भगवान श्री कृष्ण की पीठ के दर्शन ना करने का नियम शास्त्रों में दिया गया है । इसलिए जब भी कृष्ण मंदिर जाएं तो यह जरुर ध्यान रखें कि भगवान कृष्ण की मूर्ति के पीठ के दर्शन कभी ना करें । दरअसल शास्त्र सुख सागर में पीठ के दर्शन न करने के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण की लीला जुड़ी हुई है । कृष्णलीला अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे तब जरासंध का एक साथी असूर कालयवन भी उनसे युद्ध करने आ पहुंचा ।तब श्रीकृष्ण वहां से भाग निकले इस तरह रणभूमि से भागने के कारण ही उनका नाम रणछोड़ पड़ा जब श्रीकृष्ण भाग रहे थे तब कालयवन भी उनके पीछे-पीछे भागने लगा इस तरह भगवान रणभूमि से भागे क्योंकि कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे इसी तरह कालयवन कृष्णा की पीठ देखते हुए भागने लगा और इसी तरह उसका अधर्म बढऩे लगा क्योंकि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है और उसके दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है जब कालयवन के पुण्य का प्रभाव खत्म हो गया कृष्ण एक गुफा में चले गए। जहां मुचुकुंद नामक राजा निद्रासन में था। मुचुकुंद को देवराज इंद्र का वरदान था कि जो भी व्यक्ति राजा को निंद से जगाएगा और राजा की नजर पढ़ते ही वह भस्म हो जाएगा। कालयवन ने मुचुकुंद को कृष्ण समझकर उठा दिया और राजा की नजर पढ़ते ही राक्षस वहीं भस्म हो गया।
“धर्म: स्तनोंsधर्मपथोsस्य पृष्ठम् “
श्रीमद्भागवत में द्वितीय स्कंध के, द्वितीय अध्याय के श्लोक ३२ में शुकदेव जी राजा परीक्षित को भगवान के विराट स्वरूप का वर्णन करते हुए कह रहे है- कि धर्म भगवान का स्तन और अधर्म पीठ है
अत: श्रीभगवान की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इससे पुण्य कर्म का प्रभाव कम होता है व अधर्म बढ़ता है । भगवान श्रीकृष्ण का सदैव सनमुख होकर दर्शन करें । यदि भूलवश उनकी पीठ के दर्शन हो जाएं तो भगवान से याचना करें । शास्त्रानुसार इस पाप से मुक्ति हेतु कठिन चांद्रायण व्रत करना होता है । शास्त्रों मे चांद्रायण व्रत हेतु निर्देश दिए गए हैं । निर्देश के अनुसार चंद्रमा के घटने व बढ़ने के क्रम मे व्रती को खान-पान में कटौती या बढ़ोतरी करना पड़ती है व अमावस्या को निराहार रहना पड़ता है व पूर्णिमा यह व्रत पूर्ण हो जाता है ।