युवा और सत्य: जीवन को रोमांचकरी बनाने के लिया प्रश्न पूछें

सद्‌गुरु हमें अपने कॉलेज के दिनों की एक घटना सुना रहे हैं। उन दिनों, उन्होंने एक प्रश्न पूछा था जिसके उत्तर में उन्हें कक्षा से निकाला गया था।

सद्‌गुरु के कॉलेज के दिनों की घटना

सद्‌गुरु: कई वर्ष पूर्व, जब मैं विश्वविद्यालय में था, तो मैंने एक महिला प्रोफ़ेसर से उनके नोट्स माँगे ताकि उन्हें फोटोकॉपी करवाया जा सके। इस तरह उन्हें वे नोट्स पढ़ कर बताने की, और मुझे कक्षा में बैठने की जरूरत न रहती। बेशक, मुझे उसी समय कक्षा से निकाल दिया गया। और मैं उस समय चाहता भी यही था!

मैंने जो किया, वह गलत था और मैं कभी ऐसा करने की सलाह नहीं दूंगा। दरअसल उस कक्षा में सिर्फ नोट्स का डिक्टेशन होता था, और मैं एक स्टेनोग्राफर नहीं बनना चाहता था!

कक्षा से बाहर निकाले जाना, मेरे लिए कोई नया अनुभव नहीं था। मुझे स्कूल भी बोरियत से भरे हुए लगते क्योंकि कोई भी अध्यापक ऐसी कोई बात नहीं करता था जो उनके जीवन के लिए मायने रखती हो। बचपन में, मैं अपने दिन का अधिकतर समय, अपने स्कूल के बाहर घाटी में कई तरह के जलीय जंतुओं को गहराई से देखने में बिताता। जब मेरे माता-पिता को इस बारे में पता चला तो उन्होंने मेरे इस जैविक अन्वेषण को खारिज कर दिया, और उसे बारिश के गंदे पानी में मस्ती करना बताया, और फिर मुझे कक्षा में वापिस भेज दिया गया।

नौजवानों के पास प्रश्नों का अभाव नहीं होता

क्या मैं बिना अनुमति स्कूल से गायब होने का समर्थन कर रहा हूँ? बिल्कुल नहीं। मैं यह कहना चाहता हूँ कि युवाओं के पास बहुत सारे प्रश्न होते है और उन्हें उनके जवाब कभी नहीं मिलते। अकल्पनाशील वयस्क जगत उन्हें ग्रेड, कैरियर व पैसे वगैरह के बारे में प्रवचन देता रहता और इसके अलावा कोई बात नहीं होती। मुझे याद है कि मेरे दिमाग में हमेशा लाखों सवाल चक्कर काटते थे। मेरे पिता अक्सर निराश हो कर हाथ खड़े कर देते और कहते, ‘ये लड़का अपने जीवन में क्या करेगा?’ उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि मेरे पास किए जाने वाले कामों की कभी कमी नहीं थी। मुझे कक्षा बोरिंग लगती थी परंतु मैं उसके अलावा बाकी सभी चीजों में रुचि रखता था – यह संसार कैसे बना, ये मौसम और ऋतुएँ, ज़मीनी इलाका, जमीन में हल चलाने और बीज बोने से धरती में बदलाव कैसे आता है, लोग किस तरह जीते हैं। मेरा जीवन आकर्षक प्रश्नों से भरा था।

युवाओं के पास कभी प्रश्नों का अभाव नहीं होता। पचास प्रतिशत से अधिक भारतीय जनसंख्या पच्चीस वर्ष से कम आयु की है। इसका अर्थ है कि सवालों की भी भरमार होगी। ये 650 मिलियन युवा – उनकी महत्वाकांक्षा और क्षमता – वही इस देश और ग्रह का भविष्य तय करेगी। पर अधिकतर युवा ऐसे समाज की पाबंदी और दबाव झेल रहे हैं, जो उन्होंने कभी नहीं बनाया। हमारे पास 15 से 29 वर्ष के युवाओं की आत्महत्या के शर्मनाक आंकड़े हैं। भारत में प्रति घंटा, एक छात्र आत्महत्या कर लेता है! यह आंकड़े दिल दहलाने वाले हैं। हमें थोड़ा ठहर कर स्वयं से पूछना चाहिए कि हमसे क्या गलती हो गई है?

मैं युवाओं को कोई सलाह या नैतिक निर्देश नहीं देना चाहता। जब मैं युवक था, तब वे प्रवचन मेरे भी काम नहीं आए थे। मैं उन्हें केवल स्पष्टता प्रदान कर सकता हूँ – ऐसी स्पष्टता, जो मुझे पच्चीस वर्ष की आयु में मिली क्योंकि मेरे पास कुछ सवाल थे और मुझे उनके साथ जीने में कोई डर नहीं था। प्रश्नों के साथ जीना, कोई निष्कर्ष न निकालना : यही जीवन का सबसे अद्भुत रोमांच है।

‘मैं नहीं जानता’ की संभावना!

‘मैं नहीं जानता’ – यह एक दुर्भाग्य ही है कि संसार इसकी संभावना से परिचित नहीं है। विस्मय की वह क्षमता बचपन में ही मिटा दी जाती है, और इसकी जगह ज्ञान के भेस में बैठी मान्यताएं, धारणाएँ और निश्चितताएं ले लेती हैं। हम भूल गए हैं, ‘मैं नहीं जानता’ ही – जानने का एकमात्र रास्ता है। यही वह द्वार है, जो आज के युवा वर्ग के सामने मौजूद है। यह एक ऐसे रोमांच से भरे जीवन का प्रवेश द्वार है जिसे अनेक वयस्क भुला बैठे हैं। हमें ऐसे युवा चाहिए जो न केवल प्रश्न पूछने का साहस रखें बल्कि हल जानने के लिए अपना जीवन लगाने को भी तैयार हो। हमारा व्यक्तिगत और सार्वभौमिक कल्याण भी इसी पर निर्भर करता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *