पूर्ण समर्पण

यह कोई छोटा जुआ नहीं है। यहां जो लगायेगा पूरा, वही पा सकेगा। इंच भर भी बचाया तो चूक सकते हैं। क्योंकि ऐसा नहीं हो सकता कि बीज कहे कि थोड़ा सा मैं बच जाऊं और बाकी वृक्ष हो जाये। बीज मरेगा तो पूरा मरेगा और बचेगा तो पुरा बचेगा। पार्शियल डेथ जैसी कोई चीज नहीं होती, आंशिक मृत्यु नहीं होती। तो आपने अगर अपने को थोड़ा भी बचाया तो व्यर्थ मेहनत हो जायेगी। पूरा ही छोड़ देना। कई बार, थोड़े से बचाव से सब खो जाता है।
हमारी जिंदगी में ऐसा रोज होता है। न मालूम कितने लोग हैं जिन्हें मैं जानता हूं कि जो खोदते हैं परमात्मा को, लेकिन पूरा नहीं खोदते, अधूरा खोदते हैं, उपर उपर खोदते हैं और लौट आते हैं। कई बार तो इंच भर पहले से ही लौट जाते हैं। कई बार तो मुझे साफ दिखाई पड़ता है कि यह आदमी वापिस लौट चला, यह तो अब करीब पहुँचा था, अभी बात घट जाती, यह तो वापिस लौट पड़ा।
तो अपने भीतर एक बात खयाल में ले लें कि आप कुछ भी बचा न रखें, अपना पूरा लगा दें। और परमात्मा को खरीदने चले हों तो हमारे पास लगाने को ज्यादा है भी क्या! उसमे भी कंजूसी कर जाते हैं। कंजूसी नहीं चलेगी। कम से कम परमात्मा के दरवाजे पर कंजूसी के लिए कोई जगह नहीं। वहां पूरा ही लगाना पड़ेगा।

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