दरअसल जो खुद के करीब नहीं हो पा रहा, उसके खुदा के करीब होने की कोई भी, गुंजाइश नहीं है, इस दुनिया में लोग सब कुछ जानते हैं, खुद के सिवा, की वो कौन हैं, क्या हैं, और किसलिये यहाँ हैं? है ना अजीब बात।
ईश्वर की वास्तविकता
और यह ईश्वर कौन चिड़िया का नाम है, कबीर साहब ने कहा है, निर्गुण कौन देश को वासी? पता चले तो हमें भी बताइये, हमें भी उसकी तलाश है, उम्र भर से उसे ढूंढ रहे हैं, पता नहीं कहाँ छुप के बैठा है कठोर।
यही सबसे बड़ी वजह है, ईश्वर कहीं आसमान में डेरा डाल कर नहीं बैठा है, न उसका कोई स्थायी पता है न कहीं, रजिस्टर्ड ऑफिस, यह अलग बात है कुछ लोगों ने ठेका ले रखा है की उनकी दुकान ही उसका असली घर और ऑफिस है, मुख्यालय है, हमारे सामने उसका सबसे विराट अभिव्यक्त स्वरूप यह विश्व है, ब्रम्हांड है, और हमारे सबसे करीब वो हमारे आत्म स्वरूप में स्थित है, लोग सच को जानने और खोजने की फिक्र को छोड़कर दुनिया की हर किस्म की बेहूदगी और मूर्ख और अंधी आदिम मान्यता में बेहद दिलचस्पी लेते हैं।
इस दुनिया में मनुष्य की स्थिति कस्तूरी मृग की तरह है, वो खुद को जानना और खोजना छोड़कर सब चीज़ों में बेइंतहा मसरूफ है, प्यासा है, भटक रहा है मारा मारा, सब कुछ मे उसी को तलाश रहा है, धन, दौलत, पद, रूप, रंग, स्वाद, सुगंध सब में उसी को तलाश रहा है, अब जवाब है भीतर और ढूंढ रहा है बाहर, है न अजीब घनचक्कर।
अब ईश्वर की लीला भी अपरम्पार है वो इन सब को रचने वाला भी है, सबमें शामिल भी है और इन सब से परे भी है, और कहीं भी मिलता नहीं, यह सब उसकी परछाई हैं, परछाई से किसकी प्यास बुझी है, कभी भी, लेकिन असली रस और रस बरसाने वाला लुप्त है, वो छुपा है हममें और हमें ही इसकी खबर नहीं है।
उसकी चाह में ही सभी दौड़ रहे हैं रात दिन, यही सबकी आत्मा की प्यास है, सबको बस उसकी तलाश है, और वो खेल रहा अपना खेल, और हमको उसकी खबर नहीं, वो कौन है, कहाँ है, कैसे यह सब गोरखधंधा चल रहा है, कैसा है यह जीवन और जगत का सारा अबूझ व्यापार, इसलिए ज्ञानियों ने कहा है – हरि अनंत, हरि कथा अनंत।
सदगुरु कहते हैं, ईश्वर से जुड़ने के लिए थोड़ा ख़ाली होना जरूरी है, लोग अपनी कामनाओं, वासनाओं, और अहंकार से इस कदर भरे हुए हैं, की ईश्वर के लिए ना स्थान है ना समय, वो भी प्रेम और समर्पण की चाह रखता है, और दो नाव की सवारी करने वालों को कभी भी नहीं मिला आज तक, ना मिलेगा कभी।
ईश्वर उनकी चाह बनता है, जो शून्य या अनंत होने के लिए प्रस्तुत होने की तैयारी में हैं, या उस दिशा में अग्रसर हो चुके हैं। इस दुनिया में आप जो भी चाहते हैं, वो आपसे उस दिशा में ध्यान और तल्लीनता की मांग करती है, इसके बिना उस दिशा में कोई भी उपलब्धि या विकास संभव नहीं होता।
