शिव क्या हैं ?

कौन हैं शिव: मिथक, इंसान या भगवान ?

शिव के बहुरंगी आयाम

जब हम ‘शिव’ कहते हैं तो इसका मतलब अलग अलग लोगों के लिए अलग होता है। यह किसी भी एक व्यक्ति का हो सकने वाला सर्वाधिक बहुआयामी व्याखान है। शिव को दुनिया का सर्वोत्कृष्ट तपस्वी या आत्मसंयमी कहा जाता है। वह सजगता की साक्षात मूरत हैं। लेकिन साथ ही मदमस्त व्यक्ति भी हैं। एक तरफ तो उन्हें सुंदरता की मूर्ति कहा जाता है तो दूसरी ओर उनका औघड़ व डरावना रूप भी है। शिव एक ऐसे शख्स हैं, जिनके न तो माता-पिता हैं, न कोई बचपन और न ही बुढ़ापा। उन्होंने अपना निर्माण स्वयं किया है। वह अपने आप में स्वयभू हैं। आपने कभी भी कहीं भी उनके माता-पिता, परविार, उनके बचपन और उनके जन्म के बारे में नहीं सुना होगा। दरअसल, वह अजन्मा हैं।

‘शिव’ शब्द की ताकत

सिर्फ ‘शिव’… आपको इस शब्द की ताकत पता होनी चाहिए। यह सब सोचते हुए अब आप अपने तार्किक दिमाग में मत खो जाइए। ‘ क्या मैं शिव शब्द का उच्चारण करता हूं तो क्या मेरा धर्म पविर्तन हो रहा है?’ यह सब फिजूल की बातें हैं। यह तो उन मानवीय सीमाओं से परे जाने का एक रास्ता है, जिसमें इंसान अकसर फंसा रह जाता है। जीवन की बहुत गहन समझ के साथ हम उस ध्वनि या शब्द तक पहुंचे हैं, जिसे हम ‘शिव’ कहते हैं। यदि आपमें किसी चीज को ग्रहण करने की अच्छी क्षमता है, तो सिर्फ एक उच्चारण आपके भीतर बहुत शक्तिशाली तरीके से विस्फोट कर सकता है।

‘शिव’ का अर्थ और विज्ञान

शिव में ‘शि’ ध्वनि का अर्थ मूल रूप से शक्ति या ऊर्जा होता है। भारतीय जीवन शैली में, हमने हमेशा से स्त्री गुण को शक्ति के रूप में देखा है। मजेदार बात यह है कि अंग्रेजी में भी स्त्री के लिए ‘शी’(she) शब्द का ही इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन यदि आप सिर्फ “शि” का बहुत अधिक जाप करेंगे, तो वह आपको असंतुलित कर देगा। इसलिए इस मंत्र को मंद करने और संतुलन बनाए रखने के लिए उसमें “व” जोड़ा गया। “व” “वाम” से लिया गया है, जिसका अर्थ है प्रवीणता। ‘शि-व’ मंत्र में एक अंश उसे ऊर्जा देता है और दूसरा उसे संतुलित या नियंत्रित करता है। दिशाहीन ऊर्जा का कोई लाभ नहीं है, वह विनाशकारी हो सकती है। इसलिए जब हम ‘शिव’ कहते हैं, तो हम ऊर्जा को एक खास तरीके से, एक खास दिशा में ले जाने की बात करते हैं।

‘शिव’ का आशय है- रिक्तता या शून्यता

‘शिव’ शब्द का वास्तविक अर्थ ही है- जो नही है। ‘जो नहीं है’ से आशय है, जिसका अस्तित्व ही नहीं है। ‘जिसका अस्तित्व ही नहीं है’ का आशय है- रिक्तता, शून्यता। आकाशगंगाएं तो महज एक छोटी सी जगह हैं। सृष्टि का असल सार तत्व तो रिक्तता या कुछ न होने में है। इसी रिक्तता या कुछ न होना के गर्भ से ही तो सृष्टि का जन्म होता है। इस ब्रम्हांड के 99 फीसदी हिस्से में यही रिक्तता छाई हुई है, जिसे हम शिव के नाम से जानते हैं।

