‘शिक्षा लेना’ या ‘सीखना’ यह एक ऐसी क्रिया है जो जीवन भर चलती है। ताउम्र आप कुछ ना कुछ नया सीखते हैं, कई बार परिस्थितियां हमें कुछ सिखाती हैं तो कई बार स्वसुधार के लिए हम शिक्षा ग्रहण करते हैं। लेकिन जब-जब शिक्षा की बात आती है तो दिमाग में विद्यार्थी की छवि आ जाती है।
जीवन के सभी चरणों में से विद्यार्थी जीवन एक ऐसा जीवन है जो शायद सबसे महत्वपूर्ण है। क्योंकि यदि इसे सहनशीलता से निभाया जाए तो जीवन संवर जाता है अन्यथा थोड़ी भी भूल चूक पूरे भविष्य को तबाह कर सकती है।
इसलिए यह एक शिक्षक एवं माता-पिता दोनों की ही जिम्मेदारी होती है कि बच्चा अच्छी शिक्षा प्राप्त करे। आज हम आपको महान अर्थशास्त्री, कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य के उन विचारों से परिचित कराएंगे जिन्हें हर छात्र-छात्राओं एवं शिक्षक, दोनों को ही जानना चाहिए।
एक श्लोक द्वारा आचार्य चाणक्य ने एक ऐसा संदेश दिया था जो विद्यार्थियों को सफलता की ओर ले जा सकता है। उनके अनुसार कुछ ऐसी बातें हैं जिनसे हर छात्र-छात्रा को दूरी बनाकर रखनी चाहिए, ताकि वह सफलता प्राप्त कर सके।
आचार्य चाणक्य का वह श्लोक इस प्रकार है: कामक्रोधौ तथा लोभं स्वायु श्रृड्गारकौतुरके। अतिनिद्रातिसेवे च विद्यार्थी ह्मष्ट वर्जयेत्।।
श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य कह रहे हैं कि वही विद्यार्थी आगे चलकर सफलता को प्राप्त कर सकता है जो साज-श्रृंगार से दूर रहे। जिन विद्यार्थियों का मन साज-श्रृंगार में लगा होता है, वे पढ़ाई में कम ही ध्यान केंद्रित कर पाते हैं।
ऐसे छात्र-छात्राओं के दिमाग में हर पल सौंदर्य, पहनावे और रहन-सहन की ही बातें चलती रहती हैं। इसलिए जिन विद्यार्थियों के मन में साज-श्रृंगार की बातें चलती रहती हैं उनका ध्यान अध्ययन में कम ही लगता है और आगे चलकर वे असफलता को प्राप्त करते हैं।
आचार्य चाणक्य का कहना है कि जिन विद्यार्थियों का ध्यान स्वादिष्ट भोजन और पकवानों में रहता है, वे पढ़ाई से दूर होते चले जाते हैं। इन विद्यार्थियों की जीभ वश में नहीं होती वे हर समय स्वादिष्ट भोजन की ही खोज करते रहते हैं।
लेकिन अगर सफल होना है और भविष्य में कुछ बनकर दिखाना है तो विद्यार्थियों को स्वादिष्ट भोजन का ध्यान छोड़ स्वास्थ्य और पढ़ाई की ओर ध्यान देना चाहिए।
शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है, शरीर में ऊर्जा होगी तभी हम मेहनत करने के लिए सक्षम होंगे। किंतु ऐसे विद्यार्थी जो हर पल शरीर की सुंदरता एवं उसकी अच्छी बनावट पर ही ध्यान देते रहते हैं, ऐसे विद्यार्थी शिक्षा से दूर हो जाते हैं। शरीर से अधिक अध्ययन की ओर ध्यान देना चाहिए।
नींद और आलस्य, चाणक्य के अनुसार ये विद्यार्थी जीवन के दो सबसे बड़े दुश्मन हैं। जिन विद्यार्थियों को नींद अधिक प्रिय होती है, उनका ध्यान भी पढ़ाई में कम ही लगता है। ऐसे विद्यार्थी के मन में हर समय नींद ही घूमती रहती है।
नींद के अलावा आलस्य भी विद्यार्थी और उसकी सफलता आड़े आता है। आलस्य के कारण वह अच्छे से कार्य नहीं कर पाता। ऐसे विद्यार्थी उतना ही ज्ञान प्राप्त करते हैं जितना आवश्यक हो। जबकि पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति के लिए विद्यार्थियों को अत्यधिक नींद का त्याग करना चाहिए।
समय कभी किसी के लिए नहीं रुकता, इसलिए एक-एक पल सही तरह से उपयोग हो। आचार्य चाणक्य के अनुसार विद्यार्थी जीवन में समय का सही उपयोग होना अनिवार्य है। समय के साथ विद्यार्थियों में गंभीर स्वभाव का होना भी आवश्यक है।
विद्यार्थी इस गुण को अपना कर ही अच्छे से शिक्षा और सफलता प्राप्त कर सकता है। जो विद्यार्थी सारा समय हंसी-मजाक में व्यर्थ कर देता है, उसे कभी सफलता नहीं मिलती।
जो विद्यार्थी काम भावना से ग्रसित होते हैं, उनका ध्यान पढ़ाई में नहीं लगता। यदि वे पढ़ाई में मन लगाने की कोशिश भी करें, तो उनके दिमाग में चल रहे उग्र ख्यालात उनकी एकाग्रता को नष्ट कर देते हैं। ऐसे विद्यार्थियों को सफलता प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
शिक्षा प्राप्त करने के लिए मन और मस्तिष्क दोनों का ही शांत होना अति आवश्यक है, एक क्रोधी दिमाग सही शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता। क्योंकि अशांत मन से विद्यार्थी ज्ञान को केवल सुनता है, उसे समझ कर उसका पालन नहीं कर पाता। इसलिए विद्यार्थियों को क्रोध से दूर रहना चाहिए।