भाव समझोगे तो मिलेंगे कबीर Osho

संत तो हजारों हुए हैं, पर कबीर ऐसे हैं जैसे पूर्णिमा का चांद। अतुलनीय, अद्वितीय! जैसे अंधेरे में कोई अचानक दीया जला दे, ऐसा यह नाम है। जैसे मरुस्थल में कोई मरुद्यान अचानक प्रकट हो जाए, ऐसे अद्भुत और प्यारे उनके गीत हैं।
मैं कबीर के शब्दों का अर्थ नहीं करूंगा। शब्द तो सीधे-सादे हैं। कबीर तो दीवाने हैं। और दीवाने ही केवल उन्हें समझ पाए और दीवाने ही केवल समझ सकते हैं। कबीर मस्तिष्क से नहीं बोलते। यह तो हृदय की वीणा की अनुगूंज है। और तुम्हारे हृदय के तार भी छू जाएं, तुम भी बज उठो, तो ही कबीर समङो जा सकते हैं।
यह कोई बौद्धिक आयोजन नहीं है। कबीर को पीना होता है, चुस्की-चुस्की। और डूबना होता है, भूलना होता है अपने को, मदमस्त होना होता है। भाषा पर अटकोगे, चूकोगे; भाव पर जाओगे तो पहुंच जाओगे। भाषा तो कबीर की टूटी-फूटी है। वह बे-पढ़े-लिखे थे। लेकिन भाव अनूठे हैं। भाव पर जाओगे तो..।
बहुत श्रद्धा से ही कबीर समङो जा सकते हैं। कबीर के पास न तर्क है, न विचार है, न दर्शनशास्त्र है। शास्त्र से कबीर का क्या लेना-देना!
कहा कबीर ने- ‘मसि कागद छुओ नहीं।’ कभी छुआ ही नहीं जीवन में कागज, स्याही से कोई नाता ही नहीं बनाया। सीधी-सीधी अनुभूति है; अंगार है, राख नहीं। राख को तो तुम संभाल कर रख सकते हो। अंगार को संभालना हो तो श्रद्धा चाहिए, तो ही पी सकोगे यह आग। कबीर आग हैं। और एक घूंट भी पी लो तो तुम्हारे भीतर अग्नि भभक उठे- सोई हुई अग्नि जन्मों-जन्मों की। तुम भी दीये बनो। तुम्हारे भीतर भी सूरज उगे। और ऐसा हो, तो ही समझना कि कबीर को समझा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *