हम तो कर्म और कर्म के फल भुगतने में पूरा विश्वाश करते है और उसी कर्म का ही तो परिणाम है की हम और आप सारे सृष्टि में कोई अति धनि, गरीब, कोई दरिद्र, कोई ऊँचा पोस्ट पर असिन है और कोई बेचारा मजदुर और रिक्शा चालक कठिन मेहनत कर भी वो धन नहीं अर्जित कर पता की उसे सुख से चार दिन रोटी मिले या उसके बच्चे सुख से रहें? मैंने अनेको धर्म ग्रन्थ और वेद पुराण का अध्यन किया और उसमे यही पाया की कर्म का फल प्राणी को भुगतना होता है और आज यह देख भी रहा हूँ?
कर्म – परिणाम- आप स्वयं देखे की कोई बहुत टैलेंटेड होता है, पर उसे वो स्थान या पोस्ट नहीं प्राप्त होता और दूसरे उसी जगह आप देकते है की एक निथला व्यक्ति जो किसी भी तरीके से योग्य नहीं हैं वो उस स्थान पर बैठ जाता है? आपके देश में कई नेता है जो किसी भी दृष्टि से योग्य नहीं पर वो ुचे पद पर असिन हुए और आज वो प्रसिद्ध हैं इस प्रकर एक नहीं अनेको उद्धरण दे सकता हूँ? यह कर्म का ही तो फल हैं? हम बहुत परिश्रम करते है और वो धन नहीं अर्जित कर पाते और दूसरे तरफ कुछ नहीं कोई करता और उसे धन की कमी कभी होती नहीं?
गीता में भगवान् श्री कृष्ण कहते है की हे अर्जुन न कोई किसी के पाप के लिए दोषी है और न कोई पाप के लिए दोषी हैं| भगवान् किसी के पाप -पुण्य या सत्कर्म से मतलब नहीं रखते| जो जैसे कर्म करता है उसके फल बुगतता है? भगवान् श्री राम भी यही कहते है की जो जैसे करता है, वैसे भुगता है| यानी मनुष्य अपने किये कर्म का फल भोगता है|
आपने जो अनंत जन्म में अच्छे या बुरे कर्म किये उसी का परिणाम तो आपको यह मानव तन मिला है और उसपर सरे सुख सुविधा इत्यादि? आप अपने बगल में पशु को देखें या किसी पक्षी को? उसके आत्मा और आपके आत्मा में क्या कोई अंतर है? नहीं हैं? पर बेचारे वो भोजन के खोज में सवेरे से निकल जाते है और कुछ को तो भूखा भी रहना पड़ता है| हमें तो बना बनाया भोजन और चाय इत्यादि सवेरे से ही मिलाना प्रारम्भ हो जाता है- यह कर्म ही तो है जो आपने और हमने पूर्व जन्म में किये हैं?
आत्मा में अंतर नहीं होता और जो जैसे किये हैं उसी के आसार भगवान् उसके कर्म फल उसके सामने पेश कर देते हैं? भगवान् को किसी के पाप पुण्य या सत्कर्म इत्यादि से लेना देना नहीं होता? भगवन को केवल अपने प्रिये भक्त से मतलब होता है और बाकी तो चार प्रकार की सृष्टि उनकी चलती रहती हैं| पशु पक्षी, मानव, अंडज, स्तनधारी, जल जीव इत्यादि? इस प्रकार भगवान् के भवबंधन में हम सभी परे है और यह भवबंधन तभी समाप्त होता है जब भगवान् के तरफ कोई जीवात्मा चलता है/
तरिये न बिन सेवे मम स्वामी, राम नमामि, नमामि, नमामि
बिना श्री हरि के शरण हुए यह ८४ लाख का चक्कर समाप्त नहीं होता? इसलिए तो हम कर्म करने के लिए बराबर भेजे जाते हैं? हम न चाहकर भी दुःख- सुख भोगने में हेतु हैं|