मानव शरीर में 112 चक्र होते हैं, लेकिन आदियोगी शिव ने इन्हें सात वर्गों में बांटा था और सप्त ऋषियों को दीक्षित किया था। इसी वजह से ये आम तौर पर सात चक्रों के रूप में जानें जाते हैं। जानते हैं…
धरती की हर चीज़ इंसानी सिस्टम के विकास में शामिल रही है
अगर हम इस धरती पर मौजूद जीवन की प्रकृति, या धरती पर मौजूद किसी भी भौतिक वस्तु की प्रकृति को जानना चाहते हैं, चाहे वह सजीव हो या निर्जीव तो इसके लिए सबसे बेहतर तरीका है अपने खुद के सिस्टम पर गौर करना।
क्योंकि इस शरीर के निर्माण में इन सभी चीजों को शामिल किया गया है। इंसानी सिस्टम में एक सौ चौदह ऊर्जा-केंद्र होते हैं, जिन्हें हम ‘चक्र’ कहते हैं। अगर ये चक्र अपनी पूर्णता पर पहुंच जाएं तो इंसान शरीर-हीनता की स्थिति का अनुभव करने लगेगा। यह भी अपने आप में मानव के विकास की पूर्णता का एक प्रमाण है। वर्ना जो प्राणी अभी भी क्रमिक विकास के दौर में हैं, उनमें यह संभव नहीं हो पाएगा।
112 चरों से 7 चक्र कैसे बनें?
इन एक सौ चौदह चक्रों में से दो चक्र शरीर के बाहर होते हैं, जिन्हें एक अलग आयाम के रूप में देखा जाता है। कुछ पद्धतियों में शरीर को नौ आयामों में देखते हैं, जिसमें सात हमारे सिस्टम में और दो बाहरी आयाम होते हैं।
हालांकि कुछ मायने में ये सही भी है, लेकिन सामान्य योगिक पद्धति इसे ऐसे नहीं देखती। सामान्य योगिक पद्धति इसे एक सौ चौदह में से दो कम करके देखती है। दरअसल, ये दो चक्र भौतिक ढांचे के बाहर होते हैं। असल में, हम इन्हें ऐसे देखते हैं कि हम किसके साथ काम कर सकते हैं और किसके साथ नहीं। इन एक सौ बारह चक्रों के साथ हम काम कर सकते हैं, इनमें से अगर एक सौ आठ चक्रों पर काम करके उन्हें तैयार व सक्रिय किया जाए तो अंतिम चार स्वाभाविक तौर पर सक्रिय हो जाते हैं। इसके आधार पर इनमें से हरेक के सात आयाम व सोलह पहलू होते हैं, इस तरह से यह एक सौ बारह होते हैं। और ये एक सौ बारह अपने इन सात आयामों में, आमतौर पर सात चक्रों या योग के सात स्कूल के तौर पर जाने जाते हैं।
योग के सात स्कूल शुरू किए सप्त ऋषियों ने
योग के इन सात स्कूलों का श्रेय सप्तऋषियों को जाता है, क्योंकि इन्हीं लोगों ने ये सात स्कूल तैयार किए। चूंकि आदियोगी शिव को पता था कि सप्त ऋषियों में से कोई भी अकेला इन सारी प्रक्रियाओं को ग्रहण कर पाने में सक्षम नहीं होगा, इसलिए उन्होंने इसके सोलह पहलुओं को हरेक ऋषि को दिया। इस तरह से मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्धि और अज्ञा से जुड़ी अलग-अलग विधाएं सामने आईं। हालांकि सातवें चक्र को आप वास्तव में विधा नहीं कह सकते, इस पर चलने वाले लोग विधाहीन हैं। इसलिए उनका कोई सिस्टम नहीं है। अगर आप किसी चीज को विधा कहना चाहते हैं, तो उसके लिए एक सिस्टम का होना जरूरी है। तो जिस आयाम को किसी प्रक्रिया में बांधा नहीं जा सकता, फिर भी उस आयाम तक पहुंचा जा सकता है, वह आयाम सहस्रार है।