सावधान! खतरे में धरती नहीं, हम हैं!

हमारी पीढ़ी ने पृथ्वी का सबसे बड़ा नुकसान किया है। आज हम पर्यावरण के लिए जो कुछ भी कर रहे हैं, वह न तो सेवा है, न ही कोई बड़ी उपलब्धि, यह हमारे जीने-मरने का सवाल है। गौर से देखें तो आज खतरे में धरती नहीं, हम हैं।

दुर्भाग्यवश, हम ऐसे युग में रह रहे हैं, जब मनुष्य की चेतना इतनी बंटी हुई है कि हम भूल गए हैं कि असल में ‘पर्यावरण‘ जैसी कोई चीज ही नहीं है। अगर कोई व्यक्ति चाहे, तो वह खुद में पूरी दुनिया को महसूस कर सकता है। इस विकल्प को न आजमाने के कारण ही मानवता और पर्यावरण अलग-अलग चीजें लगती हैं।

पेड़ हमारे सबसे निकट संबंधी हैं। पेड़ जो सांस छोड़ते हैं, हम उसे अंदर लेते हैं, हम जो सांस छोड़ते हैं, उसे वे अंदर लेते हैं। वे हमारी आधी श्वसन प्रणाली हैं। आध्यात्मिकता ऊपर या नीचे देखने का नाम नहीं है, यह अपने अंदर झांकने का नाम है। अपने भीतर देखने पर आपको पहली बुनियादी सच्चाई यह पता चलती है कि आप अपने आस-पास की हर चीज का एक हिस्सा हैं।

इस ज्ञान के बिना कोई आध्यात्मिक प्रक्रिया नहीं होती है।

पर्यावरण और मानव चेतना को अलग नहीं किया जा सकता। इंसान की असंवेदनशीलता के कारण ही आज हमें दुनिया को बचाने की बात करनी पड़ रही है, जो एक मूर्खतापूर्ण विचार है। क्योंकि धरती मां हमारी सुरक्षा करती हैं, हम उनकी नहीं। इन सब चीजों की कोई जरूरत ही नहीं होगी, अगर इंसान यह बात समझ जाए कि चाहे हम ये पसंद करें, या नहीं करें, हम इस अस्तित्व का एक हिस्सा हैं।

आज आधुनिक विज्ञान ने यह साबित कर दिया है कि यह पूरा अस्तित्व एक ऊर्जा है। आपके शरीर का हर कण लगातार ब्रह्मांड के संपर्क में है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है जो आपकी ज़िन्दगी को नहीं बदलता। लेकिन आध्यात्मिक प्रक्रिया इस बोध को बढ़ाते हुए इस तथ्य को आपके लिए एक जीवंत अनुभव बना देती है। योग का अर्थ है, संयोग। संयोग का मतलब है कि व्यक्ति के स्व की सीमाएं नष्ट हो जाती हैं और आप दुनिया को अपने साथ एकाकार महसूस करते हैं। यह बात अगर आपके लिए एक जीवंत अनुभव बन जाए, फिर आप स्वाभाविक रूप से अपने आस-पास की चीजों का उसी तरह ध्यान रखते हैं, जैसे अपना।

1998 में, विशेषज्ञों की एक टीम ने भविष्यवाणी की थी कि 2025 तक तमिलनाडु एक रेगिस्तान बन जाएगा। मुझे भविष्यवाणियां पसंद नहीं हैं। लोग आंकड़ों और संख्याओं के आधार पर भविष्यवाणियां करते हैं, वे इन बातों को ध्यान में नहीं रखते कि इंसान की आकांक्षा और इच्छा क्या है और उसके हृदय में क्या धड़कता है। मैंने तमिलनाडु का एक चक्कभर लगाकर देखने का फैसला किया। मैंने पाया कि शायद हम 2025 तक भी न पहुंच पाएं! छोटी नदियां सूख चुकी थीं और नदियों के तट पर घर बन चुके थे। वहां की मिट्टी में खजूर के पेड़ों तक के लिए पर्याप्त नमी नहीं बची थी, जबकि खजूर के पेड़ रेगिस्तानी इलाकों में उगने वाले पेड़ हैं।

इसलिए, हमने 12 करोड़ 40 लाख पेड़ लगाने के लिए प्रोजेक्ट ग्रीनहैंड्स नामक एक परियोजना शुरू की। पहले सात साल हमने लोगों के दिमाग में पेड़ लगाए, जो सबसे मुश्किल इलाका होता है! ऐसा हो जाने पर, उन पेड़ों को जमीन पर लगाना अधिक आसान होता है। मेरा आंकड़ा सुन कर मेरे आस-पास हर कोई डर गया। मैंने उनसे पूछा: ‘तमिलनाडु की जनसंख्या क्या है?’ जवाब मिला, ‘6 करोड़ 20 लाख।’ मैं बोला, ‘अगर हम सब लोग आज एक पेड़ लगाएं, उसे कुछ सालों तक सींचें और फिर एक और पेड़ लगाएं, तो यह लक्ष्य पूरा हो जाएगा।’

एक भिखारी भी एक पेड़ लगाकर अपने लिए एक जीता-जागता ऑफिस पा सकता है! ऐसा करने के लिए आपको अमीर होने की जरूरत नहीं है, कोई भी यह काम कर सकता है। पर्यावरण किसी एक का काम नहीं है, यह हर एक का काम है।

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