एक साधक ने सद्गुरु से प्रश्न पूछा कि आत्म बोध या आत्म ज्ञान पाने में कृपा का कितना महत्व है। सद्गुरु बता रहे हैं कि सिर्फ कृपा ही है, जो आपको आत्म बोध तक ले जाएगी और इसके लिए आपको खुद को छोटा बनाना होगा, क्योंकि छोटा होना शून्य के पर्याप्त रूप से करीब है।
प्रश्न : कहा जाता है कि आत्म बोध पाने के लिए कृपा भी एक तरीका है। सद्गुरु क्या हमें बताएंगे कि इस कृपा का मतलब क्या है?
सद्गुरु : कोई भी दूसरा उपाय नहीं हैं, कृपा एकमात्र उपाय है। इसे न्यूटन ने इसे इस तरह प्रस्तुत किया – यह कहने का एक तरीका भर है – उसने एक सेब को पेड़ से नीचे गिरते देख कर एक पूरी थ्यूरी दे दी कि कोई भी चीज कैसे नीचे गिरती है।
यह सच है कि एक सेब नीचे ही गिरता है, लेकिन पूरा पेड़ तो ऊपर की तरफ ही बढ़ता है। गुरुत्वाकर्षण वह है जो आपको नीचे की ओर खींचता है और आपको रोककर रखता है – यह आपके जीवन को बचाए रखने के लिए है। कृपा आपको अलग दिशा में, लगातार खींच रही है।
आत्म बोध पाने का अर्थ है शून्य हो जाना
जब हम कहते हैं, ‘शिव’, तो हम उस पहलू की बात कर रहे हैं जो आपको लगातार शून्य में खींच लेने की कोशिश कर रहा है।
आपका एक पहलू है जो अपने अस्तित्व को हमेशा बनाए रखना चाहता है, लेकिन आपका अस्तित्व भी एक निश्चित समय तक ही है। चाहे आप हों, यह ग्रह हो, यह सौर मंडल हो या संपूर्ण तारामंडल, ये सब अस्तित्व सीमित समय के लिए हैं। सब कुछ उसी कृपा से उपजा है और उसमें ही समा जाता है। आप जिसे शून्य कह रहे हैं, वही कृपा है। आप जिसे शिव कह रहे हैं, वह वही कृपा है। हम जब कृपा के बारे में बात करते हैं, तब उसी कृपा के बारे में बात कर रहे होते हैं।
अब सवाल यह है कि मैं इसे कैसे छू सकता हूं? अपने आसपास देखिए और अपने मामूली होने को महसूस कीजिए – मामूली या छोटा होने का मतलब ‘कुछ नहीं’ होना नहीं है, छोटा होना शून्य होनेे के पर्याप्त रूप से करीब है। आपको छोटा होने का दिखावा नहीं करना क्योंकि आप वास्तव में बहुत ही छोटे जीव हैं। आप केवल बड़ा होने का दिखावा कर रहे हैं। अगर आप इन सभी आडंबरों से ऊपर उठ जाएं, तो आप उस कृपा को पा लेंगे।
अगर आपकी सिर्फ एक आंख हो…
आप जानते हैं, जीसस ने कहा था, ‘अगर आपकी सिर्फ एक आंख हो, तो आपका सारा शरीर प्रकाशमान हो जाएगा।’ दो भौतिक आंखें भेदभाव करती हैं।
वे आपको ऊंचा-नीचा, स्त्री-पुरुष, छोटे और बड़े में उलझा देती हैं। ये दो आंखें जीवन-यापन के साधन हैं। एक आंख होने का मतलब यह नहीं कि दूसरी आंख को बंद कर लें, इसका मतलब है कि आपके मन में कोई भेदभाव नहीं होगा। आप हर चीज को एक ही रूप में देखेंगे। अगर आप ऐसे बनेंगे, तो आपका शरीर प्रकाश से भर जाएगा और यही कृपा है।
कृपा का अर्थ है कि सृष्टि का स्रोत, जो सृष्टि से भी विशाल है, वह अब आपसे बाहर नहीं है, यह आपके भीतर है। अब आप प्रकाश का बाहरी स्त्रोत नहीं ढूंढ रहे – आप ही प्रकाश का स्रोत हो गए हैं। जब आप एक क्षण के लिए भी इस रूप को पा लेंगे तो आपका जीवन कभी पहले जैसा नहीं रहेगा। हम ईशा में ऐसे बहुत से काम कर रहे हैं ताकि आपको किसी तरह इसका अनुभव मिल सके, चाहे एक पल के लिए ही सही। हो सकता है आप इसे हर समय महसूस नहीं कर पाएं, लेकिन एक क्षण के लिए भी अगर आप खुद को उस प्रकाश से भरा हुआ महसूस कर सकें इसका मतलब है कि आपको भी वह कृपा मिल गई है।
अगर इसने एक बार भी आपको छू लिया है, और फिर कभी यह आपके पास नहीं आता, तब भी आपका जीवन पहले जैसा नहीं रह जाएगा। आप उस एक क्षण में बने रह सकते हैं और अपने आसपास के लोगों से बहुत अलग तरह से जी सकते हैं। यदि यह सदा आपके साथ रहेगा, तो इसका वर्णन ही नहीं किया जा सकता।