क्या सच में कर्ण इतना बलशाली था कि अर्जुन को युध्द में मार सकता था ?

सत्य तो यह है कि कर्ण के विषय में, व महाभारत कथा के विषय में , अधिकांश लोगों को जो जानकारी है वो या तो टीवी सिरीयलों के माध्यम से है या उपन्यासों व कविताओं के माध्यम से। इनका महाभारत ग्रंथ की कथा से बहुत दूर का नाता है, जो कभी-कभी तो नाम-मात्र का रह जाता है।

कर्ण एक बलशाली व वीर योद्धा था, इसमें कोई संशय नहीं है। किन्तु कितना बलशाली था, व क्या अर्जुन के बराबर का या उससे बढ़कर था, इस पर लोगों में अक्सर मतभेद व तकरार हो जाती है।

जहाँ तक किसी योद्धा का किसी अन्य योद्धा को मारने का प्रश्न है, तो युद्ध में कुछ भी हो सकता है। जिस अभिमन्यु ने कौरव सेना के सभी महारथियों को परास्त कर दिया था, युद्ध में मृत्यु तो उसे भी मिली। जिन भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान था, विवश व परास्त तो वो भी हो गए। तो युद्ध में वैसे तो कोई भी किसी को भी मार सकता है, यह अपने-अपने भाग्य का खेल है, किन्तु अर्जुन का एक नाम जिष्णु भी था, जिसका अर्थ है जिसे युद्ध में कोई शत्रु स्पर्श ना कर सके, व एक विजय था, अर्थात वो जो हर युद्ध में जीते। अर्जुन ने ये नाम अपने सम्पूर्ण जीवन में अपने कार्यों से अर्जित किए थे। अर्थात, वो अपने जीवन में कभी, कोई युद्ध नहीं हारे। और युद्ध अर्जुन ने बहुत किए। सबसे पहले, द्रोण को गुरुदक्षिणा देने के लिए पाँचाल से युद्ध किया। फिर हस्तिनापुर का वर्चस्व बढ़ाने के लिए त्रिगर्त, सौवीर, सिंधु इत्यादि राज्यों को परास्त किया। पूर्व दिशा जीतने के लिए भीम के साथ निकले व जहाँ गए सबको परास्त किया व हस्तिनापुर का मान बढ़ाया। फिर लाक्षागृह कांड के पश्चात गंधर्व अंगरपर्ण को हराया। फिर द्रौपदी स्वयंवर के पश्चात द्रुपद व द्रौपदी को जीवित जलाने के लिए तत्पर राजाओं से युद्ध कर उन्हें परास्त किया। इंद्र्प्रस्थ बस जाने के पश्चात खाण्डव दहन किया, जिस अवसर पर इंद्र समेत कई देवताओं से युद्ध किया व उन्हें युद्ध रोक देने को विवश किया। उसके पश्चात राजसूय यज्ञ से पहले उत्तर दिशा जीतने के लिए निकले व दूर-दूर के राज्यों को परास्त कर के लौटे। द्यूत व राज्य से निष्कासन के पश्चात अमरावती गए जहाँ इंद्र व अन्य सभी देवताओं से उनके अस्त्र सीखे, व गुरुदक्षिणा में निवतकवच दैत्यों को परास्त किया। इससे पहले किरीट बने शिव से युद्ध किया व अपने पराक्रम से उन्हें प्रसन्न किया। इसके पश्चात हिरण्यपुर में रहने वाले पौलोम व कलकंजस दैत्यों को परास्त किया। लौट कर वनवास में आए व एक मेहनत भरा कठिन जीवन जिया। घोष यात्रा के बाद हुए युद्ध में गंधर्वों को परास्त किया। जयद्रथ ने द्रौपदी का हरण करने की चेष्टा की तो उसे भी परास्त किया। फिर विराट युद्ध में भीष्म, द्रोण, कृपा, अश्वत्थामा, कर्ण, दुर्योधन इत्यादि से सुसज्जित कौरव सेना को परास्त किया। फिर कुरुक्षेत्र का युद्ध। उसके पश्चात अश्वमेध यज्ञ के घोड़े के साथ सम्पूर्ण भारत में घूम के सभी राज्यों को परास्त किया। अर्थात अर्जुन ने अपने सम्पूर्ण जीवन में बहुत युद्ध लड़े, व हारे कभी नहीं।

अब कर्ण के जीवन व युद्ध की समीक्षा करें।सबसे पहले रंगभूमि में उन्होंने अपनी दक्षता का परिचय अवश्य दिया, किन्तु यह युद्ध नहीं था। फिर द्रोण की गुरुदक्षिणा के लिए हुए द्रुपद से युद्ध में वे कौरवों के साथ थे, जो पराजित हो गए। फिर कलिंग की राजकुमारी के स्वयंवर से दुर्योधन के उसका हरण करने के पश्चात राजाओं को परास्त किया। फिर द्रौपदी के स्वयंवर के पश्चात कर्ण ने परास्त हुए राजाओं का नेतृत्व किया जो द्रौपदी व द्रुपद को जीवित जलाना चाहते थे, किन्तु ब्राह्मण वेशधारी अर्जुन से युद्ध हुआ जिससे वो पलायन कर गए। इसके बाद उन्होंने जरासंध को मल्ल युद्ध में पराजित कर उसे दुर्योधन का मित्र बना दिया।द्यूत के पश्चात उन्होंने दुर्योधन के लिए कदाचित कुछ राज्य जीते। फिर घोष यात्रा के युद्ध में गंधर्वों से परास्त हो पलायन कर गए। इसके पश्चात विराट युद्ध में अर्जुन से परास्त हुए व अपने भाई का वध होते देखा। इसके पश्चात कुरुक्षेत्र में अभिमन्यु, सात्यकी, भीम व अर्जुन से परास्त हुए। तो देखा जाए तो ना उनके पास युद्ध का अनुभव अर्जुन जितना था, ना उनका प्रदर्शन अर्जुन जैसा था। ऐसे में यह मानना तनिक कठिन है कि वे इतने बलशाली थे कि युद्ध में अर्जुन को परास्त कर सकते। अर्जुन से हुए हर युद्ध में या तो कर्ण पलायन कर गए या परास्त हुए। भीम से उनका कई बार सामना हुआ, और वो उन्हें परास्त मात्र एक बार कर सके, अन्य सभी बार जीत भीम की हुई। यहाँ तक कि कर्ण की भीम से रक्षा करते हुए दुर्योधन के २० भाइयों का भीम के हाथों वध हो गया। ऐसे में उन्हें अर्जुन के समान मान लेना या यह सोच लेना कि वो अर्जुन को परास्त कर उनका वध कर सकते थे, कल्पना की उड़ान के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।

कवियों व कथाकारों ने कर्ण का जो चित्र बनाया है वो महाभारत की मूल कथा के तथ्यों के प्रतिकूल है।

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