इस ब्लॉग में सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि नशे की आदत सिर्फ चाय, कॉफ़ी शराब आदि की ही नहीं होती। नशे का अर्थ है किसी चीज़ को बार-बार दोहराना, और हम सिर्फ सुखदायक चीज़ों के ही नहीं, कष्टदायक चीज़ों के भी नशे में पड़ सकते हैं…जानते हैं अलग-अलग तरह के नशों के बारे में…
शरीर और मन सिर्फ पुरानी चीज़ दोहरा सकते हैं
इस अस्तित्व में जो भी चीजें दोहराई जाती हैं, वे सिर्फ शारीरिक और मानसिक स्तर तक ही सीमित हैं। शारीरिक रूप और मानसिक दशा, ये ही दो चीजें हैं जिनका स्वभाव दोहराव वाला है।
मन बस एक पुनरावृत्ति या दोहराव है – यह सिर्फ अपनी पुरानी चीजों के आधार पर ही काम कर सकता है। अगर आप इसकी पुरानी चीजों को हटा दें, तो फिर यह वैसे ही काम करेगा, जैसे करना चाहिए – बिल्कुल एक साफ दर्पण की तरह, यह बस आपके लिए जीवन को प्रतिबिंबित करेगा। लेकिन अभी मन जैसे काम करता है – यह स्वाभाविक रूप से चीजों को दोहराता है, क्योंकि यह लगातार पुरानी बातों में डोलता रहता है।
सुख और दुःख दोनों का ही नशा हो सकता है
इस तरह नशा अल्कोहल, सिगरेट, कॉफी आदि का ही नहीं होता, कई दूसरी चीजों का भी होता है। नशा बहुत गहरे तक हो सकता है।
यह सिर्फ उन्हीं चीजों का नहीं होता, जो हमें मजा देती हैं। आप कष्टदायक चीजों के भी आदी हो सकते हैं। आप बार-बार ऐसी चीजों को वापस लाते रहते हैं। नशेड़ी होने के लिए आपको मजे की चीजों को ही करने की जरूरत नहीं होती। चूंकि जागरूकता नहीं है, इसलिए आप किसी भी चीज से चिपके रहना चाहते हैं, भले ही वह कोई भी चीज हो। कई बार ऐसा संयोगवश होता है, कई बार इच्छा से आप किसी चीज या किसी इंसान से चिपक जाते हैं, जो कि आपके जीवन में नशे की तरह हो जाता है।
इसलिए नशे को बस सिगरेट, कॉफी, शराब आदि के रूप में ही मत देखिए। मैं तो कहूंगा कि ज्यादातर इंसान किसी न किसी तरह के नशे में बहुत बुरी तरह फंसे हैं। जो आप पूरी जागरूकता से चुनते हैं, वह आपको छूता भी है और सीधे आगे ले जाता है, लेकिन जो आप बाध्य होकर करते हैं, वह आपको गोल-गोल घुमाता रहता है। तो सार यही है कि व्यसन शरीर और मन के होते हैं। अब एक सवाल आपके मन में यह उठ सकता है कि क्या व्यसन कार्मिक होते हैं? सभी कर्मों का संबंध शरीर और मन से है, जीवन के किसी और पहलू से उनका संबंध नहीं है। या तो आप अपने शरीर में कर्म जमा कर सकते हैंया मन में, कहीं और नहीं। यह शरीर, भौतिक शरीर हो सकता है, रासायनिक शरीर हो सकता है, या ऊर्जा शरीर भी हो सकता है, लेकिन कर्म इकट्ठे होंगे आपके शरीर में ही। योग की भाषा में मन नहीं होता, केवल शरीर होता है, भौतिक शरीर, मानसिक शरीर, ऊर्जा शरीर, सभी तरह के शरीर।
लक्ष्य हर जगह फैला है
इसलिए नशे को सीमित रूप में मत देखिए। आप खुद एक नशा हैं। जन्म और मृत्यु का नशा – और इनके साथ आने वाली कई तरह की बेकार चीजों का भी नशा।
गणित की भाषा में कहें तो अभी आप वृत्त में घूम रहे हैं, बल्कि आप खुद एक वृत्त बने हुए हैं और स्पर्श रेखा यानी टैन्जेंट आप तभी बन सकते हैं जब जीवन और मृत्यु के नशे से मुक्त हो जाएं। स्पर्श रेखा सीधे आपके लक्ष्य की ओर जा रही है। सौभाग्य से आपका लक्ष्य 360 डिग्री में फैला है। लक्ष्य यहां या वहां नहीं है, यह हर दिशा में है। आप चाहे जिस रास्ते जाइए, लेकिन सीधे जाइए तो आपको लक्ष्य मिल जाएगा। अगर आप चाहें तो अपने नशे को एक वाहन के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। आप वही करें, सिर्फ वही, कुछ और नहीं। कॉफी मत पीजिए, उसी में तैरिए, उसी में डूब जाइए। इससे आपका काम बन जाएगा। अगर आपको ईष्र्या, गुस्सा जैसी परेशानियां हैं, तो 24 घंटे उन्हीं में रहिए। आपको आपका लक्ष्य मिल जाएगा। अगर आप सीधे रास्ते पर हैं, तब आपको किसी खास दिशा में जाने की जरूरत नहीं है। निश्चल तत्वम, जीवन मुक्ति। अगर आपके पास अटल मार्ग है तो आप वहां पहुंच ही जाएंगे।
अगर आप सीधे मार्ग पर हैं, तो मंजिल तक पहुँच जाएंगे
कुछ लोग नजदीक हैं कुछ दूर हैं, लेकिन सभी उस तक पहुंच अवश्य जाएंगे। आप जो चाहते हैं, अगर आप उस पर अटल हैं, तो आप उसे पा ही लेंगे, चाहे वह जो भी हो।
तो जब मंजिल हर तरफ है, 360 डिग्री में फैली है तो आप लक्ष्य को चूक ही नहीं सकते। है न? आपको बस सीधे रास्ते पर बने रहना है। हर दिन अपने लक्ष्यों को बदलना, हर दिन अपनी प्राथमिकताओं को बदलना आपको चक्रों की व्यसनकारी प्रक्रिया में फंसा देगा। कहने का अर्थ यही है कि सारे बंधन आपकी शारीरिक और मानसिक अवस्थाओं से ही पैदा होते हैं। तो क्या शरीर या मन कोई अभिशाप हैं? नहीं, ये तो जबर्दस्त संभावनाएं हैं। अगर आपको मैं एक बड़ा सा पहिया दे दूं तो आप उसे या तो जमीन पर यूं ही रख कर आस-पास घूम सकते हैं, घूमा सकते हैं, या उसे घुमाकर बर्तन भी बना सकते हैं या उसे चलाना सीखकर अपनी मंजिल की ओर जाने का वाहन भी बना सकते हैं। आपका शरीर और दिमाग ऐसा ही एक पहिया है। आप इसे घुमा रहे हैं, इसके आस-पास घूम रहे हैं, प्रेम कर रहे हैं, नफरत कर रहे हैं, यह इस सबके लिए नहीं है। इसे तो इसकी संपूर्ण संभावनाओं के साथ इस्तेमाल किया जाना चाहिए, सीमित संभावनाओं के साथ नहीं। इसे इसकी संपूर्ण संभावनाओं के साथ इस्तेमाल कीजिए और यह आपको निश्चित रूप से आपकी मंजिल तक ले जाएगा, क्योंकि आपके पास यही एक वाहन है। योग यही सिखाता है। योग सिखाता है कि शरीर और मन को अपने जीवन की एक रूकावट के रूप में बदलने की जगह एक शानदार वाहन में कैसे बदला जाए।