रुद्र का अभिषेक & सोमवार को शिवलिंग अभिषेक / अर्थ और महत्व जानें यहां

रुद्र का अभिषेक वैदिक संस्कृति का हिस्सा है। रुद्र जो मनुष्य के दुख देखकर रुदन कर रहा है, उसे शीतल करने हेतु अभिषेक के अतिरिक्त दूसरा उपाय भी क्या है? श्रावण में शिव अभिषेक कामनाओं की पूर्ति हेतु संपन्न किया जाता है, लेकिन वह शुष्क मन-प्राण को भी सरस कर देता है। वर्तमान समय का संत्रास मनुष्य के मन को मशीन बना रहा है। आपाधापी में अगर मनुष्य को कुछ याद रहता है, तो वह कामनाओं की अपूर्णता है। शिवलिंग अभिषेक एक प्रतीक है, क्योंकि शिव उतने ही बाह्य हैं, जितने आपके मन में हैं। शक्ति को जाग्रत किए बिना आप ऊर्जा से आपूरित नहीं होंगे।

शिवलिंग अभिषेक माया और उसके ईश्वर-महेश्वर का अभिषेक है। शिव और उनके वामांग शिवा को जल से सींचना है। (अभिषेक का अर्थ सींचना होता है) गौर करने की बात है अभिषेक सिर्फ शिव और शक्ति का किया जाता है, अन्य किसी देवी-देवता का नहीं, क्योंकि सींचा हमेशा मूल को जाता है। शिव ही कारण रूप में महेश्वर, क्रिया रूप में ब्रह्मा और कार्य रूप में विष्णु में विभक्त होते हैं। जैसे किसी पौधे का कारण जड़ है, वैसे ही इस जगत के कारण में शिव और शक्ति हैं। शक्ति शिव से अलग कदापि नहीं हैं। शक्ति सृजन करती हैं और शिव निर्विकार रहते हैं। शक्ति शिव का कालकूट विष तारा रूप में गले में रोक देती है और उनके काली रूप के समक्ष शिव आत्मसमर्पण कर देते हैं। शिव के आत्मसमर्पण में न तो दीनता कार्य कर रही है, न ही काली का अहंकार मुखर होता है।

आमतौर पर हम देवता को भोग चढ़ाते हैं और उस प्रसाद को घर पर बांटकर खा लेते हैं। सिर्फ यज्ञ के हवन और शिवलिंग पर समर्पित द्रव्य को चढ़ाने वाला स्वयं उपभोग नहीं करता है। यज्ञ का तो सीधा सिद्धांत है ‘देहि मे ददामि ते’ तुम मुझे दो, मैं तुम्हें दूंगा। इस सिद्धांत का ही गुंजन शिवलिंग अभिषेक में भी अनुभव होता है, क्योंकि इसमें भक्त भगवान को अर्पित द्रव्य वापस ले ले, ऐसी उसकी मंशा नहीं है। चाहे जल चढ़ाया जाए, या फिर पंचामृत, भाव तो शिव और शक्ति को तुष्ट करना है और दोनों ही मन में बसते हैं।

 

सोमवार को शिवलिंग अभिषेक

मन को चंद्रमा नियंत्रित करता है, जो सोमवार के दिन का स्वामी है। इसलिए शिवलिंग अभिषेक सोमवार को अवश्य किया जाता है, क्योंकि मन को उत्फुल्लित करने का यह एक कारगर उपाय है। कामनापूर्ति तो शिव करते ही हैं। कामनाओं की पूर्ति मन को आनंदित करती है। प्रेम, आनंद और रस ये सभी आत्मा के ही स्वरूप हैं और आत्मा शिव से विलग कहां है?

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