भगवान कृष्ण ने भगवद गीता के सभी 700 श्लोकों को समझाने के लिए समय रोक दिया। क्या उन्होंने वाकई समय रोका था? यदि हाँ, तो कैसे? इसका वास्तविक अर्थ क्या है?

धर्म के गुप्त विज्ञान में ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो सामान्य नहीं हैं और सिध्द करना मुश्किल है।इस बात को समझने के लिए मैं आपको एक उदाहरण देना चाहूँगा तब शायद आप समझ सकें।विवेकानंद के जीवन में एक घटना है।जब वो विश्व धर्म सम्मलेन में हिस्सा लेने अमेरिका पहुँचे तो लगभग 2 घंटे के लिए वहाँ के किसी नमी दार्शनिक के घर ठहरे।

उन्होंने देखा की उनके मेज़ पर करीब 300 पन्नों की किताब पड़ी है जो पश्चात् दर्शन की थी।उन्होंने वो किताब उनसे पढ़ने के लिए मांगी तो उन्होंने कहा कि अरे आप तो 2 घंटे के लिए ही आये हैं इतने कम समय में तो आप इसकी भूमिका भी नहीं समझ पाएंगे।मैं खुद तक़रीबन एक माह से इस पुस्तक को पढ़ रहा हूँ और केवल 30–40 पन्ने हीं पढ़ सका हूँ मगर विवेकानंद नहीं माने तब उन्होंने वो किताब उन्हें दे दी और खुद तैयार होने के लिए चले गए 30 मिनट बाद जब वो वापस आये तब तक विवेकानंद ने वो पूरी किताब पढ़ ली थी।

जब उन्होंने किताब के बारे में उन्हें बताया तो वो एकदम से भौचक्के रह गए मगर इस तरह की घटनाओं में बीसवीं सदी की ये महत्वपूर्ण घटना है।सामान्य दृष्टिकोण से तो ये असंभव है मगर ऐसा नहीं है कि ये संभव नहीं है।अश्तित्व में हमेशा एक मंजिल तक पहुँचने के बहुत रास्ते रहे हैं मगर वो तभी उपलब्ध होते हैं जब आप उनके काबिल हैं।

तो ऐसा नहीं है कि उन्होंने समय को रोका बल्कि उनके संवाद का मार्ग आप से भीं है यही कारण है ये सभी घटनाएं वास्तविक नहीं मालूम पड़ती मगर इतिहास,वर्त्तमान और भविष्य ऐसी घटनाओं से बाहर पड़ा है।विशेष साधक या व्यक्ति हमेशा समायोनुकूल इन मार्गों का उपयोग करते रहते हैं।तो कृष्ण ने भी यही किया है उस वक्त उनका संवाद सामान्य नहीं है बल्कि समय की सीमाओं से परे का है

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