चेतना ले जाती है धर्म की ओर Osho

जीवन का अनंत पुनरावर्तन है; उपयोगिता है उसकी, उससे प्रौढ़ता आती है। खतरा भी है उसका, उससे जड़ता भी आ सकती है। एक ही चीज से दोबारा गुजरने में दो संभावनाएं हैं। या तो दोबारा गुजरते वक्त आप उस चीज को ज्यादा जान लेंगे और यह भी संभावना है कि दोबारा गुजरते वक्त आप उतना भी न जान पाएंगे, जितना आपने पहली बार जाना था। दोनों ही बातें हैं। आपके घर के सामने जो वृक्ष लगा है, आप उसको शायद ही देखते हों, क्योंकि इतनी बार देखा है कि देखने की कोई जरूरत नहीं रह गई है। पति-पत्नी शायद ही एक-दूसरे को देखते हों। तीस-तीस साल साथ रहते हो गए। देख लिया था बहुत पहले, जब शादी हुई थी। फिर देखने का कोई मौका नहीं आया। असल में देखने की कोई जरूरत नहीं आई। अपरिचित स्त्री सड़क से निकलती है तो दिखाई पड़ती है।
असल में अपरिचित दिखाई पड़ता है, परिचित के प्रति हम अंधे हो जाते हैं; ‘ब्लाइंड स्पाॠट’ हो जाता है। उसे देखने की कोई जरूरत नहीं होती। कभी आंख बंद करके सोचें कि आपकी मां का चेहरा कैसा है, तो आप बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे। फिल्म एक्ट्रेस का चेहरा याद आ सकता है, पर मां का चेहरा आंख बंद करके देखेंगे तो एकदम खोने लगेगा। थोड़ी देर में रूप-रेखा गड्डमड्ड हो जाएगी। मां का चेहरा इतना देखा है कि कभी गौर से नहीं देखा। निकटता अपरिचय बन जाती है। कहने का तात्पर्य है कि अनंत जीवन में एक से अनुभव से बार-बार गुजरने पर दो संभावनाएं हैं। चुनाव आप पर है कि आप क्या करेंगे, यह स्वतंत्रता आपकी है।
आप यह भी कर सकते हैं कि आप जड़ या यांत्रिक हो जाएं, जैसा कि हम अधिक लोग हो गए हैं। यंत्रवत घूमते रहें, बस वही रोज-रोज करते रहें। कल भी क्रोध किया था, परसों भी किया था, उसके पहले भी, पिछले वर्ष भी, उसके पहले वर्ष भी। इस जन्म का ही हिसाब रखें, तो भी काफी है। अगर पचास साल जिए हैं तो कितनी बार क्रोध किया है! और हर बार क्रोध करके कितनी बार पश्चाताप किया है! और हर बार पश्चाताप करके फिर दोबारा क्रोध किया है, फिर दोबारा पश्चाताप किया है! फिर धीरे-धीरे एक रूटीन, एक व्यवसाय बन गया।
आदमी को देख कर आप कह सकते हैं कि यह अभी क्रोध कर रहा है, थोड़ी देर बार पश्चाताप करेगा। क्रोध में क्या कह रहा है, यह भी बता सकते हैं, क्या कहेगा, यह भी बता सकते हैं- अगर दो-चार दफे उसको क्रोध करते देखा है तो। क्रोध के बाद पश्चाताप में ये-ये बातें यह कहेगा। कसम खाएगा कि अब क्रोध कभी नहीं करूंगा। हालांकि ये कसमें इसने पहले भी खाई हैं, इसका कोई मतलब नहीं है। यह जड़ व्यवस्था हो गई है। लेकिन अगर किसी ने होश में रहकर क्रोध किया है तो हर बार क्रोध का अनुभव उसे क्रोध से मुक्त कराने में सहयोगी होगा। और अगर बेहोशी से क्रोध किया है तो हर क्रोध का अनुभव उसे और भी क्रोध की जड़ मूर्च्छा में ले जाने में सहयोगी होता है।
एक आदमी चाहे तो क्रोध करके और गहरे क्रोध का अभ्यासी बन सकता है और एक आदमी चाहे तो क्रोध करके, क्रोध की मूर्खता को देख कर, व्यर्थता को समझ कर, क्रोध की अग्नि और विक्षिप्तता को देख कर क्रोध से मुक्त हो सकता है। जो आदमी जड़ होता चला जाता है, वह अधार्मिक होता चला जाता है; वह और संसारी होता चला जाता है। जो आदमी चेतन होता चला जाता है, वह धार्मिक होता चला जाता है, उसके जीवन में एक क्रांति होती चली जाती है।

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