भारतीय दर्शन में शिव, शक्ति एवं अर्ध्यनारीश्वर एक बेहद अहम् पात्र है , हर एक अपने आप में पूर्ण , पूरी तरह सक्षम । तीनो आध्यात्मिक उन्नति के अलग अलग आयाम ।
शिव
शिव की अवधारणा, दर्शन की दृष्टि से एक परम आनंद की अवस्था , जहाँ सहज रूप से परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है। अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी, वीतरागी हैं। सौम्य, आशुतोष होते हुए भी रुद्र हैं।मगर फिर भी द्वंदों से रहित सह-अस्तित्व और कल्याण की भावना का समावेश लिए लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। शिव जीवन के दो विपरीत छोर को हमेशा एक साथ दर्शाते है , परस्पर रूप से विपरीत भावो को सहज रूप से साधने का यह गुण, हम लोगो के लिए एक नायब सन्देश है। दुनियाँ में अमृत मिलेगा तो विष भी मिलेगा , सुख के साथ ही दुःख भी होगा , सृजन और प्रलय , जीवन और मृत्यु भी एक ही सिक्के के दो पहलु है । जीने के लिए दोनों को एक साथ साधना आना चाहिए।
शिव तांडव में भी दो विपरीत छोर को दर्शाते है , पहला प्रलयकारी रौद्र तांडव , दूसरा आनंद प्रदान करने वाला आनंद तांडव, इन दोनों तांडव के माध्यम से एक आध्यात्मिक ऊंचाई को दर्शाते है , जिसका ज्ञान चक्षु खुल जाए वह बस आनंद से भर जाता है और उसकी मायानगरी जलकर भस्म हो जाती है। रौद्र तांडव करने वाले शिव रुद्र कहे जाते हैं, आनंद तांडव करने वाले शिव नटराज।
फिर “नीलकंठेश्वर” नाम यह दर्शाता है की दुनियाँ में हलाहल तो मिलेगा ही , फिर चाहे वह शरीर में या मन के भीतर उतरे या बाहर दुनियाँ में रहे , नुकसान ही पहुचायेगा । किसी को तो शिव बन कर उसे आत्मसात करना पड़ेगा।
शिव का हर साथी भी दर्शन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण सन्देश देता है। शिव वाहन नंदी अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक है। यह गुण ग्रहणशीलता का मूल तत्व है। आप बस अस्तित्व को, सृष्टि की परम प्रकृति को सुनना चाहते हैं। आप बस सुनते हैं। नंदी का यही गुण है, वह पूरी तरह सक्रिय, पूरी सजगता से, जीवन से भरपूर शांत चित्त के साथ बैठा है , बस यही ध्यान है।
शक्ति
शक्ति याने ऊर्जा , -भारतीय दर्शन में इसे जीवन का मूल आधार माना गया है । शक्ति के बिना तो शिव भी शव के सामान है । शक्ति याने प्रकृति , शक्ति माने सृजन, प्रकृति की सृजन क्षमता। परिस्थिति के हिसाब से शक्ति के भी कई रूप माने गए है सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले रूप में “गौरी या माँ ” ( सृजनकर्ता) , परिवार की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने को तैयार “अम्बे (सरंक्षक) और जरुरत पड़ने पर पूरी दुनियाँ से भिड़ने को तैयार “काली” (विध्वंसक )।
शिव और शक्ति का संबंध
शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं। वे एक दुसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं।
- शिव कारण हैं; शक्ति कारक।
- शिव संकल्प करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी।
- शक्ति जागृत अवस्था हैं; शिव सुसुप्तावस्था।
- शक्ति मस्तिष्क हैं; शिव हृदय।