महाभारत कथा – युधिष्ठिर की अच्छाई ने पैदा की मुश्किलें

देश का विभाजन केवल आज़ादी के बाद ही नहीं हुआ॰॰॰ हज़ारों से पहले महाभारत काल में भी एक बार विभाजन हुआ था। क्या थी वजह उस विभाजन की?

युधिष्ठिर की भलाई से लोगों की जान पर बन आई

युधिष्ठिर को राजा बना दिया गया, लेकिन उन्होंने अच्छा बनने की चाह में अपनी सत्ता का त्याग कर दिया। इस तरह एक बार फिर से भ्रम और कलह का वातावरण बन गया।

तमिल में एक कहावत है जिसका मतलब होता है, ‘आपको एक अच्छा इंसान चाहिए या एक क़ाबिल इंसान?’ हो सकता है कि आपको अपने पड़ोसी के तौर पर एक भले इंसान की ज़रूरत हो, लेकिन जब देश की बात आएगी तो आप चाहेंगे कि इसकी बागडोर क़ाबिल हाथों में ही सौंपी जाए। ऐसा नहीं कि युधिष्ठिर क़ाबिल नहीं थे, या उनके पास देश चलाने लायक समझदारी नहीं थी। लेकिन उन्होंने बहुत सारे ग्रंथों का अध्ययन किया था जिससे वे नेक तो बन गए पर बुद्धिमानी नहीं दिखा सके। प्रजा का हित साधने की बजाए उन्होंने वो किया, जो उनकी अंतरात्मा को अच्छा लगा।

इसी वजह से उन्हें लगातार दुर्भाग्य का सामना करना पड़ा। भले ही उनके आसपास के लोग हालात को उनके लिए कितना भी क्यों न बदलते, वे हर चीज़ को तबाह कर देते – यह सब किसी बुरी नीयत से नहीं बल्कि अच्छा बनने की चाहत में में हो रहा था।

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दुर्योधन के षड्यंत्र

युधिष्ठिर ने भले बनने की चाह में, ऐसे हालात पैदा कर दिए जिसमें बहुत से लोगों की जान पर बन आई और कुछ लोगों ने अपनी जानें भी गँवाईं। दुर्योधन ने इसी अवसर का लाभ उठा कर पांडवों से छुटकारा पाने के उपाय कर लिए। अब उसे पता चल गया था कि जिन पांडवों को मरा हुआ समझ लिया गया था। वे सही-सलामत थे इसलिए वह दिन-रात उन्हें मिटाने के लिए साजिशें कर रहा था। उसने कर्ण के साथ, धृतराष्ट्र से भेंट करने की अनुमति चाही। गुस्से में आग उगलते हुए दुर्योधन ने कहा, ‘मेरा जन्म राजा बनने के लिए हुआ है। मैं किसी के अधीन नहीं रह सकता। अगर आपने किसी तरह पांडवों से पीछा छुड़ाने में मदद नहीं की, तो मैं आत्महत्या कर लूँगा।’

कर्ण ने दुर्योधन को यादव सेना की शक्ति की याद दिलाई

उसने आगे कहा, ‘उनके पास द्रुपद की दोस्ती है इसलिए वे ख़ुद को ताक़तवर समझते हैं? हमें भी हर कीमत पर द्रुपद को अपने साथ मिलाने की कोशिश करनी होगी। एक बार द्रुपद हमारी ओर आ जाएँ तो उनका बचाव करने के लिए कोई नहीं रहेगा और हम सबके सामने उन पाँचों भाईयों को मौत के घाट उतार सकेंगे।’ तब कर्ण ने याद दिलाया कि कृष्ण भी पांडवों की ओर हैं, और कृष्ण की यादव सेना को किसी भी युद्ध में हराना आसान नहीं । कर्ण ने दुर्योधन को याद दिलाया कि स्वयंवर में, स्वयं कृष्ण, सत्यकि, उद्धव और यादव वंश के साधारण योद्धा भी आसानी से तीर निशाने पर लगा सकते थे। लेकिन कृष्ण ने सबको पहले ही मना कर दिया था कि वे प्रतियोगिता में हिस्सा न लें। इन सबके अलावा, पांडवों का विवाह द्रौपदी से हुआ है इसलिए द्रुपद उनके शत्रुओं के हाथों बिकने को तैयार नहीं होगा।

