श्रावण के अभिषेक में शुष्क मन-प्राण को सरस और सजीव करने के लिए किया जाता है? ‘शि’ का अर्थ है ‘मंगल’ और ‘व’ कहते हैं दाता को, इसलिए जो मंगलदाता है, वही शिव है। जीवन में जिस तत्व से कल्याण अथवा ‘शं’ भाव का उदय होता है, वह भोले शंकर प्रदान करते हैं। जीवन में विष के सदृश संताप को जो अमृत में परिवर्तित कर देते हैं, वे शिव हैं।
कौन हैं शिव और शक्ति
मान्यता है कि शिव के समीप मनुष्य को शांति और विश्राम मिलता है, क्योंकि इस जीवन के दुख, संताप और बाधाओं का निराकरण शिव के शरणागत होने पर ही संभव होता है। शिव का भाव सिर्फ विश्राम नहीं है, बल्कि क्रांति और रचना भी है, जो शक्ति के साथ युक्त होकर शिव करते हैं।
अलग प्रतीत होने वाले शिव और शक्ति वस्तुत: एक हैं। सृष्टि के समय ईश्वर ही अपने अद्र्धाग से प्रकृति का निर्माण करते हैं। प्रकृति और पुरुष के बीच एकात्मकता का प्रतीक है शिवलिंग। संवेदनाओं की ऊर्जा शक्ति का रूप लेकर शिव में एकाकार हो जाती हैं। शिव ब्रह्म रूप में शांत हैं, तो रुद्र रूप में रौद्र हैं-यह जगत शिव की कार्य स्थली है और शिव का अभिषेक उस मन को सींचना है, जिसे जिम्मेदारियों के बोझ तले हमने निर्वासित कर दिया है।
शिव मन की ऊर्जा हैं और वे शांत हैं। शिव के विपरीत शक्ति चंचल हैं और उनकी ऊर्जा रचना में प्रकट होती है, यानी शक्ति शिव का क्रियात्मक रूप है। स्वाभाविक है शक्ति का अशांत होना, क्योंकि रचना या निर्माण कभी भी, कहीं भी बिना उपद्रव के नहीं होता है। लंबी-चौड़ी व्याख्याओं से परे ‘शिवोअहम’ ‘अहं ब्रह्मास्मि’ को कहने का दूसरा तरीका है यानी शिव अंतर्मन में स्थापित हैं। उन्हें अनुभव करना मन की ग्रंथियों को खोलना है, जिसमें काम, क्रोध, अहंकार और लालच जैसे सपरें का विष है।
हम शिव के पास कामनावश जाते हैं। शिव हमारी प्रार्थनाएं सहजता से स्वीकार करते हैं पर शिव का मूल उद्देश्य हमें अपनी तरह सहज, सरस और सरल बनाना है। इस क्रिया को शिव गुरु रूप में संपन्न करते हैं, इसलिए वे आदि गुरु कहे जाते हैं।