ओशो यानी आचार्य रजनीश के अनुसार, दीपावली प्रकाश का पर्व है और इस पर्व को प्रकाशमान करता है दीपक, जिसका महत्व इस पर्व पर सबसे ज्यादा होता है। इस अवसर पर मिट्टी के दीये में ज्योति जलाना इस बात का प्रतीक है कि मिट्टी के दीये में अमृत ज्योति संभाली जा सकती है, क्योंकि मिट्टी पृथ्वी की और ज्योति प्रकाश का प्रतीक है। मिट्टी के दीयों की जगमगाती माला यथार्थ में ज्योति पर्व का नाम सार्थक करती है।
ढेर सारी विशेषताओं से परिपूर्ण दीपक जहां ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक है, वहीं वह त्याग, बलिदान, साधना और उपासना का भी प्रतीक है। यही नहीं, वह तप और त्याग की महत्ता का परिचायक भी है। यह हमारी संस्कृति का मंगल प्रतीक है, जो अमावस्या के घनघोर अंधकार में असत्य से सत्य और अंधेरे से प्रकाश की ओर जाने का मार्ग प्रशस्त करता है।
अंधकार को परास्त करते हुए वह संदेश देता है कि अंत:करण को शुद्ध एवं पवित्र रखते हुए और अपनी चेतना, अपनी आत्मा में प्रकाश का संचार करते हुए ज्ञान का, धर्म का और कर्म का दीप जलाओ। तब गहन तमस में जो प्रकाश होगा, उससे अंत:करण में आशा, धैर्य और प्रभु भक्ति के संचार के साथ-साथ हर्ष और उल्लास से हृदय पुलकित हो उठेगा, सत्य और न्याय की चहुं दिशाओं में विजय पताका फहराएगी और धन-धान्य, यश-वैभव की अपार संपदाएं तुम्हारे लिए अपने द्वार खोल देंगी। यथार्थ में सूर्य के उत्तराधिकारी दीपक का इस पर्व पर यही प्रमुख संदेश है। यही कारण है कि हम दीपावली के पर्व पर ‘दीपोज्योति नमोस्तुते’ कहकर दीपक को सादर नमन करते हैं।
दरअसल, हमारे हर अच्छे-बुरे काम में व सामूहिक और सामाजिक काम में दीपक जलाने की परंपरा है। दीपावली एक साधारण पर्व नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव का पर्व है। इसमें हमें एक संपूर्ण राष्ट्र के गौरव और गौरवशाली अतीत के दर्शन होते हैं।