हर कर्म एक बंधन है – चाहे वह अच्छा हो या बुरा

कर्मों को लेकर हमारे मन यह बात उठती रहती है कि कौन से कर्म अच्छे हैं और कौन से बुरे ? लेकिन बहुत सी बार हम इस दुविधा में ही रहते हैं, कि कोई कार्य जो हमने या किसी और ने किया, वो एक अच्छा कर्म था या फिर बुरा…आइये जानते हैं अच्छे और बुरे कर्मों के बारे में –

 

विवेक :

हमें सबने यही बताया है कि हमें अच्छे कर्म करने चाहिए, जो हमारे पूर्व संचित बुरे कर्मों से हमें मुक्त करेंगे? क्या ऐसा नहीं है?

 

सद्‌गुरु :

गुण के आधार पर कर्मों को बांटा गया है। हिंदू अक्सर तीन तरह के गुणों की बात करते हैं, जबकि बौद्ध् धर्म में इसे सात भागों में बांटा गया है। यह सिर्फ एक बंटवारा है, जो हम कर सकते हैं। लेकिन एक बात हमेशा ध्यान रखिए कि चाहे वह अच्छे कर्म हों या बुरे, दोनों ही बंधन होते हैं। आरामदायक जीवन जीने में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए कर्मों का इस तरह से बांटा जाना महत्वपूर्ण होता है।

वे हमेशा इसी सोच में लगे रहते हैं कि अच्छे कर्म कैसे किए जाएं, ताकि वे अगले जन्म में धन, सुख और कुशलता के साथ पैदा हों। अच्छे और बुरे कर्म केवल उसी व्यक्ति के लिए होते हैं, जो द्वैत में जीता है।

 

जबकि जीवन और मृत्यु के परे की सोचने यानी मुक्ति के बारे में सोचने वाले व्यक्ति के लिए अच्छे कर्म भी उतने ही बेकार होते हैं, जितने बुरे कर्म। उसके लिए तो कर्म मात्र कर्म होता है ; कर्म को अच्छा या बुरा बताने के उसके लिए कोई मायने नहीं होते। एक आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए सभी कर्म बुरे हैं। अच्छा कर्म हो या बुरा, उसके लिए बुरा ही होता है। जो व्यक्ति अस्तित्व के साथ एक होना चाहता है, उसके लिए कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता। उसके लिए सभी कर्म बाधक हैं, सभी एक बोझ हैं। वह सारे बोझों को गिरा देना चाहता है। वह ऐसा नहीं सोचता कि ‘अगर तुम मुझे एक क्विंटल सोना दोगे तो मैं उसे ढोने के लिए तैयार हूं, लेकिन तुम मुझे एक क्विंटल कूड़ा दोगे तो मैं उसे नहीं ढो सकता।’ उसकी ऐसी मानसिकता नहीं होती। एक साधक को इसी तरह से होना चाहिए कि ‘मैं सारे बोझ को गिरा देना चाहता हूँ।’ उसके लिए सोना और कूड़ा दोनों ही भारी होते हैं, जबकि दूसरे सभी मूर्ख यह सोचते हैं कि सोना ढोना महान कार्य है। आप इनका फर्क समझ रहे हैं न? समझदार व्यक्ति देखता है कि चाहे वह सोना ढोए या कूड़ा, उसके लिए दोनों ही बोझ हैं। जबकि दूसरा आदमी सोचता है कि सोना कूड़े से बेहतर होता है, क्योंकि उस समय वह कूड़ा ढो रहा होता है।

 

विवेक :

क्या कर्म सिर्फ हमारे कार्यों से ही प्रभावित होते हैं या विचारों से भी?

