जयद्रथ वध के दौरान सूर्य को छिपाने के कृष्ण के जादू के पीछे का सच क्या है?

कुरुक्षेत्र युद्ध

महाभारत ग्रंथ में यदि सबसे रोचक कुछ है तो वह है ‘कुरुक्षेत्र युद्ध’। महाभारत युग ने अपना अहम मोड़ तब लिया था जब कुरुक्षेत्र युद्ध हुआ। धर्म की जीत के लिए पाण्डवों और कौरवों में हुआ यह युद्ध इतिहास में हुआ एक ऐसा युद्ध था जिसे जीतने के बाद भी पाण्डवों को कोई खास खुशी नहीं हुई।

जयद्रथ वध

क्योंकि जिन्हें हराकर वे आगे बढ़े थे वे भी उनके अपने ही थे, लेकिन फिर भी धर्म के आगे उन्हें और कुछ भी पर्याप्त नहीं लगा। इसीलिए धर्म के मार्ग पर चलते गए। स्वयं कुरुक्षेत्र युद्ध भी अपने भीतर ऐसे अध्याय समेटे हुए है, जो जानने योग्य हैं। उसमें एक अध्याय है ‘जयद्रथ वध’ का।

जयद्रथ सिंधु प्रदेश के राजा थे जिसका विवाह कौरवों की इकलौती बहन दुशाला से हुआ था। जयद्रथ वृद्धक्षत्र के पुत्र थे और उनका जन्म वृद्धक्षत्र के यहां बहुत देर से हुआ था। जन्म होते ही जयद्रथ के पिता वृद्धक्षत्र ने उन्हें एक वरदान दिया था।

वरदान के अनुसार जयद्रथ का वध कोई सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता था। साथ ही यह भी कहा कि जो भी जयद्रथ को मारेगा और उसका सिर ज़मीन पर गिराएगा, उसके सिर के हज़ारों टुकड़े हो जाएंगे। यही एक कारण है कि कुरुक्षेत्र युद्ध मे जयद्रथ को मारना बेहद मुश्किल हो गया था, लेकिन हुआ वही जो नियति को मंजूर था।

महाभारत का युद्ध धर्म के नाम पर पाण्डवों और कौरवों के बीच हुआ था। जहां एक तरह भारी संख्या में 100 कौरव भाइयों के साथ बाकी कौरव सेना थी, वहीं दूसरी ओर पांच पाण्डु भाइयों के साथ सारथी के रूप में अर्जुन के साथ श्रीकृष्ण भी मौजूद थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से वादा किया था कि वे युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएंगे।

कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों की बहन का पति होने के हक़ से जयद्रथ कौरवों की ओर से ही युद्ध कर रहा था। यह उस दिन की बात है जब अर्जुन लड़ते-लड़ते रणक्षेत्र से काफी दूर चले गए थे। इसका फायदा कौरवों ने उठाना चाहा।

द्रोणाचार्य का चक्रव्यूह

अर्जुन की अनुपस्थिति में पाण्डवों को पराजित करने के लिए द्रोणाचार्य, जो पाण्डवों और कौरवों दोनों के आचार्य थे, लेकिन फिर भी युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ रहे थे, उन्होंने पाण्डवों को हराने के लिए विशाल चक्रव्यूह की रचना की। इस चक्रव्यूह को यदि अर्जुन के बाद कोई भेद सकता था, तो वह था उनका पुत्र अभिमन्यु।

अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदने के लिए उसमें घुस गया। अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदने की कला अपने पिता से तब सीखी जब अर्जुन अपनी पत्नी सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदने की कला मुंह-जुबानी बता रहे थे, और सुभद्रा के गर्भ में अभिमन्यु था। चक्रव्यूह में प्रवेश करने और लड़ने की कला तो अभिमन्यु सीख गया, परंतु चक्रव्यूह से बाहर आने की कला वह सीख ना सका।

क्योंकि तब तक सुभद्रा सो गई थी, और पाठ वहीं अधूरा छूट गया। जिसका परिणाम अभिमन्यु को भोगना पड़ा। चक्रव्यूह में प्रवेश करने के बाद अभिमन्यु ने कुशलतापूर्वक चक्रव्यूह के छः चरण भेद लिए, लेकिन जैसे ही वह सातवें और आखिरी चरण पर पहुंचा, उसे दुर्योधन, जयद्रथ आदि सात महारथियों ने घेर लिया।

निहत्थे अभिमन्यु पर प्रहार

फिर भी अभिमन्यु अपने बल से लड़ता रहा और प्रहार करता रहा, किंतु तभी जयद्रथ ने पीछे से निहत्थे अभिमन्यु पर ज़ोरदार प्रहार किया। उस वार की मार अभिमन्यु सह ना सका और वीरगति को प्राप्त हो गया। अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार जब अर्जुन को मिला तो वह बेहद क्रोधित हो उठा। अर्जुन पागलों की तरह युद्ध के मैदान के बीचोबीच पहुंचा और सबके सामने जयद्रथ को चुनौती दी।

