ओशो ने कुछ कीमती सूत्र कहे हैं, जिन्हें हम आत्मसात कर लें, तो जिंदगी पूरी तरह से बदल जाएगी। उनमें से एक सूत्र को मैंने गांठ बांधकर रखा है, ‘आप जिस स्थान को छोड़ें, उसे पहले से बेहतर बनाकर जाएं।’ ओशो ने यह सूत्र इस पृथ्वी के संदर्भ में कहा है कि हर व्यक्ति जब इस दुनिया को छोड़े, तो अपने तईं इसे पहले से बेहतर बनाकर जाए। जहां वृक्ष कम हों, वहां वह और पौधे लगा दे। जहां गंदगी हो, वहां स्वच्छता लाए। जहां लोग तनावपूर्ण हों, वहां उन्हें सुकून पहुंचाए। यह सूत्र हर विचार पर, हर संबंध पर, जीवन के हर पहलू पर लागू होता है। किसी सार्वजनिक जगह से जब लोग चले जाते हैं, तो उसे ऐसा कबाड़खाना बनाके जाते हैं कि शर्म आती है। जाते समय बड़ी बेरहमी से स्थान को तहस-नहस करके जाते हैं। यह ख्याल भी नहीं आता कि उनके बाद जो लोग आएंगे, वे इसे किस हालत में पाएंगे? क्या उनके प्रति हमारा कोई फर्ज नहीं? वही होता है रिश्तों के साथ।
रिश्तों की नजाकत को कोई नहीं समझता। जितना करीबी घनिष्ठ रिश्ता होता है, उतने ही लोग लापरवाह होते जाते हैं। जितने औपचारिक संबंध होते हैं, लोग उतने ही अदब से पेश आते हैं। याद करें, आपने अपने आत्मीय लोगों को कब गौर से देखा था? उनकी भावनाओं की, उनके सुख-दुख की कब कदर की थी? अगर दुनिया को बेहतर हालत में छोड़ना हो, तो एक और नियम बना लें, जहां से आप जा रहे हैं, वहां एक बार पीछे मुड़कर देखें, बस। एक बार मुड़कर देखें कि जिससे मिले थे, वह आपके शब्दों से, आपके व्यवहार से कहीं उदास तो नहीं हो गया? आपके दिमाग में अगर बुरे विचार चल रहे हों, तो आपने उन्हें त्याग दिया या उन्हें और बढ़ावा दिया? कहीं अनबन चल रही हो, तो देखें कि आपने आग में ईंधन डाला या कुछ बुझाने की कोशिश भी की? इस रास्ते से आपके रिश्तों की दरारें कम होने लगेंगी।