नटराज शिव – सभी कलाओं के मूलदाता

शिव के अनेक रूपों में से एक है – नटराज का, यानी कलाओं के राजा। तो क्या सभी भारतीय शास्त्रीय कलाओं के जन्मदाता वही हैं? जानते हैं कि कैसे भगवान शिव द्वारा खोजे गए योगासन नृत्य मुद्राओं से गहराई से जुड़े हैं 

शिव के सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक है – नटेश, यानी सभी कलाओं के जन्मदाता। दुनिया के सबसे मशहूर प्रयोगशालाओं में से एक स्विटजरलैंड के सर्न लेबोरेटरी के प्रवेश द्वार पर नटराज की एक मूर्ति लगी है। क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि मानव संस्कृति में इससे बढ़कर कुछ नहीं है, जो उनके काम से इतना मिलता-जुलता या करीब हो।

84 आसन नई अभिव्यक्ति पाकर नृत्य मुद्राएँ बन जाते हैं
शिव ने मूल रूप से 84000 मुद्राओं की पहचान की, जिन्हें मानव शरीर धारण कर सकता है और उन्हें 84 योगासनों में ढाला। उसके बाद उन्होंने उसे अधिक तरल अभिव्यक्तियां प्रदान कीं।
अगर योग को एक चेतन प्रणाली के साथ किया जाता है, तो इसे आसन कहा जाता है।

अगर उसे काव्यात्मक गरिमा के साथ किया जाता है, तो इसे शास्त्रीय नृत्य कहते हैं। मानव शरीर जो चीजें कर सकता है, और उन चीजों को करने पर जो कुछ होता है, उन्होंने उस प्रक्रिया की खोज की। फिर उन्होंने उन्मत होकर बेफिक्री में नृत्य किया। दूसरे लोगों ने उसका एक अंश ग्रहण किया और उसे एक प्रणाली के रूप में अपनाने की कोशिश की।
विज्ञान क्या है और तकनीक क्या है, हमें इसे समझना चाहिए। शिव ने आपके अस्तित्व के विज्ञान को समझाया। मगर तकनीक कई तरीके से विकसित हुई है। जब खुशहाली से जीने की बात आई, तो दुनिया ने आशा भरी निगाहों से पूरब की ओर देखा। लोगों ने हमेशा से भारत को एक संभावना के रूप में देखा है। इस धरती पर एक पूरी संस्कृति को एक आध्यात्मिक प्रक्रिया में बदलने का महान प्रयोग किया गया। आप चाहे कारोबार करें, परिवार को पालें या कुछ और करें – आपके जीवन का मुख्य मकसद मुक्ति है। चरम मुक्ति आपका एकमात्र लक्ष्य है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत भी ध्यान की ओर ले जाता है
भारतीय कलाएं बहुत सावधानी से विकसित की गई कलाएं हैं जो इंसानी सिस्टम के मेकैनिक्स की समझ पर और उसे अपनी चरम संभावना तक विकसित करने के विज्ञान की समझ पर आधारित हैं।
यहां संगीत और नृत्य मनोरंजन के लिए नहीं थे। वे भी आध्यात्मिक प्रक्रियाएं थीं। अगर आप भारतीय शास्त्रीय नृत्य की मुद्राओं को ठीक से करें, तो वे आपको ध्यान की तरफ ले जाती हैं।
इसी तरह, अगर आप भारतीय शास्त्रीय संगीत का अभ्यास करने वाले किसी व्यक्ति को देखें, तो उनमें साधु-संतों जैसे गुण आ जाते हैं क्योंकि ध्वनियों को एक खास तरह से व्यवस्थित करने का एक खास असर पड़ता है। अगर आप ध्वनि पैटर्न को ठीक से इस्तेमाल करते हैं, तो वह आपके और आपके आस-पास के माहौल पर जबर्दस्त असर डालता है क्योंकि भौतिक अस्तित्व मुख्य रूप से स्पंदनों या ध्वनियों का एक जटिल मिश्रण है। तो हम संगीत का इस्तेमाल मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि लोगों को विलीन करने के लिए करते थे। मनोरंजन जीवन का नजरिया नहीं था। उठना-बैठना, खाना, सब कुछ एक साधना या चेतना के उच्च स्तर तक पहुंचने का एक साधन था।

अब उन्हें फिर से जीवंत करना होगा
पहले हमारी धरती पर शास्त्रीय कलाएं खूब विकसित हुईं। दुर्भाग्यवश, पिछले कुछ समय से हमने उन्हें खत्म होने दिया है। अब उन्हें फिर से जीवित करने का समय है। ईशा फाउंडेशन हर साल यक्ष संगीत समारोह आयोजित करता है, जो कलाकारों को एक मंच देता है। मगर इसे सिर्फ एक संगठन के जरिये नहीं बल्कि व्यापक पैमाने पर होना चाहिए। यह जरूरी है कि हम इन अद्भुत कलाओं को फिर से जीवित करने में अच्छा-खास समय लगाएं और पूरी कोशिश करें।

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