में ऐसा मत कह देना; क्योंकि जिसने एक बार सुख जान लिया, वह दुख जानने में असमर्थ हो जाता है। जिसने सुख जान लिया, वह दुख जानने में असमर्थ हो जाता है। फिर वह दुख जानता ही नहीं। फिर वह दुख जान ही नहीं सकता। क्योंकि जो सुख जानता है, उसे यह भी पता चल जाता है कि मैं सुख हूं। यह बहुत मजे की बात है। और चूंकि हम दुख जानते ही चले जाते हैं, यह इस बातका सबूत है कि सुख हमने कभी जाना नहीं। आशा है, कल्पना है। और कभी-कभी सुख को थोप भी लेते हैं।एक मित्र आया है, गले लग गया है और हम कहते हैं, बहुत सुख आ रहा है। गले मिल कर कितना सुख मिला है,उसके आलिंगन में कितना रस मिला है; लेकिन कभी आपने सोचा है कि जो मित्र आकर गले मिल गया है, वह गले मिला ही रहे दस मिनट, पंद्रह मिनट, बीस मिनट और गला छोड़े ही नहीं, तब ऐसी तबीयत होगी कि कोई पुलिस वाला निकल आए, किसी तरह इससे छुटकारा दिलाए, यह क्या कर रहा है? और अगर घंटे दो घंटे वहगले को न छोड़े तो फांसी मालूम पड़ेगी।अगर सुख था तो और बढ़ जाता? जो एक क्षण में सुख मिला था तो दस क्षण में और दस गुना हो जाता? लेकिन एक क्षण में सुख लगा था और दस क्षण में फांसी मालूम होने लगी! सुख नहीं था, कल्पित था; एकक्षण में खो गया। जो कल्पित है, वही क्षण भर टिकता है; जो सत्य है, वह सदा है। जो कल्पित है, वही क्षणभंगुर है। जो क्षणभंगुर है, उसे कल्पित जानना। क्योंकि जो है, वह शाश्वत है, वह सदा है। वह क्षण में नहीं है, वह नित्य है, वह कभी मिटता नहीं। वह है, और है, और है। था, और होगा, और होगा। कभी ऐसा क्षण नहीं आएगा, जब वह न हो जाए। जो सुख दु:ख में बदल जाता है, उसे कल्पित जानना। वह सुख था ही नहीं। और सब सुख जो हम जानते हैं, दु:ख में बदलने में समर्थ हैं।

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