नवरात्री – स्त्री शक्ति की पूजा का समय

समस्त भारत में यह समय त्यौहारों के मौसम के रूप में जाना जाता है, जिसकी शुरुआत नवरात्रों से होती है। क्या है महत्व इस त्यौहार का और क्यों इन्हीं दिनों इतने त्यौहार मनाए जाते हैं… जानते हैं सद्‌गुरु से –

जून महीने में आने वाली ग्रीष्म संक्रांति से दक्षिणायन शुरू होता है। दक्षिणायन में पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में सूर्य दक्षिण की ओर बढ़ने लगता है। इसी तरह दिसंबर महीने में आने वाली शीत संक्रांति से उत्तरायण की शुरुआत होती है जिसमें सूर्य की दिशा उत्तर की तरफ हो जाती है। यौगिक संस्कृति में दिसंबर में उत्तरायण की शुरुआत से जून में दक्षिणायन की शुरुआत तक का छह माह का समय ज्ञान पद के नाम से जाना जाता है। दक्षिणायन की शुरुआत से उत्तरायण की शुरुआत तक साल का दूसरा आधा भाग साधना पद के नाम से जाना जाता है। दक्षिणायन का समय अंतरंगता या फिर नारीत्व का समय होता है। इस समय पृथ्वी में नारीत्व से सम्बंधित गुणों की प्रधानता होती है।

स्त्रैण ऊर्जा से जुड़े त्यौहार इन्हीं छह महीनों में मनाए जाते हैं। इस धरती की पूरी संस्कृति इसी के अनुकूल रची गई थी। इन दिनों हर महीने, कोई न कोई त्यौहार होता है। साल के इस स्त्रियोचित अर्ध भाग में, 22 सितंबर को शरद इक्वीनॉक्स होता है। आपको शायद पता होगा कि इक्वीनॉक्स उस दिन को कहते हैं जब दिन और रात बराबर होते हैं। इक्वीनॉक्स के बाद की पहली अमावस्या से दिसंबर में उत्तरायण के आरंभ होने तक का, तीन महीने का समय ‘देवी पद’ कहलाता है। इस तिमाही में, पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सौम्य हो जाता है क्योंकि इस तिमाही में उत्तरी गोलार्ध को सबसे कम धूप मिलती है। इसलिए सब कुछ मंद होता है, ऊर्जा बहुत सक्रिय नहीं होती है।

महालय अमावस्या के बाद का दिन नवरात्रि का पहला दिन होता है। नवरात्रि का संबंध देवी से है। कर्नाटक में, नवरात्रि का संबंध चामुंडी से, बंगाल में दुर्गा से है। इसी तरह, यह अलग-अलग जगहों में अलग-अलग देवियों के लिए मनाया जाता है, लेकिन मुख्य रूप से नवरात्रि का संबंध देवी यानी दिव्यता की स्त्री-शक्ति से ही होता है।

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