कर्नाटक की योगिक परंपरा में एक बड़ी ही खूबसूरती कहानी है। भारत के दक्षिणी हिस्से दक्कन के पठारी क्षेत्र में कर्नाटक और आंध्र प्रदेश इलाके में एक सिद्धलिंग नाम के एक योगी थे। इस क्षेत्र में वह पूरे ऐश्वर्य और प्रभुत्व के साथ घूमते थे और लोगों के सामने यह साबित करते रहते थे कि वह उस क्षेत्र के सबसे महान योगी हैं। वह कायाकल्प के मार्ग पर थे। काया का मतलब है, शरीर और कल्प का अर्थ है अपने शरीर को एक बिल्कुल अलग ही आयाम में परिवर्तित कर लेना। वह ऐसे योगी थे, जिनका जीवन के मूल तत्वों पर पूरी महारत हासिल थी। उन्होंने ऐसी साधना की थी कि उनका शरीर बेहद कठोर और स्थिर हो गया था। ये लोग 300 से 400 साल तक जीवित रहते थे।
मूल तत्वों पर अधिकार की वजह से उन्होंने अपने शरीर को इतना स्थिर बना लिया था कि वे सामान्य जीवनकाल से भी ज्यादा जीवित रह पाते थे। कहा जाता है कि इस कहानी के वक्त सिद्धलिंग की उम्र 280 साल से भी ज्यादा थी और उन्होंने अपने शरीर को हीरे जैसा कठोर बना लिया था।
सिद्धलिंग ने एक और योगी अल्लामा के बारे में सुना, जो योगियों की तरह नहीं रहते थे। अल्लामा को लेाग अल्लामा महाप्रभु के नाम से पुकारते थे। वह बड़े ही खूबसूरत संत थे और शिव भक्त थे। उनका दक्षिण भारत में बडे़ सम्मान की नजर से देखा जाता था। यहां तक कि आज भी उनका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। अक्का महादेवी जैसे बहुत सारे संत अल्लामा के संपर्क में थे। अल्लामा का भक्ति और साधना का संदेश तेजी से लोगों के बीच फैल रहा था।
अल्लामा महाप्रभु ने कहा, ‘आप एक सर्वश्रेष्ठ योगी हैं। बेहतर होगा कि आप दिखाएं कि आप क्या कर सकते हैं?’
सिद्धलिंग ने एक तलवार निकाली, जिसके सिरे पर हीरा जड़ा हुआ था। उस तलवार को अल्लामा को देते हुए वह बोले, ‘यह लो तलवार और पूरी ताकत के साथ इसे मेरे सिर पर मारो। मुझे कुछ नहीं होगा।’
अल्लामा को हंसी आ गई। उन्होंने तलवार ले ली और दोनों हाथों और पूरी ताकत से सिद्धलिंग के सिर पर वार कर दिया। तलवार सिद्धलिंग के सिर से टकराकर लौट आई, क्योंकि उनका शरीर था ही इतना कठोर। सिद्धलिंग किसी चट्टान की भांति वहीं खड़े थे। वह हंसने लगे – ‘देखा, तुम मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सके। तुमने इस तलवार से मुझ पर वार किया अब इसी तलवार से मैं तुम पर वार करूंगा।’
अल्लामा ने कहा, ‘ठीक है। सिद्धलिंग ने तलवार से अल्लामापर वार कर दिया। तलवार अल्लामा के शरीर से ऐसे निकल गई, जैसे हवा से निकल जाती है। सिद्धलिंग तलवार को ऐसे वैसे हिलाने लगे, लेकिन हर बार तलवार अल्लामा के शरीर को छुए बिना ऐसे निकल जाती, जैसे हवा में चल रही हो। यह देखकर सिद्धलिंग ने अल्लामा के सामने सिर झुका दिया और बोले, ‘मुझे शक्ति के योग के बारे में तो पता है, लेकिन मैं सज्जनता के योग के बारे में नहीं जानता।’ इसके बाद वह अल्लामा के शिष्य बन गए।
अल्लामा ने संतों के नए पंथ की नींव डाली, जिसे वीरशैव कहा जाता है। वीरशैव योद्धा भक्त होते हैं। वे शिव भक्त होते हैं, लेकिन हथियार धारण किए रहते हैं। अल्लामा बड़े ही सज्जन थे। उन्होंने हजारों ऐसे दोहे लिखे हैं, जिनमें आपको एक गहराई नजर आएगी। मैं स्पष्ट तौर पर कह सकता हूं कि मानवता के इतिहास का वह एक ऐसा नाम हैं, जो अपने आप में असाधारण है।