जानिए कौन सा फर्क है अकेलेपन और एकांत के बीच Osho

आप डिक्शनरी में तलाशेंगे तो अकेलेपन और एकांत के एक ही अर्थ को पाएंगे। लेकिन वे दोनों बिल्कुल ही अलग हैं। अकेलापन अवसाद को बताता है जबकि एकांत आपकी ऊर्जा का परिचय देता है।
एक मर्तबा ओशो की एक शिष्या ने उनसे एक सवाल पूछा था। उसने पूछा कि यह कैसे होता है कि एक ही समय पर मन में प्रेम की भावना उमड़ती है और मैं खुद को सबसे अलग या एकांत में भी पाती हूं। यह कैसे संभव है? यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है।
यह हमारे जीवन की गहरी पहेली है। जब भी हमारा हृदय प्रेम से भर जाता है तो हम खुद को एकांत में पाते हैं। अचानक हम महसूस करते हैं कि दुनिया की तमाम चीजें हमारे लिए विशेष महत्व नहीं रखती हैं और मन की प्रसन्नता सबसे ज्यादा मायने रखती है।
इसे हम कह सकते हैं कि यह लौ लग जाने की तरह है। यह प्रेम का ही असर है जो हमें ध्यान जैसी गहराई में पहुंचा देता है और ध्यान की उस अवस्था में हम अपने आप को पाते हैं। हम अपनी आत्मा को बेहतर बना रहे होते हैं।
ध्यान नाम के रसायन का जादू यही है कि कोई व्यक्ति एकांत में बैठकर आनंद तक पहुंचता है और यह आनंद इतना बढ़ता है कि वह दूसरों को भी इसका लाभ देता है। जो लोग अपने एकांत को सुंदर बना पाते हैं वे मन से बहुत ही अच्छे हो जाते हैं। वे दूसरों को संशय की नजर से नहीं देखते बल्कि उन्हें स्वीकारभाव से अपनाते हैं।
ध्यान के जरिए ही कोई भी व्यक्ति अनंत केंद्र से जुड़ता है और अपनी इस उड़ान के जरिए वह बहुत कुछ पाता है। वह व्यक्ति जो यह सोचता है कि एकांत में होना और प्रेम करना दो विपरीत चीजें हैं और उनका आपस में कोई लेना देना है तो वह गलत सोच रहा है। इस तरह की सोच रखने वाले व्यक्ति को कुछ चीजें चौंका सकती हैं। कोई व्यक्ति इस पर विश्वास नहीं करेगा लेकिन इसे अनुभूति के जरिए समझा जा सकता है।
लोग सोचते हैं कि जब वे प्रेम में होते हैं तो वे एकांत में नहीं हो सकते। यहां अकेला होने और एकांत में होने के बीच के फर्क को समझना होगा। कुछ लोगों के लिए इन दोनों का मतलब एक ही होता है और बहुतेरे लोग इन दोनों शब्दों के बीच कोई फर्क नहीं करते हैं। इन दोनों के बीच अंतर के बारे में पूछे जाने पर वे भ्रम में रहेंगे।
ओशो कहते हैं, जब तुम प्रेम में होते हो, तब तुम कभी भी अकेले नहीं हो सकते। यह सच्चाई है। लेकिन जब तुम प्रेम में होते हो तो अपना एकांत रचना भी सीख जाते हो और यह भी बड़ा सच है। एकांत एक फूल की तरह है। हालांकि अगर आप डिक्शनरी में तलाशेंगे तो अकेलेपन और एकांत के एक ही अर्थ को पाएंगे। लेकिन वे दोनों बिल्कुल ही अलग हैं। अकेला होना ऐसा जख्म है जो बढ़कर कैंसर की शक्ल ले सकता है। कई लोग अकेलेपन के कारण मौत को गले लगा लेते हैं।
यह दुनिया अकेले लोगों से भरी पड़ी है। इस अकेलेपन के कारण ही वे ऐसी-ऐसी मूर्खताएं करते रहते हैं ताकि उनके भीतरी घाव छिपे रह सकें। इस तरह के बर्ताव द्वारा वे अपने खालीपन और नकारात्मकता को छिपाते हैं।
एक अकेला व्यक्ति बहुत ज्यादा खाता है ताकि वह संतुष्टि महसूस कर सके। कभी-कभी वह खुद को भुलाना चाहता है तो अल्कोहल या किसी और नशे की संगति में पड़ जाता है। अकेलापन व्यक्ति के सारे अच्छे गुणों को खत्म कर देता है।
ओशो कहते हैं, एकांत इससे बिल्कुल अलग है। एकांत तो एक फूल की तरह है। उस कमल की तरह जो तुम्हारे हृदय में खिला है। एकांत सकारात्मक है। यह अपने आप में प्रसन्ना होने की अवस्था है। यह अपनी हर पल को भरपूर तरीके से जीने की अवस्था है। एकांत तो सुंदर है और यह एक तरह से अपने आप में वरदान है।
लेकिन केवल प्रेम में रहने वाले ही इस एकांत को महसूस कर पाते हैं क्योंकि प्रेम ही आपको एकांत प्राप्त करने का साहस देता है। प्रेम ही एकांत में रहने का संदर्भ रचता है। प्रेम ही आपको इतना परिपूर्ण बनाता है कि आपको दूसरे की जरूरत ही नहीं रहती।

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