यही नियम ईश्वर की ओर अभिमुख होने के लिए आवश्यक है, लेकिन उसका कोई पता नहीं है की वो कौन है, कहाँ है, मिलेगा, नहीं मिलेगा, पक्का नहीं है, कब मिलेगा यह भी तय नहीं है, उसका स्वरूप क्या होगा, पता नहीं।
अब इतनी अनिश्चितताओं वाले ईश्वर के लिए, किसके पास समय और धैर्य है यहाँ, इंस्टेंट नूडल और फास्ट फ़ूड के जमाने में यह एक अवांछित चीज़ है, जिसकी कोई भी कमर्शियल वैल्यू या मौद्रिक लाभ नहीं है, फिर क्यों लोग ईश्वर की बेवकूफी में पड़े।
यह बेहद होशियार और पढ़े लिखे लोगों की दुनिया है, जहां पद, सत्ता, रुप, रंग, सब बाहरी वैभव, तमाशे, प्रपंच, संपति, बैंक बैलेंस और धन ही यहाँ सर्वोपरि है, यही इस दुनिया के असली भगवान हैं, सबको इनकी चाह है।
यह सब चीजें जाहिर है, दिखाई देती है, इन्हें किसी भी तरह हासिल किया जा सकता है, इन सबकी मालिकी हो सकती है, ईश्वर के संबंध में तो किस्से कहानियाँ ही उपलब्ध हैं, कौन इसके लिए माथापच्ची करे, मिल भी गया तो क्या काम का, और वो इन सबसे जरूरी है क्या?
अब आप खुद बताइये कौन बेवकूफ़ इस ईश्वर के चक्कर में दोनों जहान से जाये, यह समझदारों का काम नहीं है, और यहाँ नासमझ कोई नहीं होना चाहता, कोई उस, अज्ञात, अनदेखे, अरूप के पीछे अपना समय और जीवन व्यर्थ नहीं करना चाहता।
अब कुछ हमारे जैसे कम बुद्धि के गंवार और निट्ठल्ले और नकारा लोग ही इस बेवकूफी में पड़ने की गलती करेंगे और सबके उपहास और निंदा के पात्र बनेंगे, घर से लेकर बाहर तक लोग हम पर हँसेंगे, हमारा मज़ाक उड़ाएंगे, की ये असफल और किसी भी काम के नहीं इस तरह की उपाधि से सराहे जाएंगे।
अब आप खुद ही बताइये कौन इस बिना फायदे के धंधे में अपना सिर डालेगा और दुनिया की हर तकलीफ़ और मुसीबत को न्योता देगा, लोगों ने कितनी मुसीबतें उठाई हैं इस चक्कर में, मीरा को, कबीर को, नानक को, जीसस को सभी को जहर, अत्याचार और सूली सहनी पड़ी है इस चक्कर में, यह कमज़ोर और दुनियादार लोगों के लिए नहीं है, और दुनिया में ऐसे लोगों की बेहद कमी है जो उस अनदेखे और अज्ञात के लिए मुसिबतें उठाये और और अपनी जान मुश्किल में डाले।
इसके अलावा मुसीबत यह है की परमात्मा तो तुम्हें पूरा का पूरा मांगता है, वो भी बेशर्त और बेवजह, वहाँ EMI की सुविधा नहीं है, जो किश्तों या टुकड़े टुकड़े में खुद को उसकी खातिर में लगाओ, उसके लिए तो अपना सब कुछ दांव पर लगाना पड़ता है और इस सबके बाद भी रिस्क का तो कोई हिसाब ही नहीं, अब बताइये कौन ऐसे ईश्वर की झंझट में पड़ेगा।
हमारी दुनिया में ईश्वर का वजूद और उपयोग
इसलिए लोग सस्ते में निपटा देते हैं, किसी भी फ़ोटो या मूर्ति, किताब, ईमारत के आगे थोड़ा प्रसाद, फूल, अगरबत्ती वगैरह चढ़ा दिया, और बदले में सारी दुनिया की खुशी और दौलत भी मांग ली, यही सबसे सही सौदा है, हम भी खुश और भगवान भी, यही सबसे बढ़िया तरीका है, आम के आम, गुठलियों के दाम, इस तरह की ईश्वर भक्ति सबसे ज्यादा प्रचलित है, और सबकी यही चाहत भी है।
