खुद श्रीकृष्ण ने बताएं है मोक्ष पाने के ये 10 आसान रास्ते

हर इसांन के जीवन में कभी न कभी ऐसा  समय आता है, जब वह बेहद परेशान हो जाता है। उसे समज नहीं आता क्या सही है और क्या गलत। ऐसे समय में भगवान श्रीकृष्ण की कहीं कुछ आसान बातें आपका दुख दूर सक सकती है। भगवान कृष्ण के बताए गए कुछ अनमोल वचनों का पालन करके कोई भी मनुष्य जीवन का हर सुख और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।

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1. दानेन तपसा चैव सत्येन च दमेन च।।

ये धर्ममनुवर्तन्ते ते नरा: स्वर्गगामिन: ।।

अर्थ-

जो इंसान समय-समय पर दान और तपस्या करता है, हमेशा सच बोलता है और अपनी इंद्रियों को अपने वश में रखता है, ऐसे मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति जरूर होती है।

2. मातरं पितरं चैव शुश्रूषन्ति च ये नरा: ।

भ्रातृणामपि सस्त्रेहास्ते नरा: स्वर्गगामिन: ।।

अर्थ-

जो मनुष्य माता-पिता की सेवा करते हैं और भाइयों के प्रति सम्मान और प्रेम की भावना रखते हैं, ऐसे लोगों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

3. स्नानं दानं जपो होम: स्वाध्यायो देवतार्चनम्।

यस्मिन् दिने न सेव्यन्ते स वृथा दिवसो नृणाम्।।

अर्थ-

जो मनुष्य हर दिन स्नान, दान, हवन, मंत्रोच्चारण और देवपूजन करता है, उसे निश्चित ही जीवन का हर सुख मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

4. विष्णुरेकादशी गंगा तुलसीविप्रधनव: ।

असारे दुर्गसंसारे षट्पदी मुक्तिदायिनी।।

अर्थ-

भगवान विष्णु, एकादशी का व्रत, गंगा नदी, तुलसी, ब्राह्मण और गाय- ये 6 ही इस संसार से मुक्ति पाने का रास्ता बनते हैं, अत: इन सभी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

5. अश्र्वत्थमेकं पिचुमन्दमेकं न्यग्रोधमेकं दश चिणीकान्।

कपित्थबिल्वामलकीत्रयं च पंचम्ररोपी नरकं न पश्येत्।।

अर्थ-

एक पीपल, एक नीम, एक बड़, दस चिचड़ा, तीन, कैथ, तीन बेल, तीन आंवले और पांच आम के पेड़ लगाने वाले मनुष्य को कभी नर्क का मुंह नहीं देखना पड़ता।

6. गोमूत्रं, मोमयं, दुग्धं गोधूलिं गोष्ठगोष्पदम्।

पकसस्यान्वितं क्षेत्रं दृष्टा पुष्य लभेद् धुवम्।।

अर्थ-

गोमूत्र, गोबर, गोदुग्ध, गोधूलि, गोधाना, गोखुर और पकी हुए फसद से भरा खेत देख देने मात्र से ही पुण्य की प्राप्ति हो जाती है।

7. विहाय कामान् य: सर्वान पुमांश्र्चरति नि: स्पृह।

निर्ममो निरहंकार स शान्तिमधिगच्छति।।

अर्थ-

जो पुरुष अपनी सभी कामनाओं का त्याग करके अहंकाररहित, क्रोधरहित और लालसारहित हो जाता है, वहीं शांति और मोक्ष को प्राप्त करता है।

8. यदच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्दातीतो विमत्सर:।।

सम: सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।

अर्थ-

जो मनुष्य हर परिस्थिति में संतुष्ट रहता है, जिसका मन सुख और दुख दोनों में शांत रहता है और लाभ और हानी दोनों ही हालातों में एक समान व्यवहार करता है, वह मोक्ष को प्राप्त करता है।

9. ज्ञेय: स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काड्क्षति।

निद्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात् प्रमुच्यते।।

अर्थ-

जो मनुष्य न तो किसी से दुश्मनी करता है, न ही किसी से आशा रखता है, ऐसा मनुष्य परम आनंद को पाता है, क्योंकि राग-द्वेष से रहित मनुष्य हर दुख से मुक्त हो जाता है।

10. हिंसापराश्र्च ये केचिद् ये च नास्तिकवृत्तय:।

लोभमोहसमायुक्तास्ते वै निरयगामिन: ।।

अर्थ-

जो लोग प्राणियों की हिंसा करते हैं, नास्तिक व्यक्ति के घर जाकर रहते हैं, हमेशा लालट और मोह में फंसे रहते हैं , ऐसे लोग नर्क में जाते हैं। इन सभी कामों से दूर रहने वाले को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

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