वर्ष के अंत में अक्सर समय को लेकर सवाल उठते हैं। हम अतीत का मतलब कैसे निकालते हैं? भविष्य में क्या है? हम किस ओर जा रहे हैं?
मैं अक्सर लोगों से एक सवाल पूछता हूं: क्या आपने कभी बीते हुए कल या आने वाले कल का अनुभव किया है? आप बीते हुए कल को याद कर सकते हैं, आप आने वाले कल की कल्पना कर सकते हैं, मगर ये सब सिर्फ विचार होते हैं। आपके अनुभव में, कभी ऐसी चीज नहीं हुई है। जीवन का आपका अनुभव हमेशा वर्तमान में रहा है। जीवन का आपका अनुभव इस पल में घटित हो रहा है। इसलिए समय मनुष्य के मन की उपज है। इस अस्तित्व में ऐसी कोई चीज नहीं है।
समय और स्थान भौतिक सृष्टि के लिए जरूरी आयाम हैं। मगर जब आप भौतिक या स्थूल से परे किसी आयाम को स्पर्श करते हैं, तो यहां और वहां, अब और तब जैसी कोई चीज नहीं होती। सब कुछ यहीं है। सब कुछ अभी है।
एक बार जब आप आध्यात्मिक होने की इच्छा करते हैं, तो इसका मतलब है कि आप स्थूल की सीमाओं से परे जाना चाहते हैं। इस खोज में, सबसे बड़ी बाधा मौत से आपका डर है।
यह आपको स्थूल से कसकर चिपक जाने के लिए मजबूर कर देता है, जो उसकी सीमाओं से परे जाने की आपकी कोशिशों को व्यर्थ कर देता है। यह ऐसा ही है, मानो आप लंगर डालकर नाव चला रहे हैं। यह सिर्फ ऊर्जा और जीवन की बड़ी बरबादी है। मगर एक बार जब आप स्थूल से परे चले जाते हैं, तो आप समय और स्थान को बस अपने चेतन दिमाग की कल्पना पाएंगे।
आज भौतिकविज्ञानियों का कहना है कि जिसे शून्यता की स्थिति कहा जाता है, उसमें सृजन और विनाश की एक पूरी प्रक्रिया चल रही है। इस संस्कृति में, हमने हमेशा समय चक्रों के संदर्भ में समय की चर्चा की है। आधुनिक भौतिकविज्ञानी अब तक एक लगातार विस्तृत होते ब्रह्मांड की बात करते रहे हैं। मगर अब पहली बार वे यह भी कह रहे हैं कि जिस तरह कभी बड़ा धमाका हुआ था, यह भी संभव है कि किसी दिन एक बड़ा विनाश हो। इसका मतलब है कि जिस तरह यह ब्रह्मांड किसी बहुत सूक्ष्म चीज से किसी बहुत विशाल चीज में विस्तृत होता है, इसकी उल्टी प्रक्रिया भी हो सकती है जो हरचीज को वर्तमान स्थिति में ला सकता है।
इस बारे में रहस्यवादी या आध्यात्मिक गुरु हमेशा से अपने भीतर अनुभव से जानते रहे हैं। जब हम निर्वाण, मोक्ष, शून्य की बात करते हैं, तो हम ठीक यही कह रहे होते हैं कि यह ब्रह्मांड शून्य से उत्पन्न हुआ और अगर आप उसे पूरा चक्र करने दें, तो वह एक बार फिर से बिल्कुल शून्यता की स्थिति में चला जाएगा।
मैं मानव विचारों का दास नहीं हूं, इसलिए मैं कभी समय का दास नहीं रहा हूं। जब आपका वर्तमान का अनुभव काफी बड़ा नहीं होता है, तभी आप कहीं और जाना चाहते हैं। अगर यह पल पर्याप्त रूप से महत्वपूर्ण है, तो आप कहां जाना चाहेंगे? आपको पता चलेगा कि समय जैसी कोई चीज नहीं है, यहां बस शाश्वतता है, अमरत्व है।
फिर भी, मैं हमेशा समय पर होता हूं और ईशा में हमारे कार्यक्रम हमेशा समय पर होते हैं। मैं समय की पाबंदी को अनुशासन या समय प्रबंधन की तरह नहीं देखता, बल्कि सामान्य शिष्टता की चीज मानता हूं। हमारा जीवन मूल्यवान है, इसलिए किसी और के समय को बर्बाद करने का अधिकार किसी के पास नहीं है। इसलिए किसी भी कीमत पर समय पर पहुंचना मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कभी-कभार मैं अपने जीवन का जोखिम उठाकर यह काम करता हूं। जब मेरी आंखें खुली हों, तो मैं समय को लेकर बहुत सजग होता हूं, मगर जिस पल मैं अपनी आंखें बंद करता हूं, मैं पूरी तरह समय से परे चला जाता हूं।
तो हम सब किधर जा रहे हैं? अगर आप ज्यादा जगहों पर नहीं गए हैं, तो कहीं जाना आपके लिए बहुत रोमांचक होता है। अधिकतर लोग अपना जीवन किसी और की तरह होने की कोशिश में बिता देते हैं। लगातार तुलना करना और कुछ अलग होने की चाह, किसी और से एक सीढ़ी ऊपर रहने की जरूरत इंसान की मूलभूत संभावना को बर्बाद कर देती है।
इसीलिए हम मुक्ति की बात करते हैं। अगर आप पर्याप्त समय तक इस जीवन में नहीं रहे हैं, तो आपको अपना अस्तित्व रोमांचक होता है। लेकिन अगर आपको उस पुरातनता की याद हो, जो आपका जीव अपने अंदर संभाले रखता है, तो आपके लिए सिर्फ अनस्तित्व या न होना ही आकर्षक होता है। जब आप स्थूल या भौतिक से बंधे नहीं होते हैं, जब आप बस समय और स्थान में लुप्त हो जाते हैं, आप उनकी सीमाओं से परे चले जाते हैं। तब आप किधर जाते हैं? जब सारा जाना बंद हो जाता है, तो यही खेल का अंत होता है। आप कहीं नहीं जाते। यही चरम मुक्ति है।