हम लोगों को देखकर ही उनके बारे में एक राय बना लेते हैं और फिर उसी धारणा के अनुरूप उनसे व्यवहार करते हैं। धारणा कायम करने का सबसे बड़ा नुकसान यही है कि हम व्यक्ति को खुले दिल से स्वीकार नहीं कर पाते हैं। दूसरों के प्रति पूर्वाग्रह से बचने की हमें हरसंभव कोशिश करना चाहिए।
हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां हर कोई दूसरे का आकलन करता रहता है। दूसरों को जज करने की यह आदत इस तरह है कि हम दोस्तों और परिचितों को ही नहीं बल्कि अपरिचितों को भी जज करते हैं।
हम किसी अपरिचित को रास्ते से गुजरता देखते हैं और उससे कोई सरोकार नहीं होने पर भी हम उसे विभिन्न मापदंडों के आधार पर देखना शुरू कर देते हैं। हम अपनी पसंद या नापसंद के आधार पर उसका आकलन करने लगते हैं।
हम तय करने लगते हैं कि वह व्यक्ति सुंदर है या बदसूरत और इसी तरह के कई पैमानों पर उसे तौलते हैं। सिर्फ एक नजर उसे देखने के साथ ही हम कई तरह से उसका आकलन कर बैठते हैं। हमारा आकलन सही है या गलत इस बारे में हम ज्यादा सोचते भी नहीं हैं। बात यह है कि हम आदतन दूसरों का आकलन करना शुरू कर देते हैं और किसी ने हमसे ऐसा करने को कहा नहीं होता है।
यह एक संयोग हो सकता है कि किसी एक ही व्यक्ति को जब हम बाद में देखते हैं तो उसे फिर किन्हीं मापदंडों पर तौलने लगते हैं। तब हम अपने ही दो आकलन के बीच तुलना शुरू कर देते हैं। अब यह व्यक्ति हमें वैसा ही नजर आता है जैसी हम उसके बारे में राय बना लेते हैं।
जब भी इस व्यक्ति से हमारा वास्ता पड़ता है तो हम अपनी बनाई छवि में ही उसे देखते हैं और उससे मुक्त नहीं हो पाते हैं। हम उसे नए ढंग से नहीं देख पाते हैं। तब हम जिस व्यक्ति से मुलाकात करते हैं वह कोई नया व्यक्ति नहीं होता बल्कि वह व्यक्ति होता है जो हमारी धारणा में बैठा है। वह व्यक्ति इस बारे में कुछ भी नहीं जानता है कि हम उसे लेकर किस तरह सोच रहे हैं।
अब प्रश्न यह है कि क्या यह संभव है कि हम किसी भी व्यक्ति का पूर्व आकलन नहीं करें और उसे उसी तरह देखें जैसा कि वह है? यह संभव है। यह तब संभव है जबकि हम हर क्षण में चीजों को देखें और पुरानी स्मृतियों का बोझ लेकर न चलें। हां हमारी याददाश्त ही हमें कोई राय बनाने के लिए कहती है।
हमारी आंखें तो एक आईने की तरह काम करती हैं और वे किसी भी व्यक्ति को बिना किसी पूर्वाग्रह के साथ ही देखती हैं लेकिन हमारी याददाश्त उसकी पूर्व छवि से हमें जोड़ देती है। कोई भी विद्वान व्यक्ति वही होता है जो व्यक्ति को उसके आज में देखता है न कि उसके बारे में पूर्वधारणा के आधार पर।
जीसस क्राइस्ट ऐसे ही प्रज्ञावान पुरुष थे और उन्होंने कहा था, ‘दूसरों के बारे में कोई धारणा मत बनाओ क्योंकि तुम्हारे बारे में भी ऐसी धारणाएं दूसरे बना सकते हैं।” अगर लोग उनके कहे पर अमल करने लगें तो वे ध्यान में गहरे तक उतर सकेंगे। वे दूसरों से मुक्त होकर अपने आप में लीन हो सकेंगे।
अपने एक संबोधन में ओशो ने एक सूफी कथा सुनाई थी। एक सूफी तबीयत का व्यक्ति था। वह गांव में चीजें बेचता था और लोगों का मानना था कि उसे कोई समझ नहीं थी। तो लोग उस व्यक्ति से चीजें खरीद लेते और बदले में उसे नकली सिक्के दे दिया करते थे।
सूफी उन नकली सिक्कों के बदले भी लोगों को चीजें दे देता था और कभी उन्हें टोकता नहीं था। कई बार लोग चीजें ले लेते और बिना दाम चुकाए कहते कि हमने दाम चुका दिए। तब भी उसने पलटकर कभी नहीं कहा कि तुमने दाम नहीं चुकाए। वह कहता, बहुत शुक्रिया।
फिर अन्य गांवों से भी लोग आने लगे। यह व्यक्ति बहुत ही बढ़िया था और आप उसकी दुकान से कुछ भी ले सकते थे। लोगों को यह सुविधा पसंद आई कि आपको सही दाम चुकाने की भी जरूरत नहीं थी आप नकली सिक्कों से भी काम चला सकते थे और यह अनोखा दुकानदार किसी भी मोल पर चीज दे देता था।
फिर वह व्यक्ति बूढ़ा हो गया और उसके अंतिम दिन करीब आ गए। तब उसने आकाश की तरफ देखा और अंतिम शब्द कहे। ‘अल्लाह, ईश्वर मैं सभी तरह के सिक्के लेता रहा। मैंने नकली सिक्के भी लिए। मैं खुद भी एक नकली सिक्का ही था और मेरे बारे में कोई राय मत बनाना।
मैंने कभी तुम्हारे बनाए लोगों पर अविश्वास नहीं किया। उन्होंने जैसा भी बर्ताव किया मैंने उस पर भरोसा किया। तुम भी मुझे मेरे हर रूप में स्वीकार करना।” और इस तरह के व्यक्ति के बारे में ईश्वर कोई राय पहले से कैसे बना सकता है?
जीसस कहते हैं, ‘तुम दूसरों के बारे में राय मत बनाओ, ताकि कोई तुम्हारे बारे में भी पहले से राय नहीं बनाए।’
ओशो कहते हैं, ‘जब तुम किसी पूर्वधारणा के आधार पर नहीं चलते हो तो तुम निर्दोष या मासूम बन जाते हो। तब तुम चीजों को अच्छे और बुरे में बांटकर नहीं देखते हो, उन्हें सुंदर या बदसूरत में बांटते नहीं हो।
पढ़ें: कहीं आपकी होने वाली पत्नी ‘विषकन्या’ तो नहीं?
तुम बस चीजों को देखते हो और तब वे जैसी हैं उनके बारे में फैसला करते हो। पहले से कुछ भी तुम्हारे दिमाग में नहीं होता। दूसरों पर भरोसा करना सबसे बड़ा गुण है। किसी के भी लिए दिल में पहले से कुछ मत रखो। किसी को तयशुदा पहचान के साथ मत जोड़ो। उसे खुले दिल से स्वीकार करो।