 

सद्‌गुरु :

देखिए, जैसे ही आप यह कहते हैं कि यह एक अच्छा विचार है और वह एक बुरा विचार, यह एक अच्छा कार्य है और वह एक बुरा कार्य – अगर कोई आदमी बुरा कार्य कर रहा है, तो वह बुरा आदमी माना जाता है, है कि नहीं? अच्छा और बुरा मुख्यतः उन लोगों का आविष्कार था, जो स्वर्ग जाने का टिकट बेच रहे थे। पूर्व विधान (ओल्ड टेस्टमंट) को मानने वाला एक ईसाई उपदेशक, ’निर्णायक दिन’ यानी ’जजमेंट डे’ (जिस दिन ईश्वर सबका फैसला करता है) की घटनाओं का वर्णन कर रहा था। बीच-बीच में जरूरत पडऩे पर वह बाइबिल से सबूत पेश करता था – ’ओह! मेरे मित्रों, जरा उन पापियों के कष्ट की कल्पना करो, जब वे अपने आप को घनघोर अंधकार में तड़पते हुए पाते हैं, ईश्वर की उपस्थिति से हटाकर उन्हें हमेशा के लिए जलने वाले अग्नि-कुंड में डाल दिया जाता है। मेरे मित्रों, ऐसे समय में वे रो रहे होते हैं, कराह रहे होते हैं और अपने दांत पीस रहे होते हैं।’ उसी समय सभा से एक बुजुर्ग आदमी उठा और उसने बीच में ही यह सवाल कर लिया, ’लेकिन महोदय, उन हताश पापियों में से किसी के पास अगर दांत न हो, तब क्या होता है?’ उपदेशक ने जोरदार शब्दों में जवाब दिया, ’मेरे मित्रों, ईश्वर को इन सारी चीजों से धोखा नहीं दिया जा सकता। आप बिल्कुल निश्चिन्त रहिए, उस समय दांत लगा दिए जाएंगे।’ ऐसे ही लोगों ने अच्छे और बुरे को ढूंढ निकाला है।

 

हरेक कार्य का एक परिणाम होता है। जब मैं ’कार्य’ कहता हूँ, तो यह केवल शरीर का ही नहीं होता। इसका संबंध केवल शरीर से ही नहीं होता। कार्य विचार, भावना या ऊर्जा का भी हो सकता है। जो कार्य आपके जीवन में नकारात्मक या अशुभ परिणाम लाता है, उसे अक्सर आप बुरा कार्य कहते हैं। सवाल अच्छे या बुरे का नही, सवाल बस इतना है कि अलग-अलग कार्य अलग-अलग परिणाम लाते हैं। एक इंसान के रूप में हमारे पास कार्य करने के लिए विवेक होता है। अगर आप में भरपूर चेतनता है, तो आप यह देख सकते हैं कि हरेक कार्य का एक परिणाम होता है। अगर आप आनंदपूर्वक परिणाम को स्वीकार कर सकते हैं, तो फिर आप अपनी मर्जी के मुताबिक कुछ भी कीजिए कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन आज अगर आप कुछ करते हैं और जब उसका परिणाम सामने आता है तो आप चिल्लाने लगते हैं तो बेहतर होगा कि अपने कार्यों, विचारों, भावनाओं या जो कुछ भी है, उसे कम कर दें। आप ऐसा कुछ भी शुरू मत कीजिए, जिसे आप संभाल नहीं सकते।

 

यह अच्छे और बुरे की बात नहीं है; यह बात सिर्फ अपने जीवन को समझदारी से जीने की है। दूसरे शब्दों में, बात सिर्फ इतनी सी है कि आप ऐसा कोई पत्थर उठाने की कोशिश मत कीजिए, जिसका बोझ आप ढो न सकें। आप वही चुनिए, जिसे आप संभाल सकें। हर कार्य के साथ सिर्फ यही ध्यान रखने की बात है। अगर आप इस चीज को अपनी चेतनता में ले आते हैं तो फिर चिंता नहीं करनी पड़ती कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है। तब आप बस वही करते हैं, जो आपके लिए जरूरी है- न उससे ज्यादा, न उससे कम।

 

Images courtesy: Bird in a cage by flickr

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *