भगवान कृष्ण और अर्जुन के बीच कभी कोई युद्ध नहीं हुआ। ना ही किसी पुराण, ना महाभारत, ना किसी लोककथा में इसका वर्णन है। हालाँकि, ये झूठी कहानी कुछ नाटक-लेखकों ने १८९० में बनायीं।
गयोपाख्यानं नामक एक तेलुगु नाटक को चिल्कामर्ति लक्ष्मी नरसिम्हन नाम व्यक्ति ने १८९० में लिखा।[1] इसे प्रचण्ड यादवं भी कहा जाता है। ये नाटक पूर्णतः काल्पनिक था। लेकिन जैसा आजकल भारत में होता है, हम बिना स्त्रोत जाने सुनी सुनाई बातों को सच मान लेते हैं। इसलिए इसे समय समय पर टीवी आदि पर मसाला लगा कर परोसा गया और मूर्ख जनता इसका सेवन करती रही।
कहानी कुछ इस प्रकार थी:
एक बार गया नामक एक गन्धर्व द्वारका के ऊपर से अपने विमान में बैठ कर जा रहा होता है। उड़ते वक़्त वो नीचे पान थूकता है जो भगवान कृष्ण के हाथों पर लगता है। भगवान कृष्ण ये देख कर क्रोधित हो जाते हैं और गया को जान से मारने की धमकी देते हैं।
ये सुन कर गया डर जाता है। वो इंद्र के पास जाता है और बोलता है कि मुझे भगवान कृष्ण से बचाइए। इंद्र बोलते हैं कि मैं कृष्ण को युद्ध में हारने में असमर्थ हूँ। फिर वो भगवान शिव के पास जाता है लेकिन भगवान शिव भी बोलते हैं कि वो कृष्ण को हरा नहीं सकते। ये सुन कर गया निराश हो जाता है।
उड़ता उड़ता वो नारद मुनि के पास पहुँचता है। नारद मुनि उसे देख कर सब समझ जाते हैं और सलाह देते हैं कि तुम अर्जुन के पास जाओ और उससे प्रार्थना करो कि वो तुम्हें कृष्ण से बचाये। लेकिन, तुम पहले अर्जुन को ये ना बताना कि युद्ध किसके साथ करना है। बस बोल देना एक राजा मुझे मारना चाहता है।
अर्जुन के सामने जब गया रोते हुए जाता है तो अर्जुन तुरंत गया को वचन देते हैं कि मैं तुम्हें उस राजा से बचाऊँगा क्योंकि क्षत्रिय का धर्म है शरणार्थी की रक्षा करना। लेकिन जब अर्जुन को पता चलता है कि युद्ध भगवान कृष्ण से करना है तो वो सोच में पड़ जाते हैं।
इस तरह, भगवान कृष्ण और अर्जुन के बीच युद्ध होता है। अंततः, कोई जीतता नहीं है और भगवान शिव दोनों को मनाने आते हैं। इस तरह एक बहुत बड़ा विध्वंश होने से बच जाता है।
समकालीन प्रतिक्रिया: क्योंकि कहानी पूरी तरह काल्पनिक थी तो ज़ाहिर सी बात है कि धार्मिक हिन्दुओं को भगवान कृष्ण, भगवान शिव और अर्जुन का ये विचित्र रूप पसन्द नहीं आया। कृष्ण अपनी सौम्यता के लिए प्रचलित हैं और पूरे महाभारत युद्ध में वो सिर्फ़ एक बार क्रोध प्रदर्शित करते हैं। इसी प्रकार अर्जुन कृष्ण के परम भक्त हैं और कभी कृष्ण से लड़ने का सोच ही नहीं सकते। साथ ही कई लोगों को ये बात भी पसंद नहीं आयी कि लेखक नारायण और शिव के बीच युद्ध कराने वाला था, फिर ये दिखा दिया कि शिव खुद पीछे हट जाते हैं।
लेकिन, क्योंकि ये नाटक उस वक़्त के भद्रलोगों में बड़ा प्रचलित था और इसकी लाखों प्रतियाँ बिकीं तो नाटक कंपनी ने पैसे को सच के ऊपर महत्व दिया। उन्हें पता था कि हिन्दू क्या ही करेंगे! और वैसे भी जनता तो मूर्ख है और ख़ुद कभी ग्रन्थ पढ़ेगी नहीं। तो उन्होंने इस काल्पनिक कहानी को सच की तरह साल दर साल परोसा।
हालाँकि सबसे चौकाने वाली बात ये है कि आज भी जनता धर्म को टीवी से सीखती है। बड़े बड़े चैनल नमक मिर्च लगा कर भगवान के चरित्र की सारी अच्छाइयाँ छुपा देते हैं और उन्हें बस एक साधारण इन्सान की तरह पेश करते हैं। कई चैनल वाले तो भगवान को बुरा या गलत दिखाने में भी शरमाते नहीं हैं।
और फ़िर हम सोचते हैं कि हमारी संस्कृति कैसे ख़त्म होती जा रही है और कैसे कोई भी ऐरागैरा सेलिब्रिटी हमारा मज़ाक उड़ा कर हमें पिछड़ा या असभ्य धर्म बोल देता है।
सोच कर देखिये कि कैसे हम सब के दिमाग़ में धीरे धीरे जहर घोला जाता रहा है!
फिर समझ आएगा कि कैसे अपने ही देश में हमें अपनी ही संस्कृति से घृणा करना सिखाया जाता है!