दुर्योधन के भयंकर सुझाव

दुर्योधन ने यह योजना बदल दी पर उसके दिमाग में और भी बहुत सारी योजनाएँ कुलबुला रही थीं। उसने कहा, ‘पांडव इसी महल में रह रहे हैं। हम आसानी से उनके भोजन में विष मिला सकते हैं।’ धृतराष्ट्र और कर्ण ने कोई उत्तर नहीं दिया। दुर्योधन ने देखा कि उन्हें योजना पसंद नहीं आई इसलिए उसने आगे कहा, ‘हम अपने राज्य की सबसे सुंदर स्त्री को बुला सकते हैं। वह पांडवों को मोह लेगी और द्रौपदी उनके ख़िलाफ़ हो जाएगी। इस तरह उनका घर टूट जाएगा। अगर हम उनका विवाह तोड़ सकें, तो यही उन्हें मिटाने के लिए बहुत होगा।’ यह योजना भी किसी को पसंद नहीं आई। फिर वह बोला, ‘अगर हम केवल माद्री के पुत्रों नकुल और सहदेव से बात करें तो मुझे उम्मीद है कि किसी तरह उन्हें अपने साथ मिलाया जा सकता है। अगर हम इन दो भाईयों को, बाकी तीन भाईयों के खिलाफ़ कर देंगे तो उनका अंत हो सकता है। धृतराष्ट्र और कर्ण को यह बात भी नहीं जंची। इसके बाद उसने कहा, ‘कृष्ण का औरतों से विशेष जुड़ाव है – हम उसे इसी तरह से बहला कर अपने साथ मिला सकते हैं। और मैं यह भी जानता हूँ कि भानुमती से मेरे विवाह से पहले, कृष्ण के मन में उसके लिए कुछ कोमल भाव थे। हम अपनी ओर से कोशिश कर सकते हैं।’ दुर्योधन योजना पूरी करने के लिए अपनी पत्नी को भी दाँव पर लगाने को तैयार था। तब धृतराष्ट्र ने कहा, ‘तुम्हारे दिल में ज़हर भरा है और यह सब किसी काम नहीं आने वाला। हमें कोई और हल निकालना होगा। अगर हम उन्हें मार देंगे तो लोग हस्तिनापुर में विद्रोह कर सकते हैं। यह हमारे लिए ठीक नहीं होगा।’ वह उन्हें मारने के खिलाफ़ नहीं थे – उनको केवल यही चिंता थी कि काम सही तरह से होना चाहिए। धृतराष्ट्र ने याद दिलाया, ‘यह मत भूलो कि पांचाल ने पहले भी कुरुओं की सेना को हराया है। अगर वे और यादव मिल कर लड़ने आए तो हम सामना नहीं कर सकेंगे। हमें यह काम नहीं करना।’ पर दुर्योधन इतनी आसानी से हार मानने वाला नहीं था। वह जल्दी से जल्दी पांडवों को मिटा देना चाहता था।

भीष्म, कृपाचार्य, द्रोण व विदुर के साथ बैठक

इसके बाद वे कुरु दरबार के महारथियों – भीष्म, कृपाचार्य, द्रोण व विदुर से भेंट करने गए। भीष्म ने कहा, ‘तुम्हें अपने भाईयों को मारने की बात मन में नहीं लानी चाहिए।

पांडवों को लाक्षागृह में जला कर मारने की कोशिश में तुमने न केवल अपने लिए बल्कि अपने पिता महाराज धृतराष्ट्र के लिए, बल्कि सारे कुरु वंश के लिए बहुत अपयश बटोर लिया है। आत्मा के देह त्यागने से किसी व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती, वह तब मरता है जब उसकी प्रतिष्ठा ख़त्म हो जाती है। लेकिन तुम्हारे पास अब भी अपनी प्रतिष्ठा को बचाने का एक अवसर है। युधिष्ठिर को राजा बनने दो। वह एक न्यायी पुरुष है, वह तुम्हारे साथ अन्याय नहीं होने देगा। तुमने देखा कि उसने अभी क्या किया – मैंने उसे युवराज बनाया और उसने तुम्हें बराबरी का दर्जा दे दिया। वह तुमारे साथ भाईयों की तरह पेश आएगा। तुम भी भाई की तरह जीना सीखो। यह तुम्हारे जीवन का एक अहम मोड़ हो सकता है। तुम्हें अब सही निर्णय लेना होगा।’

द्रोणाचार्य की सलाह

केवल इसी मोड़ पर नहीं, जब भी कोई अहम फ़ैसला लेने का समय आता तो दुर्योधन विवशता से भरकर गलत फ़ैसला ले लेता। भले ही उसके सलाहकार, दोस्त या सयाने कितनी भी सलाह क्यों न दें, वह अपने हठ पर अड़ा रहता और गलत फ़ैसला ले लेता। जब भीष्म ने अपनी राय रखी तो उसके बाद द्रोणाचार्य ने आगे कहा, ‘भले ही तुम ग़लत तरीक़े अपनाओ, पांडवों को हराना इतना आसान नहीं है। मैं अर्जुन को जानता हूँ – उसे मैंने ही ट्रेंड किया है। वह मेरी तरह ही कुशल तीरंदाज़ है। अगर उसकी आँखों पर पट्टी भी बाँध दी जाए, तो भी वह तुम्हें मौत के घाट उतार सकता है। उसके भीतर इस तरह की क़ाबिलियत और शक्ति है। ऐसी कोशिशें मत करो। इस तरह तुम अपने लिए, अपने भाईयों और शायद हम सबके लिए मौत को न्यौता दे रहे हो।’

विदुर ने धृतराष्ट्र को उनके बचपन की याद दिलाई

कृपाचार्य ने भी कुछ ऐसा ही कहा। विदुर ने देखा कि दुर्योधन को समझाना बेकार था। उन्होंने धृतराष्ट्र के भावों को झकझोरना चाहा। धृतराष्ट्र, विदुर और पांडु का बचपन एक साथ बीता था।

विदुर ने बचपन के दिनों की याद दिलानी चाही और कहा, ‘आपको याद है कि हमारा बचपन कितना अद्भुत था। हम कितने ख़ुश रहते थे, आपको पांडु से कितना स्नेह था। आप पांडु की संतानों के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? पांडु स्वर्ग से यह देख रहे होंगे। वे आपको और आपकी संतान को सदा के लिए श्राप दे देंगे।’ यह सुन कर धृतराष्ट्र कांप उठे। विदुर ने पांडु के लिए धृतराष्ट्र के मन में और भावनाओं को जगाने की कोशिश की, लेकिन वे ये नहीं समझ पाए कि धृतराष्ट्र को अपने मन में छिपे पुत्र मोह को सबके सामने छिपाने में महारत हासिल थी। धृतराष्ट्र ने कहा, ‘भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य व विदुर – हमारे पास किसी भी राज्य की तुलना में सबसे बेहतर सलाहकार हैं। वे जो भी कह रहे हैं, वह कुरु वंश की भलाई के लिए ही है इसलिए मेरे पुत्र, तुम्हें वही करना चाहिए जो सही हो।’ राजा होने के नाते वे उसे कह सकते थे कि उसे क्या करना चाहिए, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने दुर्योधन को कुछ भी करने के लिए खुला छोड़ दिया। दुर्योधन सभा से उठ कर बाहर निकल गया। राजा और सलाहकारों के दरबार में होते हुए, इस तरह उठ कर जाने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था परंतु दुर्योधन ने ऐसा किया। वह किसी भी दशा में पांडवों को मारना चाहता था।

फिर भगवान कृष्ण एक सक्रिय भूमिका में आ गए

उसके बाद से कृष्ण सामने आ गए और उन्होंने आगे की सारी गतिविधियों में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सलाह देते हुए कहा, ‘अगर वे एक साथ नहीं रह सकते तो यही बेहतर होगा कि पांडवों को उनका आधा राज्य सौंप दिया जाए। दुर्योधन और उसके भाईयों को आधे हस्तिनापुर पर शासन करने दिया जाए और पांडव बाकी आधा हिस्सा ले कर, उसे अपना राज्य बना कर शासन करें।’

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