सद्गुरु भारत की शिक्षा प्रणाली को सुधारने के लिए किए जा रहे मौजूदा प्रयासों का वर्णन करते हुए ऐसी प्रणाली की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं जो विद्यार्थियों की व्यक्तिगत योग्यता को पहचानता और पोषित करता है।
प्रश्न. मैं सीईजी में कंप्यूनटर साइंस विषय में बैचलर्स प्रथम वर्ष की छात्रा हूं। मेरा सवाल है कि यहां हम सभी पंद्रह साल से अधिक की शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं मगर कई चीजें, जो मैंने सीखी थीं, उनका कोई उपयोग या इस्तेरमाल मुझे नहीं मिला है। तो कुछ चीजें, जो मैंने सीखी थीं,वे मुझे व्यार्थ क्योंे लगती हैं?
सद्गुरु: नहीं, नहीं, एक इंजीनियरिंग कॉलेज में ऐसा नहीं होना चाहिए! मैं समझ सकता हूं कि हाई स्कूल की अधिकांश शिक्षा बेकार होती है। मगर तकनीकी स्कूंल में ऐसा नहीं होना चाहिए। हमारी शिक्षा प्रणाली मुख्यक रूप से महारानी की सेवा के लिए क्लजर्क उपलब्धन कराने के लिए बनाई गई थी। उसके पीछे कोई कल्प ना नहीं थी – आज्ञापालन हमारी शिक्षा प्रणाली का सबसे महत्व।पूर्ण पहलू था। इसी लिए आपको बस एक पूरी पाठ्यपुस्ताक को निगलना और उसे वहां उगलना था। शिक्षा में उसी को उत्कृआष्टरता कहा जाता था। मैं तकनीकी शिक्षा के बारे में ये उस हद तक नहीं कहूंगा – मेरे ख्यााल से वो अलग है।
सरकार ने हाल ही में स्कूलों में बदलाव लाने की घोषणा की
हमने भारत में वस्त्र संबंधी एक नीति लिखी, नदियों और कृषि पर एक नीति लिखी और अभी शिक्षा पर एक नीति लिखने में व्यंस्ति हैं। मेरे लगातार जोर देने के बाद, सरकार ने हाल में घोषणा की कि भविष्यल में, स्कूिल के समय का सिर्फ पचास फीसदी किताबी शिक्षा पर केंद्रित होना चाहिए और बाकी खेल, कला, संगीत, शिल्पच और बाकी तमाम चीजों पर केंद्रित होना चाहिए। इसकी घोषणा सिर्फ एक महीने पहले हुई है। घोषणा तो ठीक है, मगर स्कूपलों में इस बदलाव के लिए जरुरी तैयारी नहीं हैं। मैंने हमेशा कहा है कि गणित और विज्ञान विषय के बराबर ही संगीत, कला और तमाम दूसरी चीजें होनी चाहिए। हमारे अपने स्कू्लों का प्रबंधन इस तरह से किया गया है, मगर इनकी संख्याी कम है।
फिलहाल केंद्र सरकार ने सिर्फ घोषणा की है, मगर उसे जमीनी स्त र पर लागू करना अब भी बहुत दूर की कौड़ी है। इसके लिए मानव संरचना(इंफ्रास्ट्रक्चर), भौतिक संरचना(इंफ्रास्ट्रक्चर), प्रशिक्षण और तमाम चीजों की जरूरत है, जिन्हें् अभी इस देश में होना बाकी है। इसमें समय लगेगा मगर कम से कम इरादा तो आ चुका है। हम देख रहे हैं कि किस तरह सभी बच्चोंम के लिए स्कूरल की किताबी शिक्षा दिन में अधिक से अधिक तीन से चार घंटे तक सीमित करें। बाकी समय में उन्हें दूसरी चीजें सीखनी चाहिए।
भोजन उगाने का ख़तरा पैदा हो रहा है
अभी हमने ऐसा देश बनाया है, जहां अगर एक किसान का बेटा अपने पिता के साथ खेत पर जाता है और दोनों खेत पर काम कर रहे हैं, तो पिता को बाल श्रम के अपराध में गिरफ्तार किया जा सकता है। हां, वाकई! देश में एक खतरनाक चीज पनप रही है। अगर आप देश में किसी किसान से पूछें कि क्या वे अपने बच्चों को खेती में भेजना चाहते हैं, तो सिर्फ चार फीसदी लोग हामी भरेंगे। तो अगले पच्चीेस सालों में जब यह पीढ़ी खत्मह हो जाएगी, तो देश में भोजन कौन उगाएगा?
आपके पास तकनीकी ज्ञान हो सकता है, आप एमबीए और तमाम कोर्स कर सकते हैं, मगर खेत में जाकर एक फसल उगा कर देखें। यह बहुत जटिल है। हमें लगता है कि खेती का काम अनपढ़ लोगों के लिए है मगर ऐसा नहीं है। यह बहुत जटिल, मेहनत का काम है। सिर्फ उसके पास औपचारिक शिक्षा नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि उसके पास दिमाग नहीं है। वह एक महत्वरपूर्ण काम जानता है और इसके कारण हम सभी खाना खा पा रहे हैं। हमारे पेट भरे हैं। मगर यह देश अगले पच्ची स सालों में अपना भोजन पैदा न कर पाने में के खतरे पर है।
किताबी शिक्षा छोड़ कर दूसरी चीज़ों की ओर आगे बढ़ना
सिर्फ कुछ खास तादाद में बच्चोंो को किताबी शिक्षा में आगे जाने की जरुरत है। बाकियों को दूसरे कौशल और देश में करने के लिए तमाम दूसरी चीजें सीखनी चाहिए, ताकि उनके जीवन में खुशहाली आए। हर किसी का दिमाग किताबी शिक्षा के लिए नहीं बना है। काफी लोग अपने शैक्षिक जीवन से दुखी रहते हैं। कुछ को शिक्षा में बहुत खुशी मिलती है मगर ज्याादातर लोग परीक्षा और पढ़ाई से दुखी होते हैं। इन लोगों को किताबी शिक्षा नहीं लेनी चाहिए, उन्हें दूसरे कौशल सीखने चाहिए जिनमें उनकी योग्योता है। मगर आपकी योग्य ता को पहचानने वाला कोई नहीं है – कौन सी चीज आप अच्छीो तरह, खुशी से कर सकते हैं।
दस से पंद्रह साल की उम्र के बीच शिक्षा प्रणाली में एक प्रक्रिया होनी चाहिए जहां लोग चुनाव कर सकें। अभी हर कोई सामाजिक प्रतिष्ठाा की बकवास के कारण मेडिसिन या इंजीनियरिंग में जाना चाहता है। एक इलेक्ट्रिशियन या बढ़ई को भी वही प्रतिष्ठाक मिलनी चाहिए जो एक डॉक्ट र या इंजीनियर को मिलती है। तभी शिक्षा में बराबरी आएगी। सबसे बढ़कर इस समाज में सबसे अधिक ऊंचा स्था न किसान का होना चाहिए। वह हमारा पेट भरता है।