तो ईश्वर बात करने के लिए अच्छा है, निंदा करने के लिए अच्छा है, कुछ मांगना हो तो अच्छा है, अपनी गलतियाँ और मूर्खता उसके सर मढनी हो तो अच्छा है, लोगों को उसके नाम से ठगना और लूटना हो तो अच्छा है, इस तरह से लोग लगे हैं ईश्वर की सेवा और पूजा में , कौन कहता है की लोगों का झुकाव ईश्वर की तरफ नहीं है, अरबों खरबों का चढ़ावा सभी धार्मिक स्थानों पर चढ़ाया जाता है, जबकि देश की 40% आबादी को एक वक़्त का भोजन उपलब्ध नहीं है।
तो इस तरह सारी धरती पर लोग ईश्वर का उपयोग कर रहे हैं, अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए, लूटपाट, हत्या और व्यभिचार के लिए, इस धरती पर सबसे संगीन जुर्म किये गए हैं ईश्वर के नाम पर और यह सिलसिला आज भी कायम है और रहेगा जब तक लोग संगठित अपराध के लिए उसका उपयोग करना बंद न कर दें, यह व्यक्तिगत बात है, संप्रदाय और संगठन का इससे कोई भी लेना देना नहीं है, लेकिन ईश्वर इसी तरह से प्रचलित, मान्य और प्रतिष्ठित है यहाँ, इसे बदलना होगा, तभी वास्तविक जुडाव और झुकाव की और दृष्टि मुड सकती है।
और कुछ संप्रदायों का तो यही एकमात्र कार्य है, उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा और शक्ति के विस्तार और दूसरों पर प्रभुत्व ज़माने की अंधी शैतानी चाह की पूर्ती के लिए वो दिनरात इंसानियत को शर्मसार और तार तार करने वाले कार्य कर रहे हैं, उन्होंने इस धरती को हत्या, लूट, बलात्कार और युद्ध का मैदान बना दिया है, और यह सभी लोग ईश्वर के नाम पर ही सबकुछ कर रहे हैं, अब बताइए फिर भी आप कहेंगे की लोगों का ईश्वर की और झुकाव नहीं है।
यदि यह सब ईश्वर की तरफ झुकाव है तो यह धरती इतनी दुःख, तकलीफ और आडम्बरों से भरी हुई क्यूँ है, लोगों को सत्य जानना और समझना होगा, अब पुराना ईश्वर लोगों को आकर्षित नहीं करता, अब लोग सुविधाभोगी हैं, जहाँ सुविधा और उनकी वासनाओं को आश्रय मिलेगा उनकी भक्ति और ईश्वर वैसा ही हो जायेगा अब लोगों ने अपने ईश्वर बना लिए हैं, और पहले भी ईश्वर इन्सान का ही आविष्कार था, अब लोग नए अवतारों को पूज रहे हैं, दुनिया के साथ साथ अब लोगों के ईश्वर भी बदल गए है।
भले ही यह नए अवतार उनसे उनका सब कुछ छीन लें और उन्हें हर तरीके से बीमार, दुखी और संत्रस्त कर दे, लेकिन लोगों की चाहत ही अब बदल गयी है, अब भटकाव, और खुद को छलना नया धर्म है और नए ईश्वर भी, इसलिए रुझान बदल गया है, और नए ईश्वरों का अविष्कार हो गया है।
ईश्वर जागे हुए लोगों की जिज्ञासा और साधना का विषय है, यह आत्मबोध को जगाने की साधना है, यह अंधे और रुग्ण मन और शरीर धारण करने वालों के लिए नहीं है, ईश्वर हमारा अपना यथार्थ और सत्य है, यह कोई कपोल कल्पना या अन्धविश्वास नहीं है, इसे हमे अपने अंदर ही खोजना होगा फिर यह सब तरफ मौजूद है , इसका भी पता चल जायेगा।