क्या आप भगवान को मानते हैं? क्यों और क्यों नहीं?

संत कबीर का एक दोहा है,

प्रेम गली अति सांकरी, तांह में दो न समाई।

जब मैं था तब हरि नहीं, जब हरि है मैं नाहिं।।

यहाँ कबीर साहब ने बहुत साफ शब्दों में ही यह बता दिया है कि जब हरि हैं, तब ‘आप’ की कोई जगह नहीं होती।

इसलिए भगवान की कोई भी परिभाषा, कोई भी धारणा यदि किसी व्यक्ति-विशेष से आ रही है, तो वो सिद्धांत मात्र ही हो सकती है, और इसी तरह हमारी दुनिया में कही गई हर बात कभी ‘उसको’ वर्णित नहीं कर सकती।

हम जिस तरह ‘है’ शब्द का इस्तेमाल अपनी आम दिनचर्या में करते हैं, कि कुर्सी है, बिस्तर है, तकिया है, वैसे ही यह कहना कि भगवान है, यह अति मूर्खतापूर्ण बात होगी।

क्योंकि यदि भगवान कुछ ऐसा है जिसका होना मुझे मेरी इंद्रियों से पता चल रहा है और मेरा मन उसको परिभाषित कर पा रहा है, तो ज़ाहिर सी बात है कि यह मेरी धारणाओं का भगवान तो मुझसे भी छोटा है, इतना छोटा कि मेरे मन ने भी इसको पकड़ लिया है।

पर इंसान का मन ही कुछ ऐसा है कि यदि उसे कोई सिद्धांत, कोई परिभाषा न दी जाए तो वो मानता नहीं, किसी विषय में कुछ न-जानना उसे डराता है, इसलिए वो हर चीज़ को ज्ञान के क्षेत्र में धकेलने की कोशिश करता है और वो ये दुस्साहस भगवान के साथ भी करता है।

नाम तो दे ही चुका है, अब इंसान को उसका काम, कार्यक्षेत्र, निवास, सब कुछ निर्धारित करना है, और दुनिया में न जाने ऐसी कितनी किताबें हैं और व्यक्ति हैं जो यह बताने में लगे हैं कि भगवान क्या है, कौन है, कहाँ रहता है, क्या करता है। उनको सब पता है। उनके पास सारी जानकारी है।

और बहुत सारे लोग ऐसे जवाबों से संतुष्ट भी हो जाते हैं क्योंकि ऐसा ही कोई जवाब सुनने की उनकी इच्छा थी।

पर इन सभी जवाबों और बातों का झूठ, आदमी को उसकी बेचौनी से ही पता चल जाता है। उसके सवालों की बढ़ती श्रृंखला से पता चल जाता है। भगवान के ऊपर सिद्धांत बना कर उनको बांच कर कोई शांति को प्राप्त नहीं हो पाया। यदि जीवन आज भी उतना ही नीरस और बेजान है तो आपको कोई हक नहीं है यह कहने का कि आप भगवान को जानते हैं।

भगवान को यदि आप बाहर कहीं किसी गली-कूचे में ढूंढ रहे हैं तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी, और साथ-साथ यह भी कहता हूँ कि इसके अलावा भी कहीं और नहीं मिलेगा।

क्योंकि भगवान आपकी खोज का परिणाम नहीं होता, भगवान आपकी खोज में भी नहीं होता, भगवान आपके जानने में है, आपकी जिज्ञासा में है, जो भी कुछ आपको सजीव बनाता है, जो भी आपके अंदर एक ईमानदार सवाल की तरह खड़ा हो जाता है, उस ईमानदारी में भगवान है, भगवान इस दुनिया का निवासी नहीं है, तो वो किसी और दूसरी दुनिया में भी नहीं रहता है। इसलिए उसे अनिकेत कहा गया है।

भगवान आपके जीवन की गुणवक्ता में है, आपकी सच्चाई और सरलता में है, वर्ना कहीं नहीं है।

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