ब्रह्मा संसार के रचेता हैं। उन्हीं ने सम्पूर्ण संसार की रचना की है। सर्व मानव, सर्व पशु, सर्व वस्तु की रचना उन्होंने की। परंतु ब्रह्मा का जन्म विष्णु की नाभि में खिले कमल से हुई। इस तरह, इस संसार में सबसे पहले भगवान विष्णु आये।
भगवान शिव एवं भगवान विष्णु के भक्तों के बीच इस विषय को लेकर हमेशा से ही मतभेद बनी रही है। भगवान शिव के भक्तों की दृष्टि में वे स्वयंभू हैं, वहीं वैष्णवों की दृष्टि में भगवान विष्णु स्वयंभू हैं।
इस कहानी में भगवान विष्णु को शिव से अधिक महान दर्शाया गया है। यहाँ शिव सांसारिकता से दूर होने के कारण स्वयं की रक्षा करने में असमर्थ रहे।
एक असुर की अनंत भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उसे एक वरदान दिया। उस असुर ने ऐसा वरदान माँगा जिससे वह जिस भी वस्तु को स्पर्श करे वो भस्म हो जाये। यह वरदान मिलते ही असुर ने शिव पर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करना चाहा। शिव स्वयं का जीवन बचाने वहाँ से भागे। असुर ने उनका पीछा किया। भयभीत, शिव विष्णु से सहायता लेने पहुंचे। विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया व असुर के आगे प्रकट हुए। मोहिनी की सुंदरता से मोहित, असुर ने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। मोहिनी ने विवाह के लिए यह शर्त रखी कि असुर को मोहिनी की ही तरह नृत्य करना होगा। असुर मोहिनी को देख देख नृत्य करने लगा। नृत्य के मध्य में मोहिनी ने अपने सिर पर हाथ रखा। असुर ने भी वही किया और भस्म बन गया। शिव ने अपना जीवन बचाने के लिए विष्णु की प्रशंसा में गीत गाये जिन्हें हम विष्णु पुराण के नाम से जानते हैं।
इस कहानी में भगवान शिव को विष्णु से अधिक महान दर्शाया गया है। शिव सांसारिक न होने के कारण अनंत हैं। उनका न प्रारम्भ है और ना ही अंत।
एक बार भगवान विष्णु व भगवान ब्रह्मा में मतभेद हो गयी। दोनों ही स्वयं को शीर्ष मान रहे थे। इसी मतभेद में ब्रह्मा व विष्णु के मध्य एक अग्नि का स्तम्भ प्रकट हुआ। ब्रह्मा ने बतख का रूप लिया और इस स्तम्भ का प्रारंभ ढूंढने ऊपर उड़ना चालू किया। विष्णु ने सुअर का रूप लिया और स्तंभ का अंत ढूंढने नीचे जाना चालू किया। जब दोनों थकने के बाद भी असफल रहे, तब उस स्तंभ में से शिव प्रकट हुए। दोनों ब्रह्मा व विष्णु को एहसास हुआ कि अग्नि का स्तंभ देवों के देव, महादेव, का रूप था। और यह कि महादेव सब से महान हैं क्योंकि उनका न कोई प्रारम्भ है ना ही कोई अंत।
विष्णु सांसारिक जीवन जीते हैं। वहीं शिव सांसारिकता से दूर हैं। मेरे मायने में न ही शिव बड़े हैं ना ही विष्णु। जिस समय जिस गुण की आवश्यकता होती है, उस समय भगवान वह रूप धारण करके मानवता व देवों की रक्षा करने प्रकट हो जाते हैं।