शिव की तीसारी आंख का अर्थ

शिव का वर्णन हमेशा से त्रिअंबक के रूप में किया जाता रहा है, जिसकी तीन आँखें हैं। तीसरी आँख वह आँख है जिससे दर्शन होता है। आपकी दो आँखें इन्द्रियां हैं, ये मन को सभी तरह की अनर्गल चीजें पहुँचाती हैं, क्योंकि जो आप देखते हैं वह सत्य नहीं है। ये दो आँखें सत्य को नहीं देख पातीं हैं, इसलिए एक तीसरी आँख, एक गहरी भेदन शक्ति वाली आंख को खोलना होगा। शिव की तीसारी आंख इन्द्रियों से परे है जो जीवन के असली स्व रूप को देखती है। जीवन को वैसे देखती है जैसा कि यह है। तो अगर आपको अपने जीवन में स्प ष्‍टता लाना है तो आपको अपनी तीसरी आंख खोलनी होगी।

योग के जन्मदाता -आदियोगी शिव

भारत में आध्यात्मिक प्रकृति की बात करें तो हर किसी का एक ही लक्ष्य रहा है – मुक्ति। आज भी हर व्यक्ति मुक्ति शब्द का अर्थ जानता है। कभी सोचा है ऐसा क्यों है? दरअसल, इस देश में आध्यात्मिक विकास और मानवीय चेतना को आकार देने का काम सबसे ज़्यादा एक ही शख्सियत के कारण है। जानते हैं कौन है वह? वह हैं शिव। आदि योगी शिव ने ही इस संभावना को जन्म दिया कि मानव जाति अपने मौजूदा अस्तित्व की सीमाओं से भी आगे जा सकती है। संसारिकता में रहना है लेकिन इसी का होकर नहीं रह जाना है। अपने शरीर और दिमाग को हर संभव इस्तेमाल करना है, लेकिन उसके कष्टों को भोगने की ज़रूरत नहीं है। कहने का मतलब यह है कि जीने का एक और भी तरीका है। हमारे यहां योगिक संस्कृति में शिव को ईश्वर के तौर पर नहीं पूजा जाता है। इस संस्कति में शिव को आदि योगी माना जाता है। यह शिव ही थे जिन्होंने मानव मन में योग का बीज बोया।

शिव की रात्रि -महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि समाज के अलग-अलग तबके द्वारा अलग अलग ढंग से देखी, समझी और मनाई जाती है। जो लोग परिवारो में रहते हैं या गृहस्थ हैं, उनके महाशिवरात्रि शिव के विवाह का दिन है। उनके हिसाब से महाशिवरात्रि वो दिन था, जब उन्होंने पहले सती और फिर पार्वती से विवाह किया था। जबकि तपस्वियों और साधकों के लिए ये वो दिन है, जिस दिन वह पूरी तरह से शांत और स्थिर हो गए। वह अचलेश्वर यानी पर्वत की तरह से बिल्कुल शांत और अचल हो गए। इस दिन शिव का एकाकार कैलाश के साथ हो गया और उन्होंने अपना सारा ज्ञान इस पर्वत को सौंप दिया।

महाशिवरात्रि से कैसे लाभ उठाएं?

तो वे सारे लोग जो अपनी मौजूदा स्थिति से थोड़ा और ज्यादा पाने की आकांक्षा रखते हैं, उनके लिए शिवरात्रि खासी अहमियत रखती है। उसमें भी महाशिवरात्रि खासतौर पर विशेष महत्व रखती है। योगिक परंपरा में महीने का 14वां दिन यानी शिवरात्रि साधना का दिन माना गया है। अध्यात्म मार्ग पर चलने वाले लोग इस दिन का इस्तेमाल एक महत्वपूर्ण अवसर के तौर पर करते हैं। महाशिवरात्रि वो रात मानी जाती थी, जब साल में कम से कम एक बार पूरी आबादी इस मौके का फायदा अपनी उच्चतर संभावनाओं को पाने के लिए उठाया करती थी। तो योगिक परंपरा ने इस मौके का फायदा उठाने के लिए दुनिया को एक सरल सा तरीका बताया कि इस दिन कम से कम 24 घंटे अपनी मेरुदंड को ऊर्ध्वाधर दिशा में सीधा रखें। ताकि आपके भीतर ऊर्जा का ऊपर की ओर चढ़ाव हो सके। इसलिए जरूरी है कि इस पूरी रात आप अपनी रीढ़ की हड्डी या मेरुदंड को सीधा रखें। मेरुदंड की क्षैतिक अवस्था शरीर के लिए नुकसानदेह हो सकता है, क्योंकि इस दिन ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर चढ़ती है। यह मेरी कामना और मेरा आशीष है कि इस रात आपको इस बात का अहसास हो सके कि आप कौन हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *