मीरा बाई- दुनिया भर में भगवान को मानने वाले लाखों-करोड़ो भक्त हैं और उनका मन से भक्ति करने का अंदाज़ भी अपना-अपना है, लेकिन श्रीकृष्ण की एक ऐसी भक्त थी जिसकी तुलना किसी के साथ करना ना केवल गलत होगा बल्कि तुलना कर सकना संभव ही नहीं।मीरा बाई हिन्दू आध्यात्मिक कवियित्री और भगवान कृष्णा की भक्त थी।
मीरा बाई का जन्म राजस्थान के मेड़ता में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं।मीरा का जन्म राठौर राजपूत परिवार में हुए व् उनका विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ। उदयपुर के महाराणा कुंवर भोजराज इनके पति थे जो मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहान्त हो गया।
पति की मृत्यु के बाद उन्हें पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, किन्तु मीरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं। वे संसार की ओर से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं। मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह द्वारका और वृंदावन गईं। वह जहाँ जाती थीं, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग उन्हे देवी के जैसा प्यार और सम्मान देते थे।
इसी दौरान उन्होंने तुलसीदास को पत्र लिखा था :-
स्वस्ति श्री तुलसी कुलभूषण दूषन- हरन गोसाई।
बारहिं बार प्रनाम करहूँ अब हरहूँ सोक- समुदाई।।
घर के स्वजन हमारे जेते सबन्ह उपाधि बढ़ाई।
साधु- सग अरु भजन करत माहिं देत कलेस महाई।।
मेरे माता- पिता के समहौ, हरिभक्तन्ह सुखदाई।
हमको कहा उचित करिबो है, सो लिखिए समझाई।।
मीराबाई के पत्र का जबाव तुलसी दास ने इस प्रकार दिया:-
जाके प्रिय न राम बैदेही।
सो नर तजिए कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेहा।।
नाते सबै राम के मनियत सुह्मद सुसंख्य जहाँ लौ।
अंजन कहा आँखि जो फूटे, बहुतक कहो कहां लौ।।
घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर,तथा तुलसीदास जी की चिठ्ठी आने के बाद , वह द्वारका और वृंदावन गईं। वह जहाँ जाती थीं, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग उन्हे देवी के जैसा प्यार और सम्मान देते थे।
मूल सवाल था कि –
संत मीरा बाई की मृत्यु कैसे हुई थी?
मूल सवाल का जवाब –
श्री कृष्ण भक्त मीरा बाई की मौत एक रहस्य ही है; क्यूंकि इतिहास में इनकी मृत्यु के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिले अभी तक । उनकी मृत्यु को लेकर बड़े -बड़े विद्वानों के अलग- अलग मत है, किसी का कहना है उनकी मौत 1546 में हुयी थी ,तो कोई कहता है उनकी मौत 1548 में हुई थी । वहीं कुछ लोगो का कहना है कि उनकी मृत्यु नहीं हुई थी, वे तो सशरीर ही द्वारकाधीश की मूर्ति में समा गई थी उनकी भक्ति करते- करते ।