दुर्भाग्य को भी एक अवसर बना लें अपने विकास का

सद्‌गुरु दक्षिण भारत में आई सुनामी का उदाहरण देते हुए बता रहे हैं कि कैसे दुर्भाग्य की स्थिति को भी हम अपने विकास के लिए एक सुनहले अवसर की तरह देख सकते हैं। 

प्रेममय होकर ही दुर्भाग्य से बाहर आ सकते हैं
किसी भी हानि या नुकसान या दुर्भाग्य को विकास और उन्नति के अवसर के रूप में देखना चाहिए। हाल में, समुंदर की गोदी में सो रही धरती ने निद्रा में ही जरा अपनी करवट बदली थी। बस… समुद्र-तट की कुछ जमीनें गायब हो गईं।
दैत्याकार लहरों ने सैकड़ों जानें निगल डालीं। समुद्र-तट से लगी जमीनों पर मकान बनाना उनकी सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है-इस नियम की उपेक्षा किये जाने के कारण फिर एक बार कुछ जानें जुर्माने के तौर पर वसूली गईं। समुद्र मानव को लाखों की तादाद में मछलियाँ उपहार के रूप में देता रहा, उस समय मानव ने उसे मित्र के रूप में नहीं माना। उसी समुद्र ने आज एक बार गर्जन किया तो इसी वजह से उसे दुश्मन के रूप में देखा गया।

नववर्ष के आगमन की प्रत्यूषा में हुई इस आकस्मिक आपदा (सुनामी) से जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। लोगों के सामने यही सवाल उठ खडा हुआ कि संवत्सर का प्रारंभ होते ही एक के बाद एक आने वाले पर्व-त्योहारों को मनाएँ या हम भी इस शोक में शरीक हो जाएँ। संकट में फँसे इन लोगों के बीच में जाते समय यह आवश्यक नहीं है कि हम भी दुख और वेदना में फँसे रहें। सबके मिल-बैठकर रोने-कलपने का मौका नहीं है यह। बीमार लोगों की देखभाल करते हुए उनकी सेवा और उपचार करना है तो वह किनसे संभव है? स्वस्थ लोगों के द्वारा। है न?
सब कुछ गँवाकर भारी विपदा में फँसे लोगों को उस दुख-दर्द से उबारना हो तो वह किन से संभव है? आनंद में रहने वाले लोगों से, है न? फौरन यह सवाल फूटकर निकल सकता है, ‘क्या कहा? जब अगला दुख-दर्द के कारण शोक-मूक हो तब मैं कैसे आनंद में रह सकता हूँ। क्या यह चिंतन क्रूर और वक्रतापूर्ण नहीं है?’

भीतरी आनंद की जरुरत है
वस्तुओं के लाभ से ही आनंद मिलता है इस उसूल के साथ जो लोग जीवन बिताते हैं, उन्हें एक हजार अच्छाइयों के बाद एक दुर्भाग्य आ जाए तो उनके लिए सब कुछ दु:खपूर्ण बन जाता है। मैं इस कोटि के आनंद का जिक्र नहीं कर रहा हूँ।
यह किसने कहा कि आनंद में रहने का मतलब गाजे-बाजे और आतिशबाजी के साथ खुशी मनाते रहना है? प्रेममय रहना आनंद की अवस्था है। रोने वाले को दिलासा देना और उसे ढाढ़स बँधवाना आनंद है।
दीन-दुखियों को स्नेहपूर्वक सहारा देना आनंद है। बेबस और लाचार भाइयों की दिल से सेवा करने से आनंद मिलता है। विपत्तियों के बीच में उनसे प्रभावित हुए बिना माहौल के अनुकूल अपने को ढाल सकें, यही आनंद की वास्तविक स्थिति है।
ऐसा नहीं कि पाने में ही आनंद है, देने में भी आनंद है।
विज्ञान कहता है, जब भूखे आदमी को खाने को कुछ मिले तभी उसमें ताकत आती है।
लेकिन महात्मा बुद्ध कहते हैं-यदि भूखा व्यक्ति अपने भोजन को उठाकर अन्य किसी जरूरतमंद को देगा तो वही कार्य उसे अधिक शक्ति प्रदान करेगा।
नदी-जल में खड़े होकर कपड़ों को धो रहे किसी धोबी की नजर किसी चमकीले पत्थर पर पड़ी। धोबी ने उसे उठाकर एक डोरी में बाँधा और अपने गधे के गले में अलंकार-वस्तु के रूप में पहनाया।
धुले हुए कपड़ों को बाँटने के लिए जब वह बस्ती के अंदर गया, किसी जौहरी ने उस पत्थर को गौर से देखा। उसने कहा, ‘‘वह पत्थर मुझे दे दो। मैं तुश्वहें एक रुपया दूँगा।’’
धोबी ने दृढतापूर्वक कहा, ‘‘पाँच रुपए देंगे तो इसे दे सकता हूँ। नहीं तो यह पत्थर मेरे गधे के गले के सिंगार के रूप में पड़ा रहेगा, बस।’’ वह व्यापारी ‘दो रुपए दूँगा, तीन दूँगा’ यों सौदेबाजी करता रहा।
इस बीच अगली दुकान पर बैठे जौहरी ने यह सब देखकर कहा, ‘बस एक दाम! यह लो हजार रुपए।’ धोबी के हाथ में पैसे रखते हुए जल्दी-जल्दी में सौदा पटा लिया और पत्थर ले लिया।
पहला व्यापारी झल्ला उठा, धोबी से बोला, ‘‘अरे बेवकूफ! वह हीरा था रे हीरा! उसका मोल एक लाख से ज्यादा होगा। ऐसे कीमती पत्थर को हजार रुपए में दे दिया न? तुम ठगे गए हाँ!’’
‘‘हो सकता है, लेकिन मेरे लिए तो वह सिर्फ एक साधारण पत्थर था। हजार रुपए में उसे बेचने पर भी मैं फायदे में ही हूँ। उसका मूल्य जानते हुए भी पाँच रुपए देने का मन न होने से, सौदेबाजी करने जाकर तुम्हीं अपनी मूर्खतावश उसे खो बैठे हो!’’ यह कहकर धोबी हँस पड़ा।

हर परिस्थिति को विकास में काम लाना सीखें
अपने अंदर बसी अमूल्य मानवता का बोध होते हुए भी उसे बाहर प्रकाशित न करने के लिए, दो-तीन रुपए की सौदाबाजी करने वाले मूर्ख व्यापारी हैं आप? अक्लमंदी इसी में है कि आप किसी हानि या नुकसान को विकास के लिए काम में ला सकें।
इसे आप एक सुनहला अवसर मान लें क्योंकि यांत्रिक जीवन में फँसकर आपके अंदर जो मानवता जड़ीभूत हो गई थी उसमें नया अंकुर फूट रहा है, नई कोंपलें आ रही हैं।
मौत के घाट उतरे एक लाख से ज्यादा लोगों के चेहरे आपके लिए अनजान जरूर हैं, लेकिन चंद पलों के लिए हार्दिक रूप से उन्हें अपने घनिष्ठ मित्र या बंधुओं के रूप में सोचिए। आपको एहसास होगा कि सुन्न पड़ी हुई आपकी संवेदना हरहराकर उठ रही है।
अपने बंधु-मित्रों को खोकर तड़पने वाले लोगों को आप जिन आँखों से देखेंगे उनमें करुणा अपने आप जागेगी। बहुत ही सीमित समय में वर्तमान दुख और कष्ट दूर होंगे और उनके जीवन में आनंद लौटकर आएगा।

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