बहुत सारे प्रमाण है। आज भगवान श्रीकृष्ण के बारे में बात करते हैं, अन्यथा उत्तर बहुत लंबा हो जाएगा। आस्था को अलग रखकर ठोस तर्क पर आधारित उत्तर देने की मेरी कोशिश रहेगी।
श्रीकृष्ण के बारे में सारी जानकारी मुख्यत:११पुराण और महाभारत में मीलती है। इसमें में महाभारत सबसे प्राचीन है इस का स्वीकार सभी विद्वानों ने किया है। अभी जो महाभारत की मूल प्रति मानी जाती है वो लगभग दो हजार वर्ष पुरानी है। लेकिन याद रहे कि ये पहली बार लिखी गई महाभारत नहीं है, मतलब यह इससे भी काफी पुरानी है।
डॉ.राधाकृष्णन ने अपने ग्रंथ ‘भारतिय दर्शन ‘ भाग -१ में उपनिषदों के रचनाकाल के विषय में ये मत व्यक्त किया है कि जिन उपनिषदों पर शंकराचार्य ने भाष्य कीया है वह ही सबसे प्राचीन और अत्यंत प्रामाणिक है। इसी श्रेणी में आता है छांदोग्य उपनिषद । ये लगभग ३००० साल पुराना है। इस में हमें हमारे भगवान श्रीकृष्ण का स्पष्ट संदर्भ मीलता है। इस उपनिषद में घोर आंगिरस नामक ऋषि ने देवकीपुत्र कृष्ण से कहा कि अंतिम समय में इन्सान को चाहिए कि वह इस तीन शरण में आए की आप अच्युत हों, आप अक्षर हो और आप ही जीवन हो( छांदोग्य उपनिषद-३ :१७ :१-६). इस से पता चलता है कि उस समय भगवान श्रीकृष्ण की क्या और कैसी ख्याति थी।
छांदोग्य उपनिषद के लगभग दो सौ साल बाद यास्काचार्य ने वेदों के मुश्किल शब्दों को समझाने के लिए निघंटु नाम से ग्रंथ लिखा,जीसमे हमें कृष्ण और स्यामंतक मणि की विख्यात कहानी बताई गई है। बौधायन धर्मसूत्र में कृष्ण के बाराह नामों के बारे में जानकारी दी गई है। जिस में केशव, गोविंद और दामोदर जैसे नामों का उल्लेख मिलता है। इसी समय लगभग २४०० साल पहले बौद्ध धर्म ग्रंथ खुड्डक निक्काय के महानिदेश सुत में वासुदेव और बलदेव की उपासना के बारे में जानकारी दी है। व्याकरण के पथ प्रदर्शक पाणिनि ने अपने अष्टाध्यायी ग्रंथ में वासुदेव और अर्जुन का उल्लेख किया है।
मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के दरबार में बाराह साल गुजारने वाले मैगेस्थनिस ने अपनी इंडिका में मथुरा के कृष्ण की हो रही पुजा के बारे में बताया है। उसके कुछ पहले सिकंदर के साथ भारत आए रोमन इतिहासकार क्वीन्टस कर्टिस ने लिखा है कि पौरव(पोरोस)वंशी राजा के सैनिक कृष्ण को देवता मानते थे।
कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में कृष्ण और कंस दोनों का जिक्र करते हुए महत्वपूर्ण बात बताई है। मंत्रो और औषधों के पाठ में इन्सान को कैसे निंद में डाल दिया जाए उस बात को समझाने के लिए कृष्ण ने कंस के साथ जो किया था, ऐसा उदाहरण दिया गया है। पतंजलि ने भी अपनी विख्यात किताब महाभाष्य में जगह-जगह कृष्ण कथा के उल्लेख किये है।
अब कुछ अभिलेखों के बारे में जानते हैं। मध्य प्रदेश में भिल्सा के पास बेसनगर में एक दो हजार वर्ष से ज्यादा पुराना गरुड़ स्थंभ खड़ा है जिसमें देवाधिदेव वासुदेव ऐसा ज़िक्र मिलता है। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में घोसुंडी और हाथीबाडा में ऐसे ही अभिलेख मिले हैं, जिस में संकर्षण और वासुदेव की पूजा की बात कही गई है। महाराष्ट्र के ठाणे के करीब नानाघाट गुफा में संकर्षण, वासुदेव और चार लोकपालों को नमन कीया गया है। ये अभिलेख दो हजार वर्ष पुराना माना जाता है। मथुरा के पास मोरा गांव में भी ऐसा ही एक अभिलेख मीला है। ऐसे और भी कई अभिलेख मीले है।
कृष्णजिवन के सारे महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थान आपको मील जाते हैं। मथुरा,कुरक्षेत्र, द्वारका इत्यादि। द्वारका में तो काफी खोजकार्य हो रहा है और पुरातत्व विभाग को काफी सारे प्रमाण भी मीले है। भालका तिर्थ जहां भगवान कृष्ण की मृत्यु हुई थी वह भी गुजरात के प्रभास पाटन के पास है, समुद्र के नजदीक ,जिस का वर्णन शास्त्रों में ठीक वैसा ही किया गया है। कृष्ण की कठीन यात्राओं का जो वर्णन किया गया है वह भी भौगोलिक दृष्टि से बिलकुल सही बैठता है।
यहां पर यह भी बताना चाहता हूं कि महाभारत के बाद सबसे प्राचीन ग्रंथ हरिवंश है। ये पुराण आप को कृष्ण के बाल्य काल से लेकर पुख्त वय के कृष्ण की कथा बताती है। हरिवंश के बाद विष्णु पुराण में महाभारत को छोड़ कृष्ण की सारी कहानी बताई गई है। कृष्ण के बारे में दसवीं शताब्दी में भागवत कथाआती है, जो कृष्ण की कहानी का रुख थोड़ा बदलती है। हालांकि कहानी वही है।
आखिर में यही कहूंगा कि कृष्णकथा के पुरातत्विय और साहित्यिक उल्लेख इतने विपुल मात्रा में उपलब्ध है कि जितना लिखें जगह कम पड़ जायेगी।