अर्जुन की प्रतिज्ञा

अर्जुन बोला, “कल युद्ध के मैदान में मैं सबके सामने जयद्रथ का वध करके अपने पुत्र की मौत का बदला लूंगा। यदि मैं सूर्यास्त से पहले इस प्रतिज्ञा को पूर्ण करने में असफल रहा, तो स्वयं अपने प्राण हर कर आत्मदाह कर लूंगा, यह मेरा वादा है सब से।“

जयद्रथ भयभीत हो उठा

अर्जुन की इस भयानक प्रतिज्ञा को सुन जयद्रथ भयभीत हो उठा और फौरन दुर्योधन के पास जाकर इसका हल मांगने लगा। दुर्योधन हंस कर बोला, “डरो मत मित्र! अर्जुन तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकता। कल हम सब भाई और पूरी कौरव सेना सूर्यास्त होने तक तुम्हारे आसपास एक सुरक्षा कवच बनाए रखेंगे। अर्जुन किसी भी कीमत पर तुम्हें खोज नहीं पाएगा और अंत में उसे अपने प्राणों की बलि देनी होगी।“

अगले दिन का युद्ध

अगले दिन युद्ध शुरू हुआ। गुस्से से लाल अर्जुन की आंखें युद्ध के मैदान में जयद्रथ को इस प्रकार से ढूंढ़ रही थीं जैसे कोई प्यासा जल की तलाश में हो। किंतु वह मिल नहीं रहा था। समय बीत रहा था और कुछ ही समय के बाद सूर्यास्त भी होने वाला था। अर्जुन अपनी हार निकट देखकर निराश हो रहा था।

हताश अर्जुन

तभी श्रीकृष्ण ने उसे बताया कि जयद्रथ को बचाने के लिए कौरवों ने उसे घेर रखा है, ताकि तुम उसे खोज ना सको। श्रीकृष्ण बोले, “मेरे मित्र, तुम आगे बढ़ो, शत्रुओं को पराजित करो। तुम्हें अवश्य तुम्हारा वह शत्रु हासिल होगा जिसका तुम्हें बेसब्री से इंतजार है।“

संध्या होने की चिंता

यह सुन अर्जुन में कुछ आत्मविश्वास जागा और वह लड़ता चला गया, लेकिन अभी भी जयद्रथ मिल नहीं रहा था। समय अपनी रफ्तार से दौड़ रहा था। अब श्रीकृष्ण को भी संध्या होने की चिंता सताने लगी। तभी उन्होंने अपना सुदर्शन चक्र उठाया।

श्रीकृष्ण की माया

वह सूर्य को छिपाना चाहते थे, लेकिन सूर्य को ढकने के लिए किसी विशाल वस्तु की आवश्यकता थी। इसीलिए उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र का सहारा लिया। इसकी मदद से उन्होंने सूर्य सुदर्शन चक्र के पीछे छिपा दिया ताकि कौरवों को यह लगे कि संध्या हो गई, और वह बाहर आ जाए।

अर्जुन की हार

अपनी हार अपने सामने देख अर्जुन हताश हो गया। तभी श्रीकृष्ण बोले, “पार्थ! अभी संध्या नहीं हुई। देखो, सूर्य अभी भी दिखाई दे रहा है। तुम्हारा शत्रु अब तुम्हारे सामने खड़ा है। जाओ, वार करो उस पर।“ श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए प्रोत्साहन से अर्जुन खड़ा हुआ और उसने अपना गांडीव उठा लिया।

जयद्रथ भागने लगा

यह देख जयद्रथ भागने लगा, परंतु अर्जुन के निशाने से बचना मुश्किल था। अर्जुन गांडीव चलाने ही वाला था कि तभी श्रीकृष्ण ने उसे रोका। वे बोले, “मेरे मित्र! यह मत भूलो कि जयद्रथ को एक वरदान हासिल है, जिसके अनुसार जो भी कोई इसका मस्तक ज़मीन पर गिराएगा, स्वयं उसके सिर के भी हज़ारों टुकड़े हो जाएंगे।“

श्रीकृष्ण ने दिखाई दिशा

यह सुन अर्जुन कुछ चिंता में पड़ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए। अर्जुन की चिंता दूर करने के लिए श्रीकृष्ण बोले, “प्रिय अर्जुन! उत्तर दिशा में यहां से सौ योजन की दूरी पर जयद्रथ का पिता तप कर रहा है। यदि तुम इसका मस्तक ऐसे काटो कि वह इसके पिता की गोद में जाकर गिरे, तो जयद्रथ का वध भी हो जाएगा और तुम्हें भी कोई हानि नहीं होगी।“

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