श्रीमद्भगवद्गीता का क्या महत्व है?

  1. श्रीमद्भगवद्‌गीता (श्रीमद् भागवत गीता) हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में से एक विशेष ग्रंथ माना जाता है। यह मात्र एक ग्रंथ नहीं है, बल्कि हजारों वर्षों पहले कहे गए ऐसे उपदेश हैं जो मनुष्य को आज भी जीने की कला सिखाते हैं। जीवन के विभिन्न रास्तों पर उसका मार्गदर्शन करते हैं।
  2. श्रीमद्भगवद्‌गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। भारत के इतिहास का एक ऐसा युद्ध जो दो राज्यों नहीं बल्कि दो परिवारों के बीच हुआ था। जिसका उद्देश्य था धर्म का पालन करना तथा सत्य को जीत हासिल कराना।
  3. आज भी मनुष्य जब जीवन के कई पड़ावों पर आकर परिस्थितियों से मजबूर हो जाता है तो श्रीमद्भगवद्‌गीता ही उसे सही मार्ग दिखाती है। यह ग्रंथ उस मनुष्य को हमेशा ही सत्य का मार्ग चुनने की सलाह देता है।
  4. श्रीमद्भगवद्‌गीता में केवल उपदेश ही नहीं, उसमें शामिल किए गए अध्याय मनुष्य को सही फैसला लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इन सभी अध्यायों में से प्रसिद्ध अध्याय है श्रीकृष्ण तथा राजकुमार अर्जुन के बीच युद्ध शुरू होने से पहले हुआ वार्तालाप।
  5. यह अध्याय हमें आधुनिक युग की ‘टैलीपैथी’ तथा ‘टाइमलेसनेस’ तकनीक को समझाता है। जब दुनिया तकनीक से पूर्ण रूप से वंचित थी उस समय इसका इस्तेमाल किया गया, यह बेहद हैरान करने वाले तथ्य
  6. यह तब की बात है जब कुरुक्षेत्र युद्ध आरंभ हो चुका था। युद्ध का बिगुल बज चुका था, दोनों पक्ष एक-दूसरे के सामने खड़े थे कि तभी अर्जुन ने अपना धनुष उठाया। बेहद उत्साह के साथ यह महान योद्धा युद्ध के मैदान में उतरने के लिए पूर्ण रूप से तैयार था, लेकिन इसके बाद उसे क्या हुआ कोई समझ ना पाया।
  7. राजकुमार अर्जुन के हाथ कंपकंपा रहे थे। उनकी अंगुलियों ने मानो काम ना करने का जवाब दे दिया था। यह महान योद्धा अपना हथियार त्याग एक कोने में बैठ गया। युद्ध भूमि में ऐसे योद्धा को कायरों की तरह बैठा देख श्रीकृष्ण ने अर्जुन से मन से मन के द्वारा ही बात की।
  8. एक ओर महाभारत का युद्ध चल रहा है और दूसरी ओर श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के बीच मस्तिष्क के माध्यम से वार्तालाप चल रहा है। यह वार्तालाप चंद लम्हों का ही थी जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का सार दिखाया।
  9. उस क्षण अर्जुन बोले, “युद्ध में जाना मेरा धर्म है लेकिन अपने गांडीव से जिन लोगों पर मैं प्रहार करने वाला हूं वे कोई और नहीं मेरे ही भाई हैं। यह मेरे अपने हैं तो मैं कैसे अपनों के ही प्राण हर सकता हूं। यह मुझसे नहीं होगा।“
  10. ऐसा कहते हुए अर्जुन ने हथियार ना उठाने का फैसला किया और बोले, “जिस युद्ध में अपनों का ही रक्त बहे, ऐसे युद्ध का क्या लाभ? इस प्रकार के युद्ध को अंजाम देकर हम क्या हासिल कर लेंगे। अंत में अपनों का ही नुकसान हमें देखना होगा।“
  11. श्रीकृष्ण अर्जुन के उस मन की दुविधा को समझ गए थे। उन्होंने अर्जुन को तब अपने विराट रूप से परिचित करवाया। श्रीकृष्ण जो कि भगवान विष्णु के ही अवतार थे उन्होंने अर्जुन को बताया कि कुरुक्षेत्र युद्ध में जो कुछ भी हो रहा है वह उन्हीं की लीला है।
  12. यदि आज अर्जुन हथियार उठाने से मना भी कर दें तो वे एक ही क्षण में इस युद्ध को धर्म के हित में विजयी कर सकते हैं। लेकिन उन्होंने ऐसा करने के लिए राजकुमार अर्जुन को अपना माध्यम चुना है। इसीलिए उन्हें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
  13. श्रीमद्भगवद्‌गीता का एक और अध्याय मनुष्य को जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाता है। यह अध्याय मनुष्य को समझाता है कि किस प्रकार से अपने अंतर्मन पर नियंत्रण कर सकता है। यह तब की बात है जब राजकुमार अर्जुन अपने पिता इन्द्र देव के साथ स्वर्गलोक में बैठे थे।
  14. स्वर्गलोक में उस समय सभी देवगण उपस्थित थे तथा उनका मनोरंजन करने के लिए स्वर्गलोक की सबसे खूबसूरत अप्सरा उर्वशी द्वारा नृत्य किया जा रहा था। राजकुमार अर्जुन को हमेशा से ही नृत्य एवं संगीत से एक गहरा लगाव था।
  15. वे उर्वशी के थरथराते हुए पांवों को बेहद ध्यान से देख रहे थे और एक भी पल अपनी पलकें झपका नहीं रहे थे। उसी दौरान इन्द्र देव ने देखा कि कैसे अर्जुन उर्वशी को लगातार निहार रहे हैं लेकिन उन्होंने अर्जुन की मनोदशा को गलत समझा।
  16. उन्हें लगा कि शायद अर्जुन उर्वशी की ओर मोहित हो रहे हैं तभी एक पल के लिए भी अपने नयन उर्वशी से वंचित नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा जान इन्द्र द्वारा रात्रि के समय अप्सरा उर्वशी को अर्जुन के कक्ष में भेजा गया। लेकिन उर्वशी के आने पर अर्जुन का जो व्यवहार था वह बिलकुल विपरीत था।
  17. उर्वशी को आता देख अर्जुन बोले, “हे माता! आपको इस समय मेरे कक्ष में पधारने की आवश्यकता क्यों पड़ी। यदि आपको कोई काम था तो आप मुझे अपने कक्ष में स्वयं बुला लेतीं।“
  18. अर्जुन के इस सवाल से उर्वशी अपने क्रोध को काबू में ना कर सकीं। स्वर्गलोक की एक ऐसी अप्सरा जिसके सौंदर्य को देख कोई भी देव अथवा पुरुष अपनी भावनाओं को काबू में नहीं पर पाता है उसे अर्जुन द्वारा ‘माता’ कहकर पुकारा गया। यह बात अप्सरा उर्वशी के लिए अपमान के समान थी।
  19. लेकिन श्रीमद्भगवद्‌गीता में वर्णित यह अध्याय हमें समझाता है कि परिस्थिति चाहे कुछ भी हो, हमारे पक्ष में हो या ना हो लेकिन यदि हम अपने मन तथा मस्तिष्क को अपने वश में कर लेते हों और किसी भी अन्य वस्तु एवं व्यक्ति को उसे प्रभावित करने की अनुमति नहीं देते तो वह हमें किसी भी प्रकार से हानि नहीं पहुंचा सकता।
  20. इस आर्टिकल में लिए गए श्रीमद्भगवद्‌गीता के इन दो आख्यानों के अलावा अन्य कई ऐसे आख्यान हैं जो हमें सही जीवन जीने का मार्ग दिखाते हैं। हमारी कठिनाइयों को हल करने की सलाह देते हैं तथा हमें हिम्मत प्रदान करते हैं। आगे कुछ आर्टिकल में मंक अन्य आख्यानों पर भी रोशनी डालने की कोशिश करूंगी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *