नंदनार: एक संत जिनके लिए पत्थर का नंदी एक ओर खिसक गया

सद्‌गुरु एक नयनार संत, नंदनार की कहानी सुना रहे हैं, जिनके लिए एक मंदिर में पत्थर का नंदी एक ओर खिसक गया था।

तमिलनाडु में एक सुंदर घटना घटी। एक बंधुआ मजदूर था जो समाज में अछूत का जीवन जी रहा था। उसका कोई नाम नहीं था। जो समाज किसी को दास बनाना चाहता है, वह सबसे पहले आपका नाम छीन

लेता है क्योंकि नाम से एक शक्तिशाली पहचान जुड़ी होती है। वे मुंबई को बांबे बना देंगे, बेंगलुरू को बैंगलोर बना देंगे, तिरुवनंतपुरम को त्रिवेंद्रम बना देंगे।

इस आदमी का कोई नाम नहीं था और आम तौर पर उसे बस हलवाहे के नाम से जाना जाता था। बचपन से ही शिव का विचार उसे कौतुहल (जिज्ञासा भरी अनोखी भीतरी स्थिति) में डालता था। एक बंधुआ मजदूर के रूप में उसे ख़ुद का विचार बनाने की इजाजत नहीं थी, मगर शिव का विचार उसे जोश से भर देता था।

जहां वह रहता था, वहां से सिर्फ पच्चीस किलोमीटर दूर तिरुपुंगुर का प्रसिद्ध शिव मंदिर था।

वह हमेशा से इस मंदिर में जाना चाहता था क्योंकि उसे लगता था कि शिव उसे बुला रहे हैं। मगर अपने जीवन पर उसका अधिकार नहीं था, इसलिए वह मंदिर जा नहीं पा रहा था। उसने कई बार जमींदार को अपनी बात समझाने की कोशिश की – ‘मैं सिर्फ एक दिन के लिए मंदिर जाकर वापस आ जाऊंगा।’ जमींदार हमेशा कहता, ‘आज निराई करनी है। कल खाद डालनी है। परसों तुम्हें जमीन जोतनी है। नहीं, तुम एक भी दिन बर्बाद नहीं कर सकते। तुम्हें क्या लगता है? तुम वैसे ही किसी काम के नहीं हो। तुम एक पूरा दिन बर्बाद करना चाहते हो? नहीं।’

शिव दर्शन की लालसा गहराने लगी

मगर उसके भीतर यह कौतुहल (जिज्ञासा भरी अनोखी भीतरी स्थिति) गहरा होने लगा। वह तिरुपुंगुर में शिव के दर्शन करना चाहता था। एक दिन उसके पूरे शरीर में एक नई तरह की ऊर्जा फड़कने लगी। फिर वह जाकर जमींदार के सामने एक अलग तरह के गौरव के साथ जाकर खड़ा हो गया, जिस तरह का गौरव एक बंधुआ मजदूर जानता ही नहीं, न ही उसके पास होने की कल्पना की जाती है। जमींदार फिर शुरू हो गया, ‘मूर्ख कहीं के! पिछली बार तुम्हारी मां बीमार थी, उससे पहले बहन की शादी थी, उससे पहले तुम्हारी दादी तीन बार मरी। अब तुम मंदिर जाना चाहते हो, यह नहीं हो सकता।’वह बोला, ‘मैं आज ही सारा काम कर दूंगा। कल सिर्फ एक दिन की बात है, मैं जाकर वापस आ जाऊंगा।’

उस एक पल में जमींदार ने हार मानकर कहा, ‘ठीक है, जाओ। शाम से पहले वापस आ जाना।’ फिर अचानक उसे एहसास हुआ कि उसने ये क्या कह दिया। वह आगे बोला, ‘जाने से पहले तुम्हें पूरे चालीस एकड़ जमीन को जोतना होगा। अभी शाम है। सुबह से पहले तुम जुताई पूरी करके ही मंदिर जा सकते हो।’

हलवाहा इतना मूर्ख नहीं था कि इसकी कोशिश भी करता। वह चुपचाप सोने चला गया। उसका पूरा शरीर फड़क रहा था। वह जानता था कि इस बार उसे मंदिर जाना ही है, चाहे इसका नतीजा कुछ भी हो।

शिव ने खुद ज़मीन जोत दी

सुबह जब वह उठा, तो गांव में हंगामा मचा हुआ था। वह यह देखकर हैरान रह गया कि सारी चालीस एकड़ जमीन जोती हुई थी। जमींदार का मुंह खुला का खुला रह गया था। जमींदार के बीवी-बच्चे आकर हलवाहे के पैरों पर गिर पड़े। वह हमेशा सोचता था कि शिव के सामने प्रार्थना करके वह प्रकृति के नियमों को तोड़ सकता है, बदल सकता है। मगर मनुष्य के नियम इतने क्रूर हैं कि आप कभी उन्हें बदल नहीं सकते। मगर यहां मनुष्य और देवता और प्रकृति, सभी के नियम टूट गए थे।

लोगों ने आकर उसके हाथों में चांदी के सिक्के रख दिए, किसी ने उसके हाथ में भोजन का थैला रख दिया। किसी ने उसे छड़ी पकड़ा दी और कहा, ‘यह मंदिर जा रहा है, इसे ईश्वर ने खुद चुना है। शिव ने इसके लिए खुद आकर चालीस एकड़ जमीन जोत दी।’

पत्थर की मूर्ती एक ओर खिसक गई

वह दिल में परम आनंद लेकर मंदिर गया। मगर एक अछूत का जीवन जीने के कारण वह नहीं भूला था कि पुजारी उसे मंदिर की देहरी पार नहीं करने देंगे। वह मंदिर के बाहर खड़ा रहा। निश्चित रूप से शिव अपने भक्त के लिए सब बदल देते हैं, मगर पुजारी नहीं झुकते। मगर वह सिर्फ एक बार शिव के दर्शन करना चाहता था। तब, उसके रास्ते में खड़ी नंदी की विशाल मूर्ति एक ओर खिसक गई। आज भी तिरुपुंगुर में नंदी की मूर्ति एक ओर को है।

बाद में लोग इस शख्स को नंदनार बुलाने लगे और वह एक मशहूर संत बन गया। आप उसे भक्त नहीं कह सकते, उसका पूरा जीवन बस कौतुहल (जिज्ञासा भरी अनोखी भीतरी स्थिति) था और उसने कभी उस कौतुहल को जाने नहीं दिया।

कौतुहल के साथ जीने से होगी प्रगति

अधिकांश तार्किक दिमागों के साथ यह समस्या होती है कि अगर कोई चीज आपको कौतुहल (जिज्ञासा भरी अनोखी भीतरी स्थिति) में डालती है, तो आप एक मूर्खतापूर्ण उत्तर देकर उसे वहीं ख़त्म कर डालते हैं। अधिकांश दिमाग कौतुहल के साथ जीने में असमर्थ होते हैं। वे सीधे निष्कर्ष(कॉनक्लूशन) निकाल लेते हैं। हर बार जब आपके मन में कौतुहल आता है, तो आप अपने मूर्खतापूर्ण विचारों से उसका जवाब निकालने की कोशिश करते हैं। यह जीवन को धोखा देने का एक तरीका है। निष्कर्ष(कॉनक्लूशन) निकालते हुए आप अपने लिए ही दरवाजे बंद कर लेते हैं।

बहुत सारी चीजों का कोई जवाब नहीं है। आज कई बड़े वैज्ञानिक कहते हैं कि हम ब्रह्मांड की प्रकृति को नहीं जानते, और हम इसे कभी जान भी नहीं पाएंगे। इसलिए इस बात को स्वीकार कीजिए कि आपके पास ऐसे सवालों का जवाब देने के लिए बुद्धि नहीं है, जिनके जवाब आज तक नहीं मिले। इस पर कायम रहिए – ऐसा इंसान ईमानदार होता है। जो जानता है कि उसके पास उत्तर नहीं हैं, वह एक ईमानदार इंसान है। जो एक मूर्खतापूर्ण तार्किक जवाब खोज लेता है, वह एक मूर्ख इंसान है मगर उसे लगता है कि वह बहुत होशियार है।

बस इसी कौतुहल (जिज्ञासा भरी अनोखी भीतरी स्थिति) के साथ जीने की जरूरत है। जब आपका मन आपको परेशान करे, बस उस कौतुहल को बनाए रखें। बस इतने की ही जरूरत है।

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