भागवान शिव को सावन के महीने में जल चढ़ाने की परंपरा समुद्र मंथन से जुड़ी है। पौराणिक कथा के अनुसार सावन के महीने में समुद्र मंथन से एक समय हलाहल विष निकला। इसे शिवजी ने धारण किया।
सावन के महीने में भगवान शिव को जल चढ़ाने की विशेष परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि सावन के पावन महीने में भोलेनाथ को जल चढ़ाने से वे अत्यधिक प्रसन्न होते हैं और साधक पर उनकी कृपा बरसती है। भोलेनाथ को साधक गंगा जल चढ़ाते हैं। साथ ही उन्हें साथ ही चंदन, धतूरा, बेल के पत्ते, गाय का शुद्ध दूध, फल, मिठाई आदि भी शिवजी को अर्पण किये जाते हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर भगवान शिव को सावन में जल चढ़ाने से महत्व क्यों बढ़ जाता है? सावन के महीने में आखिर ऐसी क्या खास बात है जब शिव जल और दूसरी शीतल चीजों से प्रसन्न होते हैं? दरअसल, इसे लेकर एक महत्वपूर्ण पौराणिक कथा है, जिसे जानकर आपके सभी सवालों के उत्तर मिल जाएंगे।
सावन में भगवान शिव को जल क्यों चढ़ाते हैं?
भागवान शिव को सावन के महीने में जल चढ़ाने की परंपरा समुद्र मंथन से जुड़ी है। पौराणिक कथा के अनुसार सावन के महीने में समुद्र मंथन से एक समय हलाहल विष निकला। यह विष इतना तेज था कि इसका एक बूंद भी अगर गिरता तो पूरी सृष्टि पर विनाश मच सकता था। देव और दानव ऐसे में बहुत दुविधा में आ गये कि आखिर इस विष का क्या उपाय किया जाए।
इस संकट की घड़ी में महादेव सामने आये और उन्होंने पूरे विष को पीकर अपने कंठ में समाहित कर लिया। इस विष की वजह से शिव का कंठ नीला पड़ गया और तभी से उन्हें नीलकंठ के नाम से भी पुकारा जाने लगा। मान्यता है कि विष के धारण करने से शिव भी उसके प्रभाव में आने लगे। इसके बाद देवी-देवताओं ने विष का प्रभाव कम करने के लिए उन पर शीतल जल चढ़ाना शुरू किया।
यही वजह है कि हर पूजा में भगवान शिव को जल जरूर चढ़ाया जाता है। खासकर, सावन में इसका महत्व और बढ़ जाता है। बताते चलें कि 17 जुलाई से शुरू हो चुका सावन-2019 इस बार 30 दिन का है और 15 अगस्त को रक्षाबंधन के त्योहार के साथ खत्म होगा।