भीम और हनुमान जी के मिलन की कहानी

भीम को वन में घूमते हुए एक बूढ़ा वानर दिखाई दिया। वह एक बहुत बड़ी आयु वाला वानर था, जिसकी पूंछ बहुत लंबी थी और उसकी पूँछ भीम के रास्ते में थी। भीम बहुत ही गर्वीला था। अगर उसके रास्ते में

कोई आता तो उसे पीछे हट कर भीम को रास्ता देना पड़ता। और इन बारह वर्षों के दौरान, पांडवों को जिस लज्जा का सामना करना पड़ा; उसकी वजह से वह बहुत गुस्सैल भी हो गया था। पहले वो खुश मिजाज था। पर अब वो गुस्सैल भी हो गया था। जब कोई घमंडी इंसान गुस्सैल भी हो जाता है तो वह मूर्ख हो जाता है। जी हाँ। वह दूसरों के साथ-साथ अपने लिए भी संकट बनता है।

भीम ने वानर से पूँछ हटाने को कहा

तो वह आगे आया और उसने वानर को रास्ते में पूंछ फैलाए पड़ा देखा और उसने अपमानित महसूस किया। उसने सोचा ये बन्दर अपनी पूँछ मेरे रास्ते में क्यों रख कर बैठा है। उसने कहा, ‘हे वानर! तुम अपनी पूंछ हटा लो।’ क्योंकि भारत में लोग दूसरों के अंग लांघ कर आगे नहीं जाते। अगर कोई बैठा या लेटा हो तो आप उसके अंगों को लांघ कर नहीं जाते।

इसे अशुभ माना जाता है। अगर वैज्ञानिक लिहाज से देखें तो भी यह कई कारणों से गलत है, पर अभी हम उनके बारे में विस्तार से बात नहीं करेंगे।

तो पारंपरिक किस्म के लोग दूसरों के अंग लांघ कर आगे नहीं जाते। अगर कोई बैठा या लेटा हो तो वे उसके एक ओर से घूम कर जाते हैं। आपमें से बहुत से लोग आदत की वजह से ऐसा करते हैं, क्योंकि आपने माता-पिता को ऐसा करते देखा है।

क्या आपने यह देखा? हो सकता है कि आपको न पता हो कि ऐसा क्यों करते हैं पर आप किसी को नहीं लांघते। भारत में जन्मे लोग, अक्सर लोगों को टाप कर नहीं जाते। तो उसने कहा, ‘यह पूंछ रास्ते से हटा लो। मुझे जाना है।’ बंदर ने कहा कि मैं इतना बूढ़ा हूँ कि अपनी पूंछ भी नहीं हिला सकता, तुम ही इसे क्यों नहीं हटा देते।

भीम पूँछ नहीं हटा पाया और फिर झुक गया

भीम ने कहा ठीक है। भीम ने हाथ नीचे किया और पूँछ को हटाना चाहा पर वह तो टस से मस नहीं हुई। उसने अपने दोनों हाथों का जोर लगा दिया पर फिर भी पूंछ नहीं हिली। भीम को विश्वास नहीं हुआ। भीम को अपने बल पर बहुत घमंड था और उसे लगता था कि वह धरती का सबसे शक्तिशाली प्राणी है। नागाओं द्वारा दिए गए नव पाषाण घोल से उसकी ताकत और बढ़ गई थी। वह हमेशा अपने बल को बढ़ाने के लिए कसरत करता रहता था और आज एक बंदर की पूंछ नहीं हिला पा रहा था। वह इस अपमान को सह नहीं सका। उसने अपनी ओर से बहुत कोशिश की पर उसे उठा नहीं पाया। फिर वह अपने घुटनों के बल बैठ कर बोला, ‘आप कौन हैं? अगर मैं इस पूंछ को नहीं हटा सका तो आप केवल वानर नहीं हैं। आप कौन हैं?’

तब वानर ने अपना परिचय दिया

तब उस वानर ने बताया कि वे रामायण काल के हनुमान थे। रामायण महाभारत का ही एक अंग हैं। बहुत समय बाद, बाल्मीकि ने इस कथा को एक महाकाव्य के रूप में अलग पहचान दी। अन्यथा रामायण महाभारत का ही एक अंग थी। यह एक लंबा महाकाव्य था। वाल्मीकि ने इसे अलग किया और राम का महाकाव्य बना दिया। अन्यथा वे भी कृष्ण के पहेलीनुमा जीवन में खो जाते – राम की सादगी।

तब हनुमान ने कहा, ‘भले ही तुम्हारे पास कितना भी बल क्यों न हो, अगर तुम्हारे पास श्रद्धा और विनय नहीं है तो तुम्हारा पतन होगा।’ तो ये दो सबक जो अर्जुन और भीम के लिए थे, उन्हें एक तरह से उन दोनों के लिए रचा गया था। क्योंकि उनमें इन गुणों का अभाव था। अन्यथा सब ठीक था। केवल उनके भीतर थोड़ा घमंड था। उन्हें लगता था कि उन्हें कोई नहीं हरा सकता। उन्हें लगता था कि वे कुछ भी कर सकते थे।

कृष्णा चाहते थे कि दोनों भाई अपना घमंड त्याग दें

कृष्ण उन्हें निरंतर याद दिलाते रहते थे – यहाँ तक कि रणभूमि में भी उन्हें बस यही याद दिलाते रहे। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप कौन हैं, दूसरे पक्ष के लोग मूर्ख नहीं हैं। वे भी योग्य हैं। घमंड मत करो। तुम स्वयं को मार दोगे। वे अर्जुन को निरंतर कहते हैं कि वह शत्रु के तीर से नहीं मारा जाएगा। वह एक दिन अपने घमंड से मारा जाएगा। अगर उसने घमंड को नहीं छोड़ा तो उसे एक दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु का सामना करना होगा। इस तरह शिव से मिला अपमान और हनुमान से मिला अपमान – ये दोनों परिस्थितियाँ उनके लिए इस तरह प्रस्तुत की गईं ताकि ये दो लोग अपने इस दुर्गुण से छुटकारा पा सकें, और उस कार्य के लिए सही तरह से तैयार हो सकें, जो उनके लिए सोचा गया था।

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