विष्णु जी ने कृष्णा अवतार क्यों धारण किया?

दानव, दैत्य, आसुरी स्वभाव के मनुष्य और अत्याचारी राजाओं के पापों से त्रस्त पृथ्वीदेवी गौ का रूप धारण कर अनाथ की भांति रोती-बिलखती हुई अपनी व्यथा सुनाने के लिए ब्रह्माजी के पास गई।

पृथ्वी ने ब्रह्माजी से कहा–

‘जो लोग भगवान की भक्ति नहीं करते हैं, गुरु, देव व भक्तों के निंदक हैं, माता-पिता, गुरू, स्त्री, पुत्र व असहाय पालनीय-योग्य का पालन नहीं करते हैं, मित्रदोही, झूठी गवाही देने वाले, विश्वासघातक, हरिनाम को बेचने वाले, लोभी, जीवहिंसक हैं और पूजा, यज्ञ, व्रत, उपवास कुछ नहीं करते, ऐसे दैत्यों के भीषण भार से मैं पीड़ित हूँ।’

ब्रह्माजी ने पृथ्वी को धीरज बँधाया और सभी देवताओं व शिवजी को साथ लेकर क्षीरसागर के तट पर श्रीविष्णु के पास गए। वहां उन्होंने पुरुषसूक्त से भगवान का स्तवन किया।फिर ब्रह्माजी समाधिस्थ हो गए।समाधि में ही उन्हें क्षीरशायी भगवान की दैववाणी सुनाई दी। भगवान श्रीकृष्ण ‘ईश्वरों के भी ईश्वर’ हैं।

अर्थात् हे ब्रह्माजी ! साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण ही अगणित ब्रह्माण्डों के स्वामी, परमेश्वर, अखण्डस्वरूप तथा देवातीत हैं। उनकी लीलाएँ अनन्त एवं अनिर्वचनीय हैं। उनकी कृपा के बिना यह कार्य कदापि सिद्ध नहीं होगा। अत: आप उन्हीं के अविनाशी एवं परम उज्जवल धाम में शीघ्र जाएं।

ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ भगवान श्रीकृष्ण के गोलोकधाम में आए।इस बीच वहां एक दिव्य मणियों व पारिजात-पुष्पों से सुसज्जित रथ आया जिस पर शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए पीताम्बरधारी महाविष्णु महादेवी सरस्वती और महालक्ष्मी संग विराजमान थे। वे नारायण रथ से उतरकर श्रीकृष्ण के शरीर में लीन हो गए। भगवान नृसिंह भी पधारे और वे भी भगवान श्रीकृष्ण के तेज में समा गए। फिर एक-एक कर श्वेतद्वीप के स्वामी, भगवान श्रीराम, यज्ञनारायण हरि, भगवान नर-नारायण पधारे और वे भी श्रीराधिकेश्वर के विग्रह में विलीन हो गए। यह देखकर ब्रह्माजी के साथ सभी देवतागण आश्चर्यचकित हो गए। तब सभी देवताओं ने भगवान की स्तुति की–

कृष्णाय पूर्णपुरुषाय परात्पराय
यज्ञेश्वराय परकारणकारणाय।
राधावराय परिपूर्णतमाय साक्षाद्
गोलोकधामधिषणाय नम: परस्मै।।

देवताओं द्वारा की गयी स्तुति से संतुष्ट होकर भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार धारण करने का वचन दिया। भगवान ने कहा–पृथ्वी का भार उतारने के लिए जब वह पृथ्वी पर लीला करेंगे तब तुम देवगण भी यदुकुल में जन्म लेकर लीला में सहयोग करो। वे परम पुरुष साक्षात् भगवान स्वयं वसुदेव के घर में प्रकट होंगे।

पृथ्वी का भार उतारने के लिए ही भगवान ने भूतल पर अवतरण किया है।

अंत में गीता के चौथे अध्याय के सातवें व आठवे श्लोक में श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है–

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।

अर्थात् हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात् साकाररूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ। साधु पुरुषों का उद्धार, दुष्टों का विनाश तथा अच्छी तरह से धर्म की स्थापना के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *