पुराणों के अनुसार मनुष्य के एक वर्ष के बराबर देवताओं का एक दिन होता है। ऐसे ३६० दिन के बराबर देवताओं का एक वर्ष होता है। देवाताओं के बारह हजार सालों का एक कलियुग होता है और द्वापर, त्रेता और सत्युग की अवधि क्रमशः इसकी दुगुनी, तिगुनी व चौगुनी होती है। चार युगों की अवधि को चतुर्युग कहते हैं। ऐसे एक हजार चतुर्युगों का ब्रह्मा का एक दिन व इतने ही अवधि की उनकी एक रात होती है। (इस एक हजार चतुर्युग की अवधि को कल्प कहा गया है। सृष्टि ब्रह्मा के जागरण काल में उनके सङ्कल्प से उत्पन्न होती है और उनके सोने के साथ ही उनमें विलीन हो जाती है। इस प्रकार ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न सृष्टि का जीवनकाल ब्रह्मा के दिन पर्यन्त ही रहता हैै और ब्रह्मा की रात में वह अव्यक्त अवस्था में रहती है।) इस प्रकार दो कल्पों का ब्रह्मा का एक दिन रात होता है। ऐसे ३६० दिन रात का ब्रह्मा का एक वर्ष होता है। ऐसे सौ वर्षों की ब्रह्मा की कुल आयु है। इस अवधि के बाद ब्रह्मा प्रकृति में लीन हो जाते हैं और सृष्टि में कुछ भी नहीं रह जाता।
ब्रह्मा की अपनी आयु के हिसाब से उनकी आयु के पचास वर्ष बीत चुके हैं और वर्तमान कल्प उनकी आयु के एक्यावनवें वर्ष का पहला दिन है। इस कल्प के भी चौदह मन्वान्तरों में से छह बीत चुके हैं और सातवें मन्वन्तर का अट्ठाइसवाँ कलियुग चल रहा है जिसके ५१२० साल बीत चुके हैं।(एक मन्वन्तर में तीस करोड़ सरसठ लाख बीस हजार साल {७१ चतुर्युगों से थोड़ा अधिक काल} होते हैं। पुराणों में ब्रह्मा की आयु से सम्बन्धित ये ही तथ्य बताये गये हैं।
विष्णु और शिव की आयु के बारे में पुराण अस्पष्ट हैं। इसके दो कारण हो सकते हैं। एक तो यह कि इनकी व इनके लोकों की स्थिति ब्रह्मा द्वारा रचित सृष्टि के परे है। दूसरी बात यह हो सकती है कि ये देवता ब्रह्मा द्वारा रचित सृष्टि के मध्य समय समय पर अपनी इच्छा से प्रकट होते हैंं। जो भी हो उनके वर्णन से यह प्रतीत होता है कि इन लोगों की वास्तविक आयु का आकलन सम्भव नहीं है।