श्री कृष्ण अपने वंश का विनाश क्यों नहीं रोक पाये थे ?

इससे संबंधित दो कथाएं हैं। पहली कथा के अनुसार, एक दिन अहंकार के वश में आकर कुछ यदुवंशी बालकों ने दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। इस पर दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया कि यादव वंश का नाश हो जाए। उनके शाप के प्रभाव से पर्व के हर्ष में उन्होंने अति नशीली मदिरा पी ली और मतवाले होकर एक-दूसरे को मारने लगे। इस तरह से भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर एक भी यदुवंशी जीवित न बचा।

क्या है दूसरी कथा?

एक दिन विश्वामित्र, असित, दुर्वासा, कश्यप, वशिष्ठ और नारद आदि बड़े-बड़े ऋषि द्वारका के पास पिंडारक क्षेत्र में निवास कर रहे थे। सारण आदि किशोर जाम्बवती नंदन साम्ब को स्त्री वेश में सजाकर उनके पास ले गए।

भारी पड़ गया ऋषियों से मजाक

ऋषियों से मजाक करने पर उन्हें क्रोध आ गया और वे बोले, ‘श्रीकृष्ण का पुत्र साम्ब वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लोहे का एक विशाल मूसल उत्पन्न करेगा। केवल बलराम और श्रीकृष्ण पर उसका वश नहीं चलेगा।

श्रीकृष्ण को बहेलिए द्वारा मृत्यु प्राप्त होगी

बलरामजी स्वयं ही अपने शरीर का परित्याग करके समुद्र में प्रवेश कर जाएंगे और श्रीकृष्ण जब भूमि पर ध्यानस्थ होंगे, उस समय जरा नामक बहेलिया उन्हें अपने बाणों से बींध देगा।’

डर गए सारे मित्र

मुनियों की यह बात सुनकर वे सभी किशोर बहुत डर गए। उन्होंने तुरंत साम्ब का पेट (जो गर्भवती दिखने के लिए बनाया गया था) खोलकर देखा तो उसमें एक मूसल मिला। उन्होंने राजा उग्रसेन सहित सभी को यह घटना बता दी।

मूसल का चूरा-चूरा कर डाला

उन्होंने उस मूसल का चूरा-चूरा कर डाला तथा उस चूरे व लोहे के छोटे टुकड़े को समुद्र में फिंकवा दिया जिससे कि ऋषियों की भविष्यवाणी सही न हो। लेकिन उस टुकड़े को एक मछली निगल गई और चूरा लहरों के साथ समुद्र के किनारे आ गया और कुछ दिन बाद एरक (एक प्रकार की घास) के रूप में उग आया।

श्रीकृष्ण को पता थी श्राप की सच्चाई

मछुआरों ने उस मछली को पकड़ लिया। उसके पेट में जो लोहे का टुकडा था उसे जरा नामक व्याध ने अपने बाण की नोंक पर लगा लिया। मुनियों के शाप की बात श्रीकृष्ण को भी बताई गई थी। उन्होंने कहा – ऋषियों की यह बात अवश्य सच होगी।

श्रीकृष्ण पलट सकते थे श्राप के प्रभाव को?

एकाएक उन्हें गांधारी के शाप की बात याद आ गई। वृष्णिवंशियों को दो शाप – एक गांधारी का और दूसरा ऋषियों का। श्रीकृष्ण सब कुछ जानते थे लेकिन शाप पलटने में उनकी रुचि नहीं थी।

और यदुवंशी लड़ने लगे

उस समय 36वां वर्ष चल रहा था। उन्होंने यदुंवशियों को तीर्थयात्रा पर चलने की आज्ञा दी।

वे सभी प्रभास में उत्सव के लिए इकट्ठे हुए और किसी बात पर आपस में झगड़ने लगे।

घास ने किया यदुवंशियों का विनाश

झगड़ा इतना बढ़ा कि वे वहां उग आई घास को उखाड़कर उसी से एक-दूसरे को मारने लगे।

हाथ में आते ही वह घास एक विशाल मूसल का रूप धारण कर लेती। उसी ‘एरका’ घास से यदुवंशियों का नाश हो गया।

कैसे हुआ श्रीकृष्ण का निधन

इस घटना के बाद बलरामजी ने समुद्र में जाकर जल समाधि ले ली।

कैसे हुआ श्रीकृष्ण का निधन

भगवान श्रीकृष्ण महाप्रयाण कर स्वधाम चले जाने के विचार से सोमनाथ के पास वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यानस्थ हो गए।

जरा नामक एक बहेलिये के हुए शिकार

जरा नामक एक बहेलिये ने भूलवश उन्हें हिरण समझकर विषयुक्त बाण चला दिया, जो उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्रीकृष्ण स्वधाम को पधार गए।

सच हो गया गांधारी और ऋषि दुर्वासा का श्राप

इस तरह गांधारी तथा ऋषि दुर्वासा के शाप से समस्त यदुवंश का नाश हो गया और ऋषियों द्वारा दिया गया।

श्राप कि ‘इस मूसल से सभी मारे जाएंगे’ वह भी पूरा हुआ, क्योंकि मछली के पेट में मूसल का एक टुकड़ा था जिससे जरा ने अपना तीर बना लिया था।

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