विश्व के हर धर्म में स्वर्ग की कल्पना की गई है। क्या स्वर्ग के इस विचार ने मानवता का कोई भला किया है? सद्गुरु बता रहे हैं कि ऐसे विचारों में विश्वास करके हम धरती को नरक बना रहे हैं।
क्या स्वर्ग के विचार ने भला किया है?
प्रश्न : सद्गुरु, मुझे ऐसा लगता है कि स्वर्ग की कल्पना हर धर्म में है, जिससे लोग अपने जीवन में सही काम करें। ज्यादातर ऐसा होता है कि अच्छे काम हम मजबूरी में करते हैं। ऐसे में लोगों को सही राह पर चलाने के लिए स्वर्ग की परिकल्पना की गई। क्या स्वर्ग की अवधारणा मानवता के लिए उपयोगी बात नहीं है?
सद्गुरु : अभी दुनिया के कुछ खास हिस्सों में कुछ लोग स्वर्ग जाने के लिए काफी सक्रिय हैं। बात सिर्फ यह है कि वे आपको भी अपने साथ ले जाना चाहते हैं।
मैं पूछता हूं कि क्या स्वर्ग में उनका विश्वास, उन्हें इस बात के लिए प्रेरित कर रहा है कि वे सही काम करें? आपको एक बात समझनी होगी कि जब आपको लगता है कि रहने के लिए कोई दूसरा स्थान बेहतर है, तो आप यहां अच्छी तरह से नहीं जी पाएंगे। एक बात बताइए, क्या आपके पास कोई सबूत है कि आप पहले से ही स्वर्ग में नहीं हैं? आपने मंगलयान से ली गई मंगल ग्रह की तस्वीरों को देखा होगा। इनमें मंगल ग्रह की काफी नजदीक से ली गई तस्वीरें हैं। ऐसे ही नजदीक से आप दूसरे ग्रहों की तस्वीरें भी ले सकते हैं। आप इन सभी को देखिए। सबको देखने के बाद आप पाएंगे कि हमारी पृथ्वी किसी स्वर्ग से कम नहीं है।
आप पहले ही स्वर्ग में हैं
मैं आपको यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि आप पहले से ही स्वर्ग में हैं। बस आप इस बात को समझ नहीं रहे हैं। अगर आपको समझ नहीं आ रहा है तो इसरो के अगले मिशन में आपको भेज देते हैं।
आप यही कहेंगे कि दूसरी जगहें अच्छी नहीं हैं, यह धरती ही अच्छी है। हम इस धरती को खराब कर रहे हैं। अगर हम यह समझ लें कि यही स्वर्ग है, तो हम इसका ख्याल रखेंगे। स्वर्ग की सोच ने इंसान को बेहतर नहीं बनाया है। इसने इंसान को कुटिल बना दिया है। जो लोग इन चीजों में भरोसा करते हैं, उन्होंने ही दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों की हत्याएं की हैं – इतिहास इस बात का गवाह है।
जो कोई भी स्वर्ग जाने को उत्सुक है और उसे लगता है कि स्वर्ग शानदार जगह है, उसे कम-से-कम अकेले जाना चाहिए। उसे किसी का साथ ढूंढने की जरूरत नहीं है। इंसान की यह अधकचरी सोच है कि ऊपर कहीं ऐसी जगह है, जहां भोजन अधिक है। अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप बेहद भूखे हैं। अगर आप सोचते हैं कि वहां ज्यादा मजा है, तो इसका मतलब है कि कहीं न कहीं आप मजे की खोज में हैं। आप सोचते हैं कि यहां तो आपको गिलासों से पीना पड़ता है, वहां तो शराब की नदियां बह रही होंगी, आप उसमें डूब सकते हैं। मैं आपको बता रहा हूं ‐ या तो आप पानी में डूबें या शराब में, एक-सा ही महसूस होता है। सच में स्वर्ग की सारी सोच इंसान के विकृत दिमाग की उपज है।
स्वर्ग में सिर्फ पुरुषों के सुख की चीज़ें हैं
आपने गौर किया है कि स्वर्ग में महिलाओं के लिए कुछ भी काम की चीज नहीं है। बस पुरुषों के ही सुख की चीजें हैं।
फिर पुरुष को ही वहां जाने दिया जाए। महिलाएं यही रुकें और अपने जीवन का मजा लें। अगर आपको लगता है कि मानवता को सही रास्ते पर रखने का यही तरीका है, तो स्पष्ट है कि ये तरीका कारगर नहीं रहा है, है न? सभी धार्मिक समूह यही कहते हैं कि ईश्वर सबसे शक्तिशाली है, सर्वोच्च है। अगर ईश्वर सर्वोच्च है, तो उसने इस सृष्टि के साथ अच्छा काम ही किया होगा। फिर आपको उसे ठीक करने की जरूरत ही कहां है? आपको लगता है कि ईश्वर महान है, उसकी पूजा की जानी चाहिए, लेकिन उसने इंसानों के साथ बहुत सारी गलतियां की हैं, जिन्हें आप ठीक करना चाहते हैं। क्या यह अर्थपूर्ण है? अगर आप वास्तव में उस महान रचयिता पर भरोसा करते हैं, तो यह जगत आपको शानदार महसूस होना चाहिए। अगर आप इसे खराब नहीं करेंगे तो सब ठीक होगा। आपने इस जगत को इतना बिगाडक़र रख दिया है कि अब कोई भी इंसान सीधा नहीं हो सकता, हर कोई पागल हो चुका है।
खुद के भीतर स्वर्ग सा महसूस होना चाहिए
आपने देखा है कि जब आपके बच्चे छोटे थे तो कितने अच्छे थे। धीरे-धीरे आपने, आपके पड़ोसियों ने, टीचर्स ने, समाज ने उन्हें बिगाड़ दिया। उन्हें बिगाडऩे में आप सभी की हिस्सेदारी है।
जब उन बच्चों का जन्म हुआ था, स्वाभाविक रूप से वे अच्छे थे कि नहीं? सुंदर थे कि नहीं? मस्ती से भरे थे कि नहीं? तो जब भी आपके बच्चे हों, आपको मानकर चलना चाहिए कि यह समय उनसे कुछ सीखने का है, उन्हें तरह-तरह की चीजें सिखाकर उनके दिमाग में कचरा भरने का नहीं है। वे जीवन के ज्यादा नजदीक हैं। आप देखिए कि आपके और आपके बच्चों में से कौन ज्यादा आनंद में है? आपका बच्चा। ऐसे में जीवन का सलाहकार किसे होना चाहिए? सबसे पहली बात यह है कि हमें खुद अपने भीतर स्वर्ग सा महसूस होना चाहिए। अगर आंखें बंद करने पर आपको स्वर्ग जैसा महसूस होता है, तभी आप उसे हकीकत में बदलने के बारे में सोचेंगे। आप जिस जगह रहते हैं, उसे स्वर्ग जैसा बनाने की कोशिश करेंगे। आप दुनिया को स्वर्ग जैसा बनाने की कोशिश करेंगे। अगर यह जगह आपको कष्टदायक महसूस हो रही है तो आप किसी दूसरी जगह जाएंगे और उसे भी खराब कर देंगे। यहां मौजूद सभी दुखी लोग जो बेहद गुस्से में हैं और भेदभाव से ग्रस्त हैं, अगर वे स्वर्ग चले गए तो फिर स्वर्ग ऐसी जगह नहीं रह जाएगी, जहां कोई जाना पसंद करे।