कृष्ण ने वीर बर्बरीक के प्राण क्यों मांगे थे ?

महाभारत में बर्बरीक नामक कोई पात्र नहीं है। महाभारत में भीम व हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच के पुत्र का नाम अंजनापरवन था व वो युद्ध में अश्वत्थामा के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ था।

बर्बरीक की कथा पुराणों से आई है, किन्तु पुराणों में बहुत फेरबदल किए गए हैं व वे महाभारत के बहुत बाद में लिखे गए हैं, अतः उनकी सत्यता संदिग्ध है। जहाँ भी महाभारत या रामायण के तथ्य किसी पुराण की कथा से मेल नहीं खाते, यह इस बात का प्रमाण माना जाता है कि उस पौराणिक कथा का स्त्रोत संदिग्ध है।

कथा के अनुसार बर्बरीक नामक घटोत्कच का पुत्र था, जिसके पास तीन दिव्य बाण थे। एक से वो उन सभी निशानों को इंगित करता था जिन्हें समाप्त करना है, दूसरे से उन्हें जिन्हें बचाना है, व तीसरा बाण छोड़ने पर सभी निशाने जिन्हें दूसरे बाण ने इंगित नहीं किया था, नष्ट हो जाते थे। कुरुक्षेत्र के युद्ध में भाग लेने के लिए जब वह निकला तो उसने अपनी माता से पूछा कि वो किसके पक्ष में युद्ध करे, तो माता ने उत्तर दिया, हारने वाले पक्ष की ओर से। इस गोलमोल व अतार्किक उत्तर के बाद बर्बरीक युद्ध भूमि के पास पहुँचा तो कृष्ण ने उसके विचार जान उसे रोक लिया, व उसकी परीक्षा ली। जब उन्हें बर्बरीक के तीन बाणों का रहस्य पता चला तो उन्होंने उससे उसका शीश माँग लिया जिससे वह अपनी माता के निर्देश पर चलते हुए युद्ध के समीकरण ना बिगाड़ दे, क्योंकि उसे जो पक्ष हल्का लगता वो अपना पक्ष बदल उसकी ओर चला जाता, व यह सिलसिला सभी योद्धाओं की समाप्ति या उसकी अपनी समाप्ति तक चलता रहता। किन्तु बर्बरीक ने युद्ध देखने का वर माँगा, तो कृष्ण ने उसका सिर एक पहाड़ी की चोटी पर रख दिया, जहाँ से बर्बरीक ने पूरा युद्ध देखा। उसी बर्बरीक को अब खटुश्यामजी के नाम से पूजा जाता है।

किन्तु जैसा मैंने कहा, यह कथा महाभारत में नहीं है व इसका महाभारत से कोई सरोकार नहीं है। यह कदाचित एक दंतकथा है व स्थानिय देवता को महाभारत से जोड़ने के लिए बाद में पुराण में डाली गई थी।

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