शाम्भवी महामुद्रा और सूर्य क्रिया से छूटी चरस और केमिकल ड्रग्स की लत

जानते हैं बेनी, क्रिस्तो और अश्विन की तिकड़ी की कहानी जिन्होंने ड्रग्स से बेहतर नशे की चाहत में शाम्भवी महामुद्रा और हठ योग को अपनाया और जबरदस्त सफलता पाई।

हमें मिल गया मुफ़्त का नशा

ईशा योग केंद्र से प्रमाणित एक हठ योग टीचर की कक्षा में एकदिन दो बहुत उत्साही और उत्सुक विद्यार्थी पहुंचे। योग के प्रति उनकी दिलचस्पी व तीव्रता देखकर उस टीचर ने उनसे सवाल किया, ‘आपमें योग के लिए यह आग कहां से आई?

अश्विन ने जवाब दिया, ‘हमारी एक अच्छी तिकड़ी है, जिसमें मैं, बेनी और क्रिस्टो शामिल हैं। कॉलेज के दिनों में जीवन में एक्स्ट्रा किक पाने के लिए हमने कई चीजों को आजमाया, हमने नई-नई चीजें आजमाईं, जैसा कि आमतौर पर इस उम्र में दूसरे युवा करते हैं। उस एक्स्ट्रा किक को पाने की अपनी मासूम चाहत के चलते हमने मेरिवाना(चरस) भी लेकर देखी। हालांकि यह अच्छी थी, लेकिन कुछ ही समय बाद हमें इससे भी जोरदार चीज की जरूरत महसूस होने लगी। इस तरह से हम धीरे-धीरे केमिकल ड्रग्स की ओर बढऩे लगे।

आनंद की तलाश

ऐसे में कई दिन यूं ही बिना सोए गुजरते गए और हम तीनों हर्ष व उन्माद, आनंद व शिथिलता की मदहोशी में खोए रहे। लेकिन आनंद की यह अवस्था सिर्फ एक छलावा थी। बाहरी तौर पर जब लोग हमें देखते तो उनकी नजर में हम नकारा, रास्ते से भटके हुए और असली जिंदगी से दूर थे। जब हमारी नसों से नशीले पदार्थों का असर खत्म होता, हम सिर्फ एक ही चीज के बारे में सोच सकते थे, एकही चीज के पीछे भाग सकते थे और वह चीज थी – नशे की अगली खुराक। उस समय हमारे जीवन में और कोई चीज मायने नहीं रखती थी। हमारा जीवन उस नशीले आनंद का गुलाम बन चुका था।

नशे की मस्ती व आनंद को छोडक़र दुनिया की हर चीज में हमारी दिलचस्पी खत्म हो चुकी थी। हम लोग इन जादुई दवाओं को लेकर जंगलों और पहाड़ों पर जाते, क्यूंकि अलग माहौल में इस नशे का असर हर बार अलग होता था।

यहां तककि अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म करने के दो साल बाद भी हम में से किसी की दिलचस्पी नौकरी करने में नहीं थी। हम लोग अपनी ही गुमनामी और बेगानेपन में भटककर खुश थे। यह चीज हर तरह से हमारी जिंदगी पर भारी पड़ रही थी। फिर चाहे वो हमारी पढ़ाई हो या रिश्ते, सब पर इसका असर पड़ रहा था। हम लोग अपने घरों और समाज में एक तरह से विद्रोही हो गए। जो भी दोस्त, रिश्तेदार या कोई और हमें समझाने की कोशिश करता, तो हम बदले में उन्हें ही ज्ञान दे देते, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जिंदगी छोटी है या छोटी हो जाए, सबसे बढिय़ा है कि हर वक्त परमानंद में रहा जाए। हम ऐसा ही जीवन जीते हैं।

बिना किसी ड्रग्स का नशा

धीरे-धीरे हम तीनों के पास पैसे खत्म होने लगे और हम लोग अपने जीवन में आनंद की उस खुराकके बिना नहीं रह पा रहे थे। फिर हम लोगों ने बुरी तरह से इस नशीले पदार्थ का विकल्प ढूंढना शुरू कर दिया। हमें ऐसी किसी चीज की तलााश थी जो हमें वही किक दे सके और उसकी कीमत भी ज्यादा न हो। ऐसी कोई चीज जिसे पाना भी आसान हो और कीमती भी न हो। एक दिन यूं ही इंटरनेट पर, हमारी तिकड़ी में से एक- क्रिस्टो, एक वीडियो पर अटक गया। इस वीडियो का शीर्षक था – ‘ड्रग्स के बिना नशे में धुत कैसे हों – सद्गुरु।

वीडियो का शीर्षक देख क्रिस्टो की दिलचस्पी जाग उठी। उसने पूरा वीडियो देखा, थोड़ी और खोज-बीन की, तभी उसे इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम के बारे में पता चला। उसके बाद उसने कोच्चि में जाकर इस कोर्स को किया, जहां उसे शांभवी महामुद्रा के बारे में बताया और सिखाया गया। अब क्रिस्टो बिना किसी नशे के आनंद की अवस्था में रहने लगा। वह और जानने के लिए उत्सुक हो गया। फिर उसने सूर्य क्रिया और योगासन सीखे।

इन योग अभ्यासों ने क्रिस्टोको किसी तरह के नशे के बिना आनंद की दुनिया में रहने के काबिल बना दिया। क्रिस्टो ने ड्रग्स, सिगरेट और शराब पीना छोड़ दिया। बेनी और मैंने हैरानी और आतुरता से क्रिस्टो से पूछा, ‘आखिर तुम्हें क्या मिल गया है! तुम बस मुफ्त में ऐसी मस्ती को पाने के लिए क्या करते हो?तब क्रिस्टो ने हमें इनर इंजीनियरिंग, सूर्य क्रिया व योगासन केबारे में बताया। बिना एकपल गंवाए हमने कोच्चि में होने वाले अगले इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम के बारे में न सिर्फ पता किया, बल्कि उसके लिए अपना नाम भी लिखवा लिया।

रोज़ कई घंटों का सफर तय करके सीखना चाहते हैं सूर्य क्रिया

इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए हम रोज कई किलोमीटर की दूरी तय कर कोट्टायम से कोच्चि पहुंचते। और आज हम यहां आपके साथ सूर्य क्रिया सीख रहे हैं। यह सब हमने उस आनंद को पाने की चाह में किया है, जिसे हम अपने भीतर से पा सकते हैं।

माता-पिता से हमारे रिश्ते भी सुधर गए। मुझे और क्रिस्टो को नौकरी मिल गई और बेनी ने अपना कारोबार शुरू कर लिया। अब किसी बाहरी नशे की हमारी जरूरत खत्म हो चुकी है और हमारी जिदंगी पूरी तरह रूपांतरित हो चुकी है। अब हम आनंद का पीछा करने के बजाय अपने भीतर ही आनंद पैदा कर रहे